अरुण कुमार गुप्ता
बहुजन समाज पार्टी के इंडिया गुट में न शामिल होने के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को उम्मीद थी कि यहां त्रिकोणीय मुकाबला होगा। अब त्रिकोणीय मुकाबला तो हो रहा है पर बीएसपी के उम्मीदवारों से भाजपा को फायदा के बजाय नुकसान होता दिख रहा है। अभी कुछ दिन पहले तक समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के समर्थक यह कहते हुए नहीं थक रहे थे कि मायावती अब खुलकर भाजपा की बी टीम के रूप में काम कर रही हैं। इसके बाद बहुत दिनों तक यह बात चली कि कांग्रेस और बीएसपी के नेता संपर्क में हैं। कुछ दिनों तक यह बात हुई कि इंडिया गठबंधन मायावती को पीएम कैंडिडेट घोषित कर सकता है, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब जब काफी हद तक सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा हो चुकी है, तो सामने कुछ ऐसा निकल कर आ रहा है जो भाजपा को परेशान करने वाला है। कम से कम पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ५ सीटों पर बसपा ने जो कैंडिडेट खड़े किए हैं वो भाजपा के माथे पर चिंता बढ़ाने के लिए तो निश्चित रूप से काफी हैं।
हम एक सीट से संतुष्ट!
उत्तर प्रदेश की गाजीपुर लोकसभा सीट पिछले कुछ दिनों से काफी चर्चा में थी। भाजपा ने यहां से उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की थी, लेकिन इस सीट से पारस राय के नाम की घोषणा होते ही सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर का सपना बिखर गया। क्योंकि वे गाजीपुर लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरना चाहते थे। ऐसे में लोग यही चर्चा कर रहे हैं कि अब ओमप्रकाश राजभर क्या करेंगे। भाजपा के एलान के बाद राजभर ने कहा कि हमारा एक ही लक्ष्य है हम एनडीए प्रत्याशी को जीत दिलाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में हम एक सीट से संतुष्ट हैं। राजभर ने कहा कि घोसी लोकसभा चुनाव में सुभासपा को जनता का आशीर्वाद मिलेगा। इससे पहले गाजीपुर और बलिया सीट को लेकर ओमप्रकाश राजभर ने एनडीए से खुद की पार्टी से प्रत्याशी लड़ाने की मांग की थी।
पांच सीटों का पेंच
लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने उत्तर प्रदेश की ८० सीटों में से ७० सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। पांच सीटें सहयोगी दलों को दी हैं। भाजपा के खाते में आई कुल ७५ सीटों में से ५ सीटों पर अभी भी पेंच फंसा हुआ है। इन सीटों पर उम्मीदवारों के नामों की घोषणा नहीं हो पाई है। भाजपा ने अभी जिन सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं, उनमें सांसद बृजभूषण शरण सिंह की वैâसरगंज सीट और रायबरेली भी शामिल है। इसके अलावा फिरोजाबाद, भदोही और देवरिया लोकसभा सीट पर भी उम्मीदवारों की घोषणा नहीं हुई है। कैसरगंज सीट भाजपा का सिरदर्द बनी हुई है। कयास थे कि पहले ही चरण में भाजपा बृजभूषण शरण सिंह का टिकट काटकर एक बड़ा मैसेज दे सकती है लेकिन अब तक पार्टी यह नहीं तय कर पाई है कि उनको टिकट देना है या नहीं। वैसे एक बात तो सच कही जा सकती है कि बृजभूषण शरण सिंह का टिकट काटना भाजपा के लिए चुनौती है।