मुख्यपृष्ठस्तंभराज की बात : लोकसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा है अग्निवीर योजना

राज की बात : लोकसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा है अग्निवीर योजना

द्विजेंद्र तिवारी मुंबई

विश्व में कुछ प्राइवेट सेनाओं को लेकर समय- समय पर विवाद होते रहे हैं। इनमें से दो प्राइवेट सेनाओं को लेकर तो सबसे ज्यादा विवाद हुआ है। एक है रूस की वैगनर और दूसरी है ब्लैकवाटर, जिसे अब एकेडमी के नाम से जाना जाता है। वैगनर ग्रुप नामक निजी स्वामित्व वाली सैन्य टुकड़ी के बारे में कहा जाता है कि यह रूसी सरकार द्वारा तैयार सेना है। यह हर तरह के सैन्य अभियानों के लिए पूरी तरह से प्रशिक्षित और सक्षम है। इस प्राइवेट सेना ने सीरिया, यूक्रेन, लीबिया, सूडान और मध्य अप्रâीकी देशों सहित कई देशों में सैनिकों की तरह लड़ाइयां लड़ीं। यह प्राइवेट सेना पूरी तरह से रूस सरकार के निर्देशों के मुताबिक सैन्य और सुरक्षा सेवाएं प्रदान करने में माहिर है। इसमें कई पूर्व रूसी सैन्यकर्मी हैं। आपको याद होगा कि पिछले वर्ष जून में वैगनर के सैनिकों ने पुतिन के खिलाफ बगावत कर दी थी। लेकिन उनकी बगावत फेल हो गई। बागी सैनिकों के नेता येवगेनी प्रिगोझिन २३ अगस्त, २०२३ को मास्को के पास हुए विमान हादसे में रहस्यमय परिस्थितियों में दुर्घटना का शिकार हो गए।
अमेरिका की प्राइवेट सेना ब्लैकवाटर ने इराक में विवादास्पद लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे २००७ में इराक युद्ध के दौरान सुरक्षा सेवाएं प्रदान करने के लिए अमेरिका सरकार द्वारा अनुबंधित किया गया था। इस पर निर्दोष इराकी नागरिकों पर अंधाधुंध गोलियां चलाने और कई हत्याएं करने के आरोप लगे थे।
आज हम इस कॉलम में प्राइवेट सेना की बात क्यों कर रहे हैं? ऐसा इसलिए कि पिछले कुछ दिनों से एक बार फिर दो वर्ष पूर्व लांच हुई अग्निपथ उर्फ अग्निवीर योजना की चर्चा शुरू हो गई है। क्या आपको नहीं लगता कि अग्निवीर का कॉन्सेप्ट इसी तरह की प्राइवेट आर्मी जैसा है? कहा जाता है कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबंध अच्छे हैं। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या अग्निवीर की प्रेरणा रूस और अमेरिका की इन्हीं प्राइवेट सेनाओं से ली गई है और उसका असली मकसद कुछ और है?
१४ जून, २०२२ को रक्षा मंत्री और तीनों सेनाओं के प्रमुखों की मौजूदगी में एक प्रेस कॉन्प्रâेंस में भारत सरकार ने सशस्त्र बलों के लिए अग्निपथ योजना का अनावरण किया था। सरकार का दावा था कि यह योजना सेना में सैनिकों की भर्ती की पिछली प्रथाओं में एक क्रांतिकारी बदलाव थी। इसके मुताबिक सभी सैनिकों (जिन्हें अग्निवीर कहा जाता है) को चार साल के लिए भर्ती किया जाएगा, जिसके बाद सेना उनमें से केवल २५ प्रतिशत को अपनी स्थायी सेवा में लेगी। अग्निपथ योजना की अचानक घोषणा के कारण कई राज्यों में व्यापक और हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारी अल्पकालिक नियुक्ति और बिना किसी ग्रेच्युटी और पेंशन लाभ के अनिवार्य सेवानिवृत्ति के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। तब से लेकर अब लोकसभा चुनाव में भी यह बड़ा मुद्दा है। उत्तराखंड सहित कई राज्यों में इस योजना को लेकर भारी आक्रोश है और लोकसभा चुनाव परिणाम पर इसका व्यापक असर होने की संभावना है।
कई दिग्गजों ने यह भी चेतावनी दी है कि इस योजना का सेना के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। सैन्य पेशा सिर्फ एक नौकरी नहीं है, बल्कि एक ऐसा पुनीत कर्तव्य है जहां व्यक्ति राष्ट्र की सेवा में अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार रहता है। सम्मान, वफादारी, अखंडता, आत्म-बलिदान और भाईचारे जैसे मूल्यों से सैनिक मजबूत होते हैं।
सवाल यह है कि जब अलग-अलग सेवा शर्तों वाले सैनिकों के दो वर्ग होंगे तो क्या यूनिट सामंजस्य कमजोर नहीं होगा? क्या ४ वर्ष को उतनी गंभीरता से लिया जाएगा? क्या भविष्य के करियर के लिए सेना को एक कदम के रूप में देखने वाले अग्निवीरों में नियमित सैनिकों जैसा ही मनोबल और प्रेरणा का स्तर होगा? क्या २५ प्रतिशत स्थायी पदों के लिए अग्निवीरों के बीच प्रतिस्पर्धा यूनिट सामंजस्य को कमजोर नहीं करेगी? क्या सेना में भर्ती का आकर्षण कम नहीं हो जाएगा, क्योंकि कोई भी युवा अधिक स्थिरता वाली नौकरी की तलाश में रहना चाहेगा?
तमाम विपक्षी दलों सहित कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी पार्टी के रुख को दोहराया है कि सत्ता में आने के बाद वह अग्निपथ योजना को खत्म कर देंगे। राहुल ने कहा, `राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु सहित सभी राज्य अपने युवाओं को सेना में भेजते हैं। सेना गारंटी देती है कि अगर आपको कुछ हो गया तो भारत सरकार आपकी देखभाल करेगी। शहीद का दर्जा देगी, पेंशन देगी और अगर आप शहीद हो गए तो आपके परिवार को मुआवजा, पेंशन आदि मिलेगा।’ लेकिन अग्निवीर लाकर नरेंद्र मोदी ने इस वादे को तोड़ दिया है। इस अग्निवीर योजना की सेना को जरूरत नहीं थी। सेना ने यह नहीं कहा कि उसे अग्निवीर योजना चाहिए। इस योजना को बिना किसी सैन्य विशेषज्ञ से चर्चा किए पीएम कार्यालय ने लागू किया था।
दो साल के बाद भी रह-रहकर उठते विवाद पर भारत सरकार डिफेंसिव मोड में है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कुछ दिन पहले कहा कि उनकी सरकार जरूरत पड़ने पर अग्निवीर भर्ती योजना में `बदलाव के लिए तैयार’ है। केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार ने सुनिश्चित किया है कि अग्निवीरों का भविष्य सुरक्षित रहे। लेकिन इस बारे में केंद्र सरकार ने कोई ऐसा रास्ता नहीं निकाला है, जिससे युवाओं की आशंकाओं का समाधान हो सके और विपक्ष संतुष्ट हो सके।
सेना में भर्ती किसी कंपनी में सामान्य नौकरी या रोजगार का मामला नहीं है। यह देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ मामला है। इस मामले में किसी भी तरह से सहज पैâसले नहीं लिए जा सकते। दुनिया में भारत की सैन्य शक्ति चीन के बाद सबसे ज्यादा है। युद्ध जैसी परिस्थितियों के समय सैनिकों का ज्याादा से ज्यादा संख्या में सीमा पर तैनात होना युद्ध जीतने का एक प्रमुख कारण हो सकता है। हमास के खिलाफ इजरायल की लड़ाई में हम देख रहे हैं कि कम आबादी और सैनिकों की कमी का क्या परिणाम होता है। इजरायल सहित लगभग आधा दर्जन देशों में इसीलिए युवाओं को एक निश्चित अवधि के लिए सैन्य सेवा कंपल्सरी है। दुनिया के कई देशों में युवाओं की आबादी बहुत कम है, जिसका असर उनकी सैन्य शक्ति पर पड़ रहा है। युवा शक्ति से भरपूर हमारे देश में यह समस्या कभी नहीं रही इसलिए हमें देश की सुरक्षा के लिए ऐसी अस्थायी योजनाओं से परहेज करना चाहिए।
(लेखक कई पत्र पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)

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