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मोदी सरकार का एक और काला कारनामा… संघ परिवार को सौंपे ६२ प्रतिशत नए सैनिक स्कूल!

-वर्ष २०२१ में १०० नए सैनिक स्कूलों की हुई थी घोषणा

-मिलिट्री इकोसिस्टम में राजनीतिक दखल ने बढ़ाई चिंता

सामना संवाददाता / नई दिल्ली

नरेंद्र मोदी सरकार के एक और काला कारनामा सामने आया है। जिस सैनिक स्कूल से पढ़कर निकलने के बाद बच्चे देश की सीमओं की रक्षा करते हैं, उन्हीं स्कूलों को चलाने की जिम्मेदारी सरकार ने भाजपा और संघ परिवार से जुड़े लोगों को दे दी। वर्ष २०२१ में सरकार ने पूरे देश में १०० नए सैनिक स्कूल स्थापित करने की घोषणा की थी। बताया जाता है कि अब केंद्र सरकार ने संघ परिवार, भाजपा नेताओं और सहयोगियों को ६२ फीसदी तक नए सैनिक स्कूल सौंपे हैं। ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ के अनुसार, ऐसे ४० निजी सैनिक स्कूलों में से कम से कम ६२ प्रतिशत ऐसे थे जो आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों, भाजपा नेताओं, उसके राजनीतिक सहयोगियो, हिंदुत्व संगठनों, व्यक्ति और अन्य हिंदू धार्मिक संगठनों से जुड़े थे।
भाजपा नेताओं की प्रत्यक्ष भागीदारी
आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, कम से कम ४० स्कूलों ने ०५ मई, २०२२ और २७ दिसंबर, २०२३ के बीच सैनिक स्कूल सोसायटी के साथ एमओए पर हस्ताक्षर किए हैं। सूत्रों के अनुसार, गुजरात से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक बड़ी संख्या में इन नए सैनिक स्कूलों में या तो भाजपा नेताओं की प्रत्यक्ष भागीदारी है या इन पर ऐसे ट्रस्टों का स्वामित्व है जिनके प्रमुख भाजपा नेता हैं।
सैनिक स्कूलों का भगवाकरण
इस सूची में सिर्फ भाजपा नेता ही शामिल नहीं हैं। निजी सैनिक स्कूलों को चलाने का अधिकार आरएसएस संस्थानों और उससे जुड़े कई हिंदू दक्षिणपंथी समूहों को भी दिया गया है। विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान (विद्या भारती) आरएसएस की शैक्षिक शाखा है। भारत भर में पहले से मौजूद सात विद्या भारती स्कूलों को संबद्धताएं दी गईं–उनमें से तीन बिहार में स्थित हैं, और एक-एक मध्य प्रदेश, पंजाब, केरल और दादरा और नगर हवेली में स्थित हैं।
पूर्वाग्रह से प्रभावित होगी शिक्षा
नाम न छपने की शर्त पर एक सेवानिवृत्त मेजर जनरल ने कहा कि पीपीपी मॉडल सैद्धांतिक रूप से अच्छा है। लेकिन जिस तरह के संगठनों को यह अनुबंध मिलेंगे, उसको लेकर मैं आशंकित हूं। यदि अधिकांश स्कूलों का स्वामित्व भाजपा से संबंधित व्यक्तियों/संगठनों के हाथों में जाता है, तो उनका पूर्वाग्रह वहां दी जाने वाली शिक्षा को भी प्रभावित करेगा।
दक्षिणपंथी संस्थानों का बढ़ता हस्तक्षेप
हालांकि, सरकार को उम्मीद है कि इस नए पीपीपी मॉडल से सशस्त्र बलों में भर्ती होने के लिए संभावित उम्मीदवारों की संख्या बढ़ेगी, लेकिन इस पहल से राजनीतिक खिलाड़ियों और दक्षिणपंथी संस्थानों के मिलिट्री इकोसिस्टम में दाखिल होने से चिंताएं भी बढ़ी हैं।

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