मुख्यपृष्ठस्तंभपुस्तक समीक्षा : `मन मशीन' में है अंधविश्वासों व आडंबरों की पड़ताल

पुस्तक समीक्षा : `मन मशीन’ में है अंधविश्वासों व आडंबरों की पड़ताल

राजेश विक्रांत

यदि हम कहें कि नाक से नहीं, बल्कि मस्तिष्क से सूंघते हैं। स्वाद जीभ से नहीं, बल्कि मस्तिष्क से लेते हैं तो आपको यह बेपर की उड़ान लगेगी लेकिन वैज्ञानिक रूप से सच यही है। लेखक व कवि शरद कोकास की पुस्तक `मन मशीन’ ऐसे तमाम अंधविश्वासों, आडंबरों व कुरीतियों का सच बताती है तथा मस्तिष्क के उन क्रिया कलापों को सामने लाती है, जिनके बारे में हम सोच भी नहीं सकते।
लेखक के अनुसार, हमारी समस्त भावनाओं का संबंध हमारे दिल से न होकर हमारे मस्तिष्क से है। मस्तिष्क का यह केंद्र गंध व स्वाद दोनों को ही महसूस करवाता है। बिना गंध के सहयोग के स्वाद ठीक से महसूस नहीं होगा। कभी नाक बंद करके स्वाद लेकर देखिए। मूल स्वाद महसूस ही नहीं होगा इसीलिए बचपन में हमें मां नाक बंद करके दवाई पिलाती थी।
कोकास दर्शन, मनोविज्ञान, पुरातत्व, इतिहास के जानकार होने के साथ-साथ अंधविश्वास और कुरीतियों से लड़ने वाले एक कार्यकर्ता हैं। वे प्रशिक्षित हिप्नोथेरेपिस्ट भी हैं इसलिए उनकी किताब `मन मशीन’ एक प्रामाणिक ग्रंथ के रूप में हमारे सामने है। इसमें लेखक ने एकदम सरल भाषा में `मन मशीन’ के राज खोले हैं।
इंसान के मस्तिष्क के कामों के बारे में सभी जानते हैं लेकिन `मन मशीन’ में मस्तिष्क के कुछ अन्य क्रिया कलापों को विस्तार देने का प्रयास किया गया है। विज्ञान के क्षेत्र में निरंतर नवीन खोजों के बावजूद मस्तिष्क का यह विज्ञान अभी तक अपनी शैशवावस्था में ही है।
मस्तिष्क यदि हमारे शरीर का हार्डवेयर है तो हमारा मन उसका सॉफ्टवेयर है। लेकिन हम अपने मस्तिष्क को अभी तक एक मशीन ही समझते रहे और मन के कार्यों को करते हुए भी उससे अनभिज्ञ रहे। इस मशीन का उपयोग कर हम विकास के स्तर पर तो बहुत आगे बढ़ गए लेकिन अपने अवचेतन का परिष्कार नहीं कर पाए। हम नहीं जान पाए कि हमारे सामूहिक अवचेतन में हमारे पूर्वजों द्वारा क्रमिक विकास के दौरान अर्जित भाषा, भोजन, जीवन शैली एवं श्रम से संबंधित ज्ञान के साथ साथ मनुष्य के शोषण और पीड़ा की भी अकथ गाथा भी संचित है।
एक सरकारी बैंक से रिटायर कोकास मध्य प्रदेश के बैतुल के मूल निवासी हैं। भिलाई में रहते हैं। मन मशीन की पृष्ठ संख्या २३४ है। इसे न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन दिल्ली ने प्रकाशित किया है। इसकी कीमत ३०० रुपए है। ये पुस्तक बताती है कि विज्ञान, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, साहित्य, चेतन, अवचेतन व दैनिक जीवन के क्रिया कलाप भी सामूहिक रूप से मन मशीन द्वारा ही संचालित किए जाते हैं। हर एक आम पाठक के लिए ये एक उपयोगी पुस्तक है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)

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