‘द वायर’ और ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट्स ने अमित शाह के दावों की उड़ा दी धज्जियां
२०२० में खुद सेना के एक पूर्व कर्नल ने बताई थी कब्जे की बात
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गत ९ अप्रैल को लखीमपुर की एक चुनावी रैली में भाषण देते हुए कहा कि ‘भारत की एक इंच भूमि पर भी चीन ने कब्जा नहीं किया है और यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण संभव हुआ है।’ दरअसल, गृहमंत्री ने चुनावी रैली में साफ झूठ बोला क्योंकि खुद सेना के एक पूर्व कर्नल ने सेना के अग्रिम पंक्ति के सूत्रों के हवाले से कहा था कि चीन ने दो से चार किलोमीटर तक भारत की भूमि में घुसकर उसे बफर जोन बना दिया है। खास बात यह है कि अगर चीन ने भारत की भूमि पर कब्जा नहीं किया है तो भारत ने चीन के साथ कोर कमांडर स्तर की २१ वार्ता क्यों की है? २०२० में लद्दाख की घटना के बाद जुलाई २०२० में जाने-माने रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ कर्नल अजय शुक्ला (रिटायर्ड) ने अग्रिम पंक्ति में सेना के सूत्रों के हवाले से ‘द वायर’ को बताया था कि ‘चीनी आर्मी ने हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में पीछे हटने से इनकार कर दिया है और गोगरा हाइट्स में दोनों ओर से लगभग १,५०० सैनिक आमने-सामने हैं। चूंकि चीनी पहले ही भारतीय दावे वाले क्षेत्र में २-४ किलोमीटर तक घुसपैठ कर चुके हैं…पूरा बफर जोन भारतीय क्षेत्र में स्थापित हो गया है और चीनी इसे मानने से इनकार कर रहे हैं।’ शुक्ला के अनुसार, इसका मतलब यह है कि हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा में भारी गड़बड़ी हुई है और चीनी भारतीय क्षेत्र को खाली करने से इनकार कर रहे हैं।’ खास बात यह है कि मोदी सरकार ने इस पूर्व सैन्यकर्मी के दावों का कोई खंडन नहीं किया। यह तो सभी जानते हैं कि जून २०२० में, चीन ने लद्दाख में जमीन हड़पी और चीनी सैनिकों के साथ झड़प में भारत के कम से कम २० सैनिकों की जान गई थी।
चीन के बारे में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने फरवरी में एक पॉडकास्टर से कहा था, ‘देखो, वे (चीन) एक बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। हम क्या कर सकते हैं? एक छोटी अर्थव्यवस्था एक बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ लड़ तो नहीं सकती। यह सामान्य ज्ञान का सवाल है।’
यदि ड्रैगन ने भारत की भूमि पर कब्जा नहीं किया है … तो चीन के साथ कोर कमांडर की वार्ता क्यों?
सरकार के दावे पर उठ रहे हैं सवाल
वर्ष २०२० में गलवान में चीन के साथ हुई झड़प के बाद पीएम मोदी ने नई दिल्ली में एक सर्वदलीय बैठक के दौरान चीन का नाम लिए बिना जोर देकर कहा था, ‘न तो उन्होंने हमारी सीमा में घुसपैठ की है और न ही किसी पोस्ट पर उन्होंने कब्जा किया है। हमारे २० जवान शहीद हो गए, लेकिन जिन्होंने भारत माता को चुनौती दी, उन्हें सबक सिखाया गया।’ उन्होंने विपक्षी नेताओं को आश्वस्त करते हुए कहा था, ‘आज हमारे पास वो क्षमता है कि हमारी एक इंच जमीन पर भी किसी की नजर नहीं लग सकती।’ सेना के रिटयर्ड कर्नल शुक्ला के अनुसार, तब से भारत ने एलएसी पर २०२० से पहले की स्थिति पर लौटने के लिए चीन के साथ कम से कम २१ दौर की कोर कमांडर स्तर की वार्ता की है, लेकिन सफलता नहीं मिली। अब सवाल है कि अगर चीन ने हमारी भूमि पर कब्जा नहीं किया है तो फिर भारत उसके साथ कोर कमांडर स्तर की वार्ता क्यों कर रहा है?
गौरतलब है कि फरवरी २०२४ में आखिरी दौर की वार्ता के बाद ‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट में रेखांकित किया गया था, ‘भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने वार्षिक प्रेस काॅन्फ्रेंस (जनवरी २०२३ में) के दौरान कहा था कि वार्ता का उद्देश्य वापसी करना था। ‘यथास्थिति’ गलवान टकराव से पहले की स्थिति की ओर इशारा करती है।’ अगस्त २०२० में, ‘द हिंदू’ ने मोदी सरकार को दिए गए खुफिया इनपुट का हवाला देते हुए रिपोर्ट दी थी कि झड़प के बाद लद्दाख का लगभग १,००० वर्ग किमी क्षेत्र चीनी नियंत्रण में आ गया था। एक ‘वरिष्ठ सरकारी अधिकारी’ ने अखबार को बताया था कि देपसांग के मैदानी इलाके में, गश्त बिंदु १०-१३ से, ‘एलएसी पर भारत के अनुसार, चीनी नियंत्रण का पैमाना लगभग ९०० वर्ग किमी था।’ रिपोर्ट में कहा गया है, ‘चीन अप्रैल-मई (२०२०) से एलएसी पर सैनिकों को इकट्ठा कर रहा और अपनी उपस्थिति मजबूत कर रहा है।’ अधिकारी ने कहा था, ‘गलवान घाटी में लगभग २० वर्ग किमी और हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में १२ वर्ग किमी चीनी कब्जे में बताया जाता है… पैंगोंग त्सो में, चीनी नियंत्रण वाला क्षेत्र ६५ वर्ग किमी है, जबकि चुशुल में, यह है २० वर्ग किमी। दूसरे शब्दों में कहें तो अधिकारी ने जुलाई में किए गए कर्नल शुक्ला के दावों को सही बताया था। सितंबर २०२१ में, चुशुल काउंसलर कोंचोक स्टाजिन ने बताया था कि क्षेत्र में बढ़ती चीनी उपस्थिति के कारण पूर्वी लद्दाख में गोगरा के पास ग्रामीणों ने अपनी विशाल चरागाह भूमि तक पहुंच खो दी है।
मोदी सरकार ने भी इसकी सत्यता पर सवाल नहीं उठाया है। इसके अतिरिक्त, जनवरी २०२३ में, इंटेलिजेंस ब्यूरो द्वारा आयोजित वार्षिक पुलिस महानिदेशक सम्मेलन में लेह एसपी द्वारा प्रस्तुत एक शोध पत्र में यह भी उजागर किया गया था कि भारतीय सुरक्षा बलों (आईएसएफ) द्वारा प्रतिबंधात्मक या कोई गश्त नहीं की गई थी। इसके परिणामस्वरूप भारत को पूर्वी लद्दाख में ६५ गश्ती बिंदुओं (पीपी) में से २६ तक पहुंच खोनी पड़ी।