नव संवत्सर

नव वर्ष की नवल छटा,
सबको मंगलमय हो।
सत्य सनातन सदा ही,
तेरी जय हो, तेरी जय हो।।
मास चैत्र शुक्ल प्रतिपदा शुभ,
नव संवत्सर भान है।
मिल सब आज सुमंगल गावें,
भगवा ही पहचान है।
नव पल्लव गृह सजा,
सुवासित पुष्पों सा संसार है।
खेत-खलिहान सुंदर लागे,
नदियों की कल-कल धार है।।
नवल धान्य आंगन आच्छादित,
पक्षी का कलरव गान है।
देवी पूजन की शुभ बेला,
देवी की सब संतान है।।
अवध के राजा रामलला को,
अद्भुत सूर्य तिलक होगा।
मंदिर में प्रभु भक्तों को,
दिव्य-भव्य दर्शन होगा।।
ब्रह्मांड के शाश्वत तत्वों से,
जुड़ा हुआ यह वर्ष।
ग्रहों की चाल आधारित है,
विशिष्टता पर है हर्ष।।
संस्कृति सर्व पुरातन है,
सबका है सम्मान।
राष्ट्र सर्व प्रधान रहा है,
करते मिल सब गान।।
धन्य धरा पर विक्रम संवत,
दो हजार इक्यासी का श्रृंगार है।
एक दूजे को बधाई देते,
हिंदू का यह प्यार है।।
जीवन से मिटे अंधियारा,
खुशियां अपरम्पार मिले।
कल्याण विश्व का करें महारानी,
सफलता का संसार मिले।
शुभ मनोकामना शीघ्र पूरे हो,
कहते बारम्बार है।
सदा बढ़े शुचि जीवनपथ पर,
राजीव की यही पुकार है।।
-राजीव नंदन मिश्र
आरा, बिहार

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