गुल्लक
जिंदगी की गुल्लक में
पाई-पाई रिश्तों की
जोड़कर नादां दिल ने
छोटी सी बचत की थी
कुछ खोटे सिक्कों जैसी
दोस्ताने शामिल थे
कुछ पुराने नोटों से
राबतों की शिरकत थी
कर लिए जमा सबको
शायद काम न आए तब भी
कुछ पुरानी यादें
कुछ दुआएं उनकी
दिल की तंगहाली में
कर सके मदद शायद
लेकिन उसके बाद आई
जेहन की एक आंधी
संग लाई दानाई का जोरदार तूफां भी
तोड़ डाला जिंदगी की गुल्लक को
बह गए खोटे रिश्ते
राबते पुराने भी टिक नहीं पाए उसमें
सिर्फ बच गए वो ही
आज काम के थे जो
जिनसे इस दुनिया का
कारोबार चलता है
– डॉ. दिलावर हुसैन टोंकवाला, नई मुंबई
गजल
नहीं आदत मेरी तारीफ खुद की करने की
ये छोड़ देता हूं मैं चाहने वालों की नजर
नहीं बनाया मैंने सुख और दुख पैमाना
चलो बस मुस्कुराते पाना है मंजिल को अगर
ख्वाब क्यों देखता है ऊंचे मकानों का क्यों
एक नजर देख कितना खूबसूरत है तेरा घर
कहे कलम मेरी सदा साथ हूं तेरे ‘पूरन’
बयां सच्चाई करने में हमें फिर किसका का डर
– पूरन ठाकुर ‘जबलपुरी’, कल्याण
वृक्ष बचाओ
विश्व बचाओ
आती-जाती रहतीं बीमारियां
मानव जीवन में भरपूर,
प्रकृति के साथ में रहकर
इनको रखो खुद से दूर!
-डॉ. मुकेश गौतम, वरिष्ठ कवि
हार गई
कोशिश कर गई हार
अनाड़ी समझे ना मेरा प्यार
चूड़ी, बिंदी, काजल, गजरा
सब ही करें इशारे
पिया मिलन की आस में जागें
अंबर पर भी तारे
चांद का मिले नहीं दीदार
कोशिश कर गई हार
अनाड़ी समझे ना मेरा प्यार
नयनों की भाषा ना जाने
हाव-भाव भी ना पहचाने
अब वैâसे करूं इजहार
अनाड़ी समझे ना मेरा प्यार
गीत-गजल भी गाती हूं
बात उसे पहुंचाती हूं
किया बहुत इंतजार
अनाड़ी समझे ना मेरा प्यार
नीले-पीले रंग देखकर
उसको अपने संग देखकर
मन ही मन में उठे खुमार
अनाड़ी समझे ना मेरा प्यार
सोचूं मैं दिन-रात
बनेगी वैâसे अपनी बात
मन में है मधुमास
मेरा फागुन जाय बेकार
अनाड़ी समझे ना मेरा प्यार
सारे जतन हुए बेकार
कोशिश कर गई हार
अनाड़ी समझे ना मेरा प्यार
– प्रज्ञा पांडेय, वापी