सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘असंवैधानिक’ बताने के तीन दिन पहले सरकार ने दिया था छापने का आदेश
• १२ फरवरी को सरकार ने छापने की दी थी मंजूरी
• १५ फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने खिलाफ में दिया था पैâसला
• २८ फरवरी को केंद्र सरकार ने छपाई के ऑर्डर पर लगाई रोक
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
देश और दुनिया के सबसे बड़े घोटाले के रूप में चर्चित चुनावी बॉन्ड मामले में एक नई कहानी पता चली है। चुनावी चंदे के लिए भाजपा ने जो फंदा तैयार किया था, उसमें १० हजार करोड़ रुपए के बॉन्ड छापने की तैयारी हो चुकी थी। मोदी सरकार ने इसका आदेश भी जारी कर दिया था, पर इसके तीन दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित कर दिया, जिससे सरकार हतप्रभ रह गई थी और उसे इस पर रोक लगानी पड़ी।
मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की ओर से चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार देने से तीन दिन पहले ही वित्त मंत्रालय ने एक-एक करोड़ रुपए के १० हजार बॉन्ड की छपाई को मंजूरी दी थी। मंत्रालय की ओर से सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया’ को छपाई के लिए अंतिम मंजूरी दे दी गई थी। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट में दावा किया गया कि वित्त मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के दो सप्ताह बाद २८ फरवरी को भारतीय स्टेट बैंक को चुनावी बॉन्ड की छपाई पर तुरंत रोक लगाने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने १५ फरवरी २०२४ को चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया था। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि १० हजार बॉन्ड की छपाई की मंजूरी १२ फरवरी २०२४ को दी गई थी।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि २७ फरवरी को वित्त मंत्रालय की ओर से एसबीआई और दूसरे लोगों को ईमेल भेजा गया था, जिसमें चुनावी बॉन्ड की छपाई पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया था। बता दें कि चुनावी बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सभी को यह जानने का पूरा हक है कि राजनीतिक पार्टियों को कहां से चंदा मिल रहा है। इसके साथ ही कोर्ट ने एसबीआई को चुनावी बॉन्ड का डाटा सार्वजनिक करने और चुनाव आयोग को देने का निर्देश दिया था। चुनाव आयोग ने १४ मार्च को चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक किया था। चुनाव आयोग ने सारा डेटा दो सेट में अपलोड किए थे। पहली लिस्ट में कंपनियों की ओर से खरीदे गए बॉन्ड की जानकारी थी और दूसरी लिस्ट में राजनीतिक पार्टियों की ओर से बॉन्ड भुनाने वाली जमा राशि का जिक्र था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर एसबीआई से कहा कि उसने चुनावी बॉन्ड नंबरों का खुलासा नहीं किया है। कोर्ट ने कहा था कि एसबीआई को यूनीक नंबर का खुलासा करना चाहिए, क्योंकि वह ऐसा करने के लिए बाध्य है।