संतोष मधुसूदन चतुर्वेदी
बेपड्यो आदमी हतो बौ अंगरेजी सकूल मै पीरियड और छुट्टी कौ घंटा बजामतो। टन…टन…टन…टन…टन…
इक दिना सकूल के नये प्रधानाचार्य की निगाह बा पै गयी, तो बा सूं बाके बारे मै पूछ बैठे मतलब कित्ते पढ़े हौ आदि। बिनकूं यै जानकें हैरानी भयी की बिनके या नामी-गिरामी सकूल कौ घंटा बजाइबे बारौ करमचारी अनपढ़ हतै। बिननें कही की ऐसौ नाँय है सवैâ औरु प्रधानाचार्य नें बा घंटा बजाइबे बारे कूं निकास दीयौ। अब बौ बेचारौ काह करै। कछू काम नाँय, बाके सामनें फाके करबे की नौबत आय गयी तौ काऊ नें बावूँâ सलाह दीनी की फलाने रस्ता पै समोसा बेचौ। कछू तौ कमाई होयगी। बानें समोसा बेचबौ सिरू कियौ। ऊपर बारे की किरपा रही औरु कछू मेहनत के बाद दुकान चल निकरी। खोमचा सौं गुमटी भयी, गुमटी सौं दुकान फिर बजार की सबसौ प्रसिद्ध दुकान। धंधौ आगे बढौ तौ बच्च’न कूं या काम मै लगाइकें औरु वैâऊ धंधे अजमाए। आगै चलकें बौ सहर कौ जानौ-मानौ सेठ बन गयौ। सहर मै भौत दुकान है गयीं।
बाकौ नाम सुनकें साक्षात्कार लैबे कूं इक पत्रकार आयौ। सब कछु बात पूछबे के बाद बानें पूछी की आप कहाँ तक पढ़े हौ। बावूँâ यै जानकें हैरानी भयी की इत्तौ बड़ौ सेठ तौ अनपढ़ हतै।
पत्रकार ने पूछी- आप पढ़े-लिखे नायनों फिर हू इतनौ बड़ौ ब्यापार करि रह्ये हौ औरु इत्ते कामयाब हौ। मैं सोच रह्यो की अगर आप पढ़े होते तौ काह कर रहे होते।
सेठ बोलौ- सकूल में घंटा बजाम रह्यो होतो। पढ़े फारसी बेचें तेल, यै देखौ किसमत कौ खेल। करम औरु परिश्रम सौं ई धनवान बनौ जाय सवैâ। पढ़ लिखकें घंटा बजामें, बेपढ़े सेठ कहामें।