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भोजपुरिया व्यंग्य : आदमी के स्वभाव आ कुकुर के पूंछ कबो ना बदलेला

प्रभुनाथ शुक्ल भदोही

आदमी भी अजीब स्वभाव के होला। निर्दोष के दोषी ठहरावेला अउरी खुदे गलती करेला। अब कूड़ा के गाड़ी आवे लागल बा, ना त पड़ोसी के दुआर के सामने आपन कचरा रखले बाड़े। हालांकि, जहां इ सुविधा नईखे उहाँ बहुमंजिला भवन से सीधा सड़क प कचरा फेंकता। लागत बा कि कूड़ा फेंके का जगहा ऊ क्रिकेट के गेंद फेंकत बाड़न। मलिकार! ई आदमी के स्वाभाविक गुण ह। ऊ हमेशा अपना के निर्दोष साबित करेला। दोषी आदमी अपना अपराध के जानला का बावजूद अदालत में आपन बेगुनाही साबित करे खातिर लड़त बा।
अब सोंटा गुरु के देखल जाव, उ तेज रफ्तार से बाइक चलावत रहले अवुरी अचानक एगो मोड़ प नियंत्रण खो देले अवुरी सड़क के नीचे गहिरा खाई में चल गईले। फिर बेचारा अस्पताल पहुंच के तीन महीना तक बिछौना प पड़ल रहे ऊपर से सवा लाख रुपईया के बिल अस्पताल के चुकावे के पड़ल। जब लोग उनका के देखे आवत रहे तब आपन गलती छिपावे खातिर सब दोष सड़क आ आन्हर कोना पर डाल देत रहले। बस! शुभचिंतकन के बता दीं कि सड़क पर आन्हर मोड़ आइल जवना का चलते बाइक सड़क से नीचे गहिरा खाई में चल गइल।
सोंटा गुरु लोगन के सामने हर बखत आपन निर्दोषता साबित करे के कोशिश करत रहले। दूसरा ओर निर्दोष भगवान के भी दोषी ठहरावल रहले कि सब कुछ भगवान के कृपा से हो गईल। अरे भाई! भगवान के आशीर्वाद सड़क से गुजरत दोसरा लोग तक काहे ना पहुंचल? भगवान सोंटा गुरु पर एतना मेहरबानी काहे कइले? अपना अपराध के बहुत बेबाकी से छिपावत उ कहले कि सड़क प आन्हर मोड़ भईल जवना के चलते उनकर नियंत्रण खतम हो गईल अवुरी बाइक के संगे खाई में चल गईले। तेज रफ्तार के चलते उ दुर्घटना के शिकार भइले इ बात केहू से नईखे बतावल।
आदमी के स्वाभाविक गुण ह जवना के भगवान भी ना बदल सकेले। काहे कि भगवान आदमी के रचले बाड़े। रउरा सभे देखले होखब कि कुकुर के पूंछ कतनो सीधा कर दीं, बाकि ऊ सीधा ना हो पाई। इहाँ तक कि लोहा भी आप कवनो आकार में मोड़ सकतानी। बाकि, कुकुर के पूंछ में कतनो तेल लगार्इं ओकरा में कवनो बदलाव न होई। काहे कि इहे ओकरा स्वाभाविक गुण ह। रउआँ भौतिक गुण बदल सकेनी, लेकिन प्राकृतिक गुण ना। ठीक ओसही आदमी के स्वभाव बा, हमनी के सब कुछ बदल सकेनी जा, लेकिन आदमी के स्वभाव ना बदल सकेनी जा। शायद एही से मनुष्य के दुनिया में सबसे बुद्धिमान प्राणी मानल गईल बा।

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