मुख्यपृष्ठस्तंभमहा-संग्राम : मुंबई में कैसे पार होगी भाजपा की वैतरणी?

महा-संग्राम : मुंबई में कैसे पार होगी भाजपा की वैतरणी?

रामदिनेश यादव

मुंबई मतलब सपनों का शहर, सबको समाहित करने वाला शहर, मूल मुंबई यानी शहर का दक्षिणी छोर का हिस्सा, जिसे अब दक्षिण मुंबई लोकसभा क्षेत्र भी कहा जाता है। आर्थिक तौर पर इस संसदीय क्षेत्र का समीकरण बहुत अलग है। यहां इन दिनों राजनीति चरम पर है क्योंकि दक्षिण मुंबई कारोबार के लिहाज से महत्वपूर्ण स्थान है इसलिए इस लोकसभा सीट पर सभी दल अपना वर्चस्व बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। लगातार दो बार यहां से सांसद रह चुके शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष के अरविंद सावंत अब एक बार फिर यहां झंडा गाड़ने को तैयार हैं। जनता के बीच उनके काम और उनकी मजबूत पकड़ को देखते हुए भाजपा एवं महायुति को यहां से प्रत्याशी नहीं मिल रहे हैं। भजापा के पास कोई प्रत्याशी ही नहीं बचा है। भाजपा यहां से किसी प्रत्याशी को मैदान में उतारने के लिए पैâसला नहीं कर पा रही है। राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस परेशान हैं कि आखिर भाजपा की वैतरणी वैâसे पार होगी? बता दें कि पिछले कई दिनों से यह मामला महायुति के लिए मुसीबत बना हुआ है।
वित्तीय राजधानी आर्थिक कारोबार मुख्य रूप से दक्षिण मुंबई में ही है। इस लोकसभा क्षेत्र में विश्व धरोहर सूची में एक-दो नहीं बल्कि तमाम प्रशासनिक भवन, सरकारी कार्यालय, राजनीतिक नेताओं के बंगले, उद्यमियों, व्यापारियों की गगनचुंबी इमारतें, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों, महत्वपूर्ण और बड़े बैंकों के मुख्यालय आदि शामिल हैं। यह चुनाव क्षेत्र मेहनतकश गांव गिरणगांव (मिल मजदूरों के गांव) से लेकर मालाबार हिल तक है, जिसे एक कास्मोपॉलिटन क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, सभी क्षेत्रों के लोगों को समायोजित करता है लेकिन अब इस संसदीय क्षेत्र की सूरत बदल गई है। जिस चुनाव क्षेत्र पर पहले श्रमिक नेताओं का दबदबा था, वहां कुछ समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन अब यह लोकसभा क्षेत्र शिवसेना के गढ़ के रूप में जाना जाता है।
१९५२ से १९६७ तक दक्षिण मुंबई लोकसभा क्षेत्र पर कांग्रेस का दबदबा रहा। १९६७ में जॉर्ज फर्नांडीस ने जनता दल से चुनाव लड़ा और कांग्रेस से यह सीट छीन ली। इसके बाद इस संसदीय क्षेत्र में कई बड़े बदलाव देखने को मिले। १९८४ से १९९६ तक यहां कांग्रेस के मुरली देवड़ा का दबदबा रहा। मुरली देवड़ा ने इस सीट को लंबे समय तक अपने कब्जे में रखा फिर १९९६ में भाजपा की जयवंतीबेन यहां चुनी गईं। १९९८ में मुरली देवड़ा ने जीत हासिल की फिर १९९९ में जयवंतीबेन मेहता ने जीत हासिल की। २००४ में मुरली देवड़ा के बेटे मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और २०१४ तक यह सीट कांग्रेस के पास ही रही। २०१४ के लोकसभा चुनाव में मिलिंद देवड़ा हार गए और शिवसेना के अरविंद सावंत लोकसभा में सांसद चुने गए। अरविंद सावंत ने मिलिंद देवड़ा को पांच लाख से ज्यादा वोटों से हराया। वर्ष २०१९ में भी देवड़ा हर गए और अरविंद सावंत ने भारी मतों से जीत हासिल की।

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