मुख्यपृष्ठस्तंभकिस्सों का सबक : विपदा में निर्णय

किस्सों का सबक : विपदा में निर्णय

डॉ. दीनदयाल मुरारका
एक बहादुर सिपाही लेफायेटे अमेरिकी क्रांति के बाद जब अपने गांव वापस पहुंचा तो वहां की हालत देखकर परेशान हो गया। उन दिनों उसके और आसपास के गांवों में गेहूं की फसल खराब हो गई थी। गांव के लोग फसल खराब होने के कारण दुखी थे। बच्चे एवं बूढ़े भूख से तड़प रहे थे। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि इस आकस्मिक आपदा से वैâसे निपटा जाए?
सिपाही लेफायटे जब अपने घर में दाखिल हुआ तो यह देखकर हैरान रह गया कि उसके गोदाम गेहूं से भरे हुए हैं। उसे पता चला कि उसके परिवार वालों ने पिछले कुछ सालों में दिन-रात मेहनत कर, गेहूं इकट्ठा कर गोदाम में रख दिया था। गांव के प्रधान को जब इसका पता चला तो वह लेफायेटे के पास आकर बोला, आपके यहां तो गेहूं के गोदाम भरे हुए हैं। मेरे खयाल से यह एक अच्छा अवसर है, कम समय में ज्यादा कमाई करने का। इस समय इससे बेहतर कमाई का जरिया कोई और हो ही नहीं सकता। आपको अपने गोदाम में जमा गेहूं को भूखे मर रहे लोगों को ऊंचे दाम में बेचकर काफी मुनाफा कमा लेना चाहिए।
लेफायटे प्रधान की बात सुनकर दंग रह गया। वह बोला, आपको ऐसा कहना शोभा नहीं देता। मेरे गांव के लोग भूख से मर रहे हैं और आप मुझसे कह रहे हैं कि मैं गेहूं ऊंचे दामों पर बेचकर मुनाफा कमाऊं? इससे बड़ी शर्मनाक बात कोई और हो ही नहीं सकती। यह वक्त गेहूं सबको बांटने का है, ताकि इस विपदा से सहजता से निपटा जा सके। यह पाप मैं नहीं कर सकता। यह सुनकर प्रधान शर्मिंदा हो गया और उसने भी अपने गोदाम में जमा गेहूं तत्काल बांटने का पैâसला कर लिया।

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