मुख्यपृष्ठस्तंभमैथिली व्यंग्य : बुधियार बच्चा

मैथिली व्यंग्य : बुधियार बच्चा

डॉ. ममता शशि झा मुंबई

गप्प ओहि समय के अछि जहन छुट्टी होइते लोग गाम दिस पराइ छल। आइ-काल्हि जंका घर छोड़ी-छोड़ी घुरमिरिया खेला के आदत नहि छलइ। आ ओहि स दू टा फायदा होइ सब के भेंट-घाँट सेहो भ जाए छलइ आ घुमि-घुमि के जे लोक सब पर्यावरण के दूषित केने जा रहल छइ सेहो सुरक्षित रहइ छलइ। हं ते हम गप्प करइ छलहुं गर्मी छुट्टी में गाम जाय के जाहि में सब बच्चा सब इकठ्ठा होइ छल आ जाहि में एकटा बच्चा जय सेहो छल जे पढ़ में सब सं तेज छल। आ बुझिते हेबइ जे पढ़ में सबसे तेज से सब स बूधियार बच्चा मानल जाइ छइ आ ताहि ले के अपन संग तुरिया के दुश्मन सेहो, कियेक ते ओकर अहि गुण के आगु सबहक आरो गुणो दुर्गुण भ जाय छइ, ककरो किछु पुछला पर जय मूंह बेने रहला परो बड़का बाबा ओकर प्रशंशा करइ छथिन ‘पढ़ में एतेक डूबल रहइ छइ जे एकरा दिन-दुनिया के कोनो बात में रुचिए नहि रहइ छइ!! आ ओहि ठाम जे दोसर कोनो बच्चा जबाब नहि देतइ ते ओकरा फटकारि देथिन’ केहन बकलेल छे येतबो नहि बुझ अबइ छ!! जय के चेहरा पर कुटिल मुस्कान देखि के बच्चा सब मोन मसोसि के रहि जाए छल। जय के पिसियोत भाइ सब ममियोत संगे गोलैसि के जय के तंग कर के बात-विचार केलक। राति में काल जानि बुझि क बसबारि कात बला पक्का दिस ओछेन केलक आ भूत बला खिस्सा सब नाना प्रकार के आवाज के संगे सबके सुनेलक, जय डर से थरथर कांप लागल, सब के चेहरा पर मंद-मंद हँसी आबि रहल छलइ। नहाए काल में पोखरि में सब जानि बुझि के ओकरा डुम्मी मार लेल कहइ, जय के अउनाइत मुड़ी बाहर अनइत, सबके आनंद होइ। आम बिछ काल दोसर दिस ढेला फेंकि दइ आ जहन जय ओहि दिस आम ताक जाय त सब ठठा के हँसी दइ, क्रिकेट खेल काल में पहिने ओकरा से फिल्डिंग करबइ, आ जय के बारी येला पर खेला बंद के दइ, शैतान बच्चा सब!! जय बड़की दादी के जहन सब बात जानि पड़लनि ते ओ बड़का बाबा के बजोलनि, सब बात सुनि बड़का बाबा जे बड़का नेता छला बच्चा सब के लेमनचूस दे क मना लेलखिन, कियेक ते काल्ही बड़का बाबा के बरखि छलनि आंगन में आ ओहो बुझइ छथिन जे अहि में किताबी ज्ञान नहि, व्यावहारिक ज्ञान के काज होयत आ इहे बच्चा सब ओइ काज के सम्हारत!!

अन्य समाचार