मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनाऐसा भी होता है अप्रिय सच

ऐसा भी होता है अप्रिय सच

यह एक ऐसा सच है, जिसे कभी कोई नकार नहीं सकता है।
मगर आज के परिवेश में ये भी सच है कि
तेरी कद्र जानी प्यारे/प्यारी तेरे जाने के बाद
वर्ना जिंदगी भर तो मैं आपके विरुद्ध शिकायतें ही करता रहा हूं।
या फिर जिसे हम आज अच्छे इंसान की उपाधि दे रहे हैं
उसके चल बसने के बाद।
परंतु जब वो जीवित था तो उसकी अनदेखी होती रही है।
उसे जानबूझ कर बात बात पर विवश कर दिया जाता है
कड़वे शब्दों की बारीश करके उसकी व्यक्तिगत भावना को
ठेस पहुंचाई जाती रही है, ताकि वो सदा के लिए मौन धारण कर ले
ना किसी से बोले ना सताने वाली का पर्दाफाश करे
किस तरह वो बुजुर्ग अंदर ही अंदर घुट रहा होता है
और तिल तिल मर रहा होता है, इसकी परवाह
ऐसी स्थिति उत्पन्न करने वाला/वाली की बला से
वे तो चाहते ही हैं कि कल का मरता बुड्ढा, आज मर जावे
खेद सहित कहना पड़ रहा है, हर युग में अच्छे किरदारों को संताप ही झेलना पड़ा है। …
जीते जी उनको अपमान सहना पड़ा है।
फिर चाहे वो संत, फकीर, भक्त या अवतार रहे हों।
मरणोपरांत ही ऐसी महान आत्माएं

देवी-देवता कहलाने का सम्मान पाए हैं…

‘गुरूदेव-ईश’ कहलाए हैं।
ऐसे में ‘शिप्रा जी’ हम भला कलयुगी जीवों की क्या बात करें!
आपकी ‘पाक शुद्ध’ सोच को मैं ‘नमन’ करता हूं।
वर्ना इतना भी आज कौन सोचता है?
-त्रिलोचन सिंह अरोरा

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