डॉ. दीनदयाल मुरारका
इंडोनेशिया के एक संभ्रांत परिवार का लड़का एक दिन अचानक हठ कर बैठा, ‘पापा, आज मैं स्कूल नहीं जाऊंगा।’ उसके पिताजी ने बड़े प्यार से इसका कारण पूछा, तो उसने कहा, ‘इस नए स्कूल में सब मेरा मजाक उड़ाते हैं। मुझे मित्रों के साथ अच्छा नहीं लगता।’
पिता ने समझाया, ‘बेटा तुम अभी नए-नए हो, कुछ समय बाद वे तुमसे घुल-मिल जाएंगे और तुम्हारे दोस्त बन जाएंगे। तब तुम्हें उनके साथ आनंद आने लगेगा।’ लेकिन लड़का अपनी बात पर अड़ा रहा, ‘नहीं, मैं स्कूल नहीं जाऊंगा।’ कहकर उसने किताबें पटक दी। मां-बाप ने लाख समझाया, पर लड़का अपनी जिद पर अड़ा रहा।
पिता ने अपने एक नजदीकी मित्र को यह समस्या बताई और उससे इसका हल पूछा। पिता का मित्र लड़के को पानी के एक सोते के पास ले गया। एक बड़ा सा पत्थर सोते के बीच फेंकते हुए उसने कहा, ‘देखो यह पत्थर इस पानी के प्रवाह में रुकावट डाल देगा।’ कुछ क्षणों के लिए पानी का प्रवाह रुक गया, लेकिन थोड़ी देर बाद प्रवाह पूर्ववत बहने लगा। पानी की गति में किसी तरह की कमी नहीं आई और पत्थर पानी में डूब गया। अब वो लड़के से बोला, ‘बेटा, जीवन में भी किसी प्रकार की रुकावट और बाधाओं से घबराना नहीं चाहिए। देखो, पानी भी रुकावट पर विजय पाकर आगे बढ़ रहा है। फिर तुम तो मनुष्य हो। बाधाओं से क्यों घबराते हो?’ अगले दिन से लड़के ने स्कूल जाना शुरू कर दिया। कुछ दिनों में सहपाठी उसके मित्र बन गए। इस लड़के का नाम सुकरणों था, जो आगे चलकर राष्ट्रपति बना।