देश में जो कुछ भी अच्छा हो रहा है वह सिर्फ मोदी की वजह से है, ऐसा उनके भक्त हमेशा कहते हैं। मोदी खुद भी इसी तरह शेखी बघारते घूमते रहते हैं। अब भी वे लोकसभा चुनाव की प्रचार सभाओं में यही कर रहे हैं। क्या ही कहें, उनकी सरकार के कारण ही मणिपुर शांत हुआ! असम के एक अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार और राज्य सरकार के समय पर हस्तक्षेप के कारण मणिपुर में स्थिति में काफी सुधार हुआ है।’ प्रधानमंत्री का यह दावा न सिर्फ नाहक लफ्फाजी है, बल्कि हिंसा से त्रस्त मणिपुरी लोगों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। मोदी पर लगातार झूठ बोलने का आरोप क्यों लगाया जाता है, इस साहसिक दावे से पता चलता है। मणिपुर राज्य पिछले एक साल से सांप्रदायिक और जातीय हिंसा की आग में झुलस रहा है। इस हिंसा ने सैकड़ों निर्दोष लोगों की जान ले ली है। हजारों परिवार बेघर हो गए। स्थानांतरित हो गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी, उनकी केंद्र सरकार और राज्य की भाजपा सरकार क्या कर रही थी जब पूर्वोत्तर सीमा पर स्थित यह अति संवेदनशील राज्य महीनों से जल रहा था? भले ही मोदी आज ‘समय पर हस्तक्षेप’ किए जाने की बड़ाई मार रहे हैं, लेकिन उस पूरे दौर में मोदी सरकार का नजरिया ‘जानकर अनजान बने रहने’ जैसा था। जिस तरह रोम जल रहा था तो नीरो बैठा बांसुरी बजा रहा था, उसी तरह मणिपुर जल रहा था तो प्रधानमंत्री मोदी चुप्पी साधे हुए थे या पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के प्रचार में मगन थे। कई गणमान्य व्यक्तियों ने, विपक्षी दलों ने मोदी से आग्रह किया था कि वे उस समय मणिपुर जाएं, वहां के लोगों को सांत्वना दें, यदि ऐसा न करें तो कम से कम कुछ तो कहें, लेकिन मोदी ने हमेशा की तरह उन्हें नजरअंदाज कर दिया। मणिपुर की जनता, जो हिंसा में अपना सब कुछ खो चुकी थी, आक्रोश व्यक्त कर रही थी, हस्तक्षेप की याचना कर रही थी। ओलिंपिक पदक विजेता मुक्केबाज मैरी कॉम ने भी मोदी से ‘हमें बचाओ’ का आर्तनाद किया। लेकिन मोदी के कान के पर्दे नहीं हिले। लोकसभा में भी मोदी को बतौर प्रधानमंत्री मणिपुर पर अपना मुंह खोलना पड़ा, क्योंकि ‘इंडिया’ गठबंधन ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर मोदी सरकार की नाक दबा दी थी। लोकसभा में फिर मणिपुर के बारे में कितना बोले मोदी? तो बस आखिरी चार मिनट। दो घंटे के भाषण के महज चार मिनट में मणिपुर में गंभीर हिंसा पर सरसरी तौर पर बोलने वाले मोदी आज बिंदास और निडरता से दावा रहे हैं, ‘हमारे सही वक्त पर हस्तक्षेप करने की वजह से मणिपुर की स्थिति सुधरी।’ ऐसे वक्त में, वे प्रधानमंत्री जो, जब देश का एक संवेदनशील सीमावर्ती राज्य एक साल से जातीय हिंसा की आग में जल रहा था, उस राज्य में नहीं फटकते, लोकसभा में चार मिनट का नोटिस लेते हैं, वह आज किस मुंह से कह सकते हैं कि मणिपुर के हालात उनकी वजह से सुधरे? यदि केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से मणिपुर की स्थिति में सुधार हुआ है, जैसा कि मोदी दावा करते हैं, तो मणिपुर के मैट्रिक्स मार्शल आर्ट फाइटर चुंगरेंग कोरेन ने हाल ही में मोदी से मणिपुर का दौरा करने का अनुरोध क्यों किया? पूरे देश में लोकसभा चुनाव की हलचल है फिर भी मणिपुर में तनावपूर्ण सन्नाटा क्यों है? करीब ५८ हजार मतदाताओं का पता नहीं चल पाया है? राजनीतिक दल, उम्मीदवार खुलकर प्रचार करने का साहस करते क्यों नहीं दिख रहे हैं? प्रचार सभाओं पर अघोषित प्रतिबंध क्यों है? उम्मीदवार अपने पोस्टर क्यों नहीं लगा पाए हैं? क्या प्रधानमंत्री मोदी के पास इनमें से एक भी सवाल का जवाब है? पहले इसका जवाब दीजिए और फिर उस शांति का श्रेय लीजिए, जो मणिपुर में नहीं है। कश्मीर-लद्दाख से लेकर अरुणाचल-मणिपुर तक आप कितनी डींगें हांकेंगे? मणिपुर से लेकर कश्मीर तक अराजकता और हिंसा जारी रहने के बावजूद भारतीय नीरो का बांसुरी बजाना जारी है!