मुख्यपृष्ठस्तंभमेहनतकश : बेटे को बनाना चाहते हैं खिलाड़ी

मेहनतकश : बेटे को बनाना चाहते हैं खिलाड़ी

अनिल मिश्र

पिता द्वारा की गई कठोर मेहनत के चलते पढ़-लिखकर सामर्थ्यवान बने संजय पटेल का कहना है कि उनके पिता कल्याण के शिवाजी चौक के समीप गोपाल कृष्ण होटल के सामने जमीन पर बैठकर फल बेचते थे। बीस वर्षों तक फल बेचनेवाले पिता की कठोर मेहनत उनके लिए प्रेरणादायक साबित हुई। पिता ने पांच भाइयों व एक बहन को पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाया। आज पिता अपनी जन्मभूमि उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले स्थित गांव श्रीनगर में दादा-दादी की सेवा करने के साथ ही खेती-बाड़ी कर रहे हैं। संजय पटेल बताते हैं कि पिता ने फल बेचकर कल्याण में दो मकान और सूचक नाके पर एक दुकान खरीदी।
संजय पटेल बताते हैं कि पिता के पुण्य कार्यों की वजह से आज उनके चारों भाई अपना खुद का व्यवसाय कर रहे हैं। एक भाई किराना स्टोर, दूसरा भाई ऑटोचालक, तीसरा चंडीगढ़ में ओला चालक और चौथा भाई उल्हासनगर के शांतिनगर में गैरेज चला रहा है। अपने बारे में संजय ने बताया कि वो फोटोग्राफी लाइन में हैं और आंबिवली में रहते हैं। फोटोग्राफी के बारे में बात करते हुए संजय कहते हैं कि आज मोबाइल एक चुनौती बन गया है। शादी-ब्याह सहित अन्य दूसरे समारोहों में फोटोग्राफरों की पूछ होती है। इस व्यवसाय में सबसे अधिक परेशानी बकाएदारों से होती है क्योंकि समारोह खत्म होने के बाद बकाया पैसे वसूलना कठिन हो जाता है। इस काम में कभी-कभी पंद्रह से बीस घंटे लगातार काम करना पड़ता है। १२वीं तक कल्याण के साकेत कॉलेज में पढ़ने के बाद संजय पटेल ने फोटोग्राफी को चुना और ५० रुपए प्रतिदिन के हिसाब से नौकरी की। नौकरी करते हुए मालिक काम वैâसे कर रहा है, इस पर नजर रखते हुए उन्होंने काम सीखा। उसके बाद महेश कलेक्शन में चार हजार पर उन्होंने नौकरी की। महंगाई से मुकाबला करने और परिवार को सम्मानजनक रूप से जीने के लिए उन्हें तीन हजार रुपए की दूसरी नौकरी करनी पड़ी। २०१६ से २०१९ तक उन्होंने दिल्ली में रहकर काम सीखा। दिल्ली से वापस लौटने के बाद उन्होंने चंदर फोटो स्टूडियो में काम किया। इस बीच कोरोना आ गया, जिसकी मार ने उन्हें हिला दिया। कारोबार बंद हो जाने से लाचार होकर माता-पिता के पास गांव चला गया। २०१९ से २०२१ तक गांव में रहा। गांव में जब कोरोना शिथिल हुआ तो प्रतापगढ़ में एक फोटो लैब में काम करने लगा, जहां १२ हजार प्रतिमाह मिलता था। उसके बाद २०२२ में पुन: उल्हासनगर पहुंचकर उल्हासनगर के हीराघाट में खुद का फोटोग्राफी का व्यवसाय कर रहा हूं। एक लड़का सात साल का है, जो खेल में रुचि ले रहा है। प्रयास है कि उच्च शिक्षा के साथ ही उसे ऐसा खिलाड़ी बनाऊं जो परिवार का नाम विश्व स्तर पर रोशन करे। पांचों भाई माता-पिता की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। संजय मानते हैं कि उनके भाई और वो आज जिस मुकाम पर हैं वो उनके पिता की मेहनत का ही नतीजा है।

अन्य समाचार