मुख्यपृष्ठग्लैमरकभी-कभी : एक्टिंग की खातिर छोड़ा घर

कभी-कभी : एक्टिंग की खातिर छोड़ा घर

यू.एस. मिश्रा

सिनेमा के रुपहले पर्दे पर ऐसा कौन इंसान है जो चमकना नहीं चाहता। पर्दे की चकाचौंध चाहे वो अमीर हो या गरीब सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है। आज फिल्मों में काम करनेवाले लोग जहां फिल्मों में काम कर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं, वहीं एक जमाना ऐसा भी था जब फिल्मों में काम करने की बात सुन लोग नाक-भौं सिकोड़ लिया करते थे क्योंकि फिल्मों में काम करना उस दौर में अच्छा नहीं समझा जाता था। फिल्मों में काम करनेवालों को लोग हेय दृष्टि से देखते थे। ऐसी मानसिकता वाले दौर में एक मशहूर कलाकार ने एक बंगाली फिल्म में अपने परिवार को बिना बताए एक छोटा सा रोल कर लिया। परिवारवालों ने जब उनकी वो फिल्म देखी तो वाहवाही करने की बजाय उन्होंने अभिनेता को घर छोड़ने का फरमान सुना दिया।
१४ दिसंबर, १९३६ को जन्मे विश्वजीत चटर्जी के पिता इंडियन आर्मी में डॉक्टर थे। पिता के आर्मी में होने की वजह से विश्वजीत को पिता की पोस्टिंग के अनुसार कभी मेरठ, कभी लखनऊ, कभी लाहौर तो कभी कराची में स्कूली पढ़ाई करनी पड़ी। पिता के वर्ल्ड वॉर में जाने के बाद विश्वजीत का परिवार कोलकाता चला आया। अपने माता-पिता की इकलौती संतान विश्वजीत को वैसे तो इंडियन आर्मी में जाना चाहिए था लेकिन इसे तकदीर का खेल कहें या कुछ और एक डॉक्टर का बेटा एक्टर बन गया। बचपन से ही पेंटिंग बनाने का शौक रखनेवाले विश्वजीत के बनाए कार्टून बंगाल की एक मशहूर फिल्म मैगजीन में छपा करते थे। पूरे देश में अपने पिता के साथ भ्रमण करनेवाले विश्वजीत के परिवार में बच्चों को फिल्म देखने की मनाही थी। बच्चों को सिर्फ चार्ली चैप्लिन, लॉरेल हार्डी और टार्जन की ही फिल्में दिखाई जातीं। जब कोई रवींद्र संगीत या फोक गीत गाता तो गाने का शौक रखनेवाले विश्वजीत उस गीत को गाने की कोशिश करते। विश्वजीत के पिता भले ही आर्मी में थे लेकिन उनकी मां की एक महिला समिति थी, जिसमें वो महिलाओं के लिए काम करने के साथ ही ड्रामा वगैरह किया करती थीं। मां द्वारा किए गए ड्रामों को देखते हुए विश्वजीत के मन में एक एक्टर ने धीरे-धीरे जन्म लेना शुरू किया। विश्वजीत के मामा का एक ड्रामा क्लब था, जिसमें वो अपने दोस्तों के साथ एक्टिंग करते थे, लेकिन वे प्रोफेशनल एक्टर नहीं थे। कभी-कभी विश्वजीत को मामा ड्रामे में छोटा-मोटा रोल दे दिया करते। अपनी मौसी के घर दुर्गा पूजा के दौरान पंडाल में लाइट्स कैसे सेट होती है, नाटकों में अच्छी परफॉर्मेंस देखने के बाद दर्शक कैसे तालियां बजा रहे हैं, ये सब देखने के बाद उनके भीतर दबा एक्टर जाग उठा। दर्शकों की ये तालियां मुझे भी मिलनी चाहिए, विश्वजीत ने उसे लक्ष्य बना लिया। अपनी मनचाही चीजों को करनेवाले विश्वजीत से एक दिन बहुत बड़े एक्टर सत्य बनर्जी, जो ‘रंगमहल’ थिएटर से जुड़े थे, ने कहा, ‘विश्वजीत तुम अगर एक्टर बनना चाहते हो तो प्रोफेशनल स्टेज को जॉइन करो।’ बॉलीवुड में बतौर हीरो अपनी शुरुआत करनेवाले विश्वजीत ने बतौर जूनियर आर्टिस्ट कोलकाता में अपनी शुरुआत की। ‘रंगमहल’ थिएटर से अपनी शुरुआत करनेवाले विश्वजीत को सिर्फ एक डायलॉग मिला, जो उन्हें एक पार्टी सीन के दौरान बोलना था। इस ड्रामे के बाद उन्हें बेहतर रोल मिलने लगा, लेकिन ‘साहब बीबी और गुलाम’ ड्रामे में हीरो भूतनाथ का किरदार निभाने में परेशानी पेश आने पर उत्तम कुमार ने उनकी सहायता करते हुए भूतनाथ के किरदार को स्टेज पर किस तरह से परफॉर्म करना है, इसमें उनकी सहायता की। भूतनाथ का किरदार निभाकर उन्होंने खूब नाम कमाया। अब बंगाली फिल्म ‘डाक हरकरा’ के डायरेक्टर ने उन्हें एक छोटा सा रोल ऑफर किया। विश्वजीत के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो उस छोटे से रोल के लिए उन्हें इनकार कर दें। अत: विश्वजीत ने उस छोटे से रोल को अपने घरवालों से छिपाकर कर लिया क्योंकि घरवाले उन दिनों फिल्मों में काम करने के एकदम खिलाफ थे। उन दिनों फिल्मों में काम करने का मतलब था कि लड़का बर्बाद हो गया। इस प्रोफेशन को लोग इज्जत की नजर से नहीं देखते थे। खैर, जब घरवालों ने फिल्म देखी तो उन्होंने विश्वजीत से कहा, ‘अगर तुम घर में रहोगे तो हमारी इज्जत चली जाएगी। तुम्हारी चचेरी बहनों का ब्याह नहीं होगा और उन्हें कोई लड़का नहीं मिलेगा।’ घरवालों की बात सुनकर विश्वजीत ने निर्णय कर लिया कि वो अपना रास्ता खुद बनाएंगे और उन्होंने घर छोड़ दिया। एक्टिंग की खातिर अपना घर छोड़नेवाले विश्वजीत को अब उनके दोस्तों ने सहारा दिया। एक छोटी सी जगह में रहते हुए विश्वजीत एक समय ही खाना खाते। एक स्पोर्ट्स की दुकान के मालिक उन्हें रात में खाना खिलाते और कुछ पैसे देते, जिससे सेकंड ट्राम में बैठ वो नाटक में एक डायलॉग बोलने के लिए थिएटर जाते। अपने पैशन और लगन की वजह से विश्वजीत ने न केवल बंगाली सिनेमा में नाम और दाम कमाया, बल्कि बतौर हीरो हिंदी सिनेमा में उन्होंने कदम रखते हुए एक से बढ़कर एक फिल्मों में काम किया।

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