मुख्यपृष्ठस्तंभभविष्य का भारत तय करने का मौका

भविष्य का भारत तय करने का मौका

सुषमा गजापुरे
आखिर वो दिन आ ही गया, जब भारत के प्रबुद्ध मतदाता लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के लिए अपने-अपने घरों से बाहर निकले हैं। ये क्षण निर्णय का क्षण है, जहां देश के नागरिक देश के भविष्य की दशा और दिशा का निर्धारण करेंगें। २०२४ का चुनाव भारतीय नागरिकों के लिए लोकतंत्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और निष्ठा व्यक्त करने का भी एक महत्वपूर्ण क्षण होगा। लोकतंत्र का सार लोगों की अपने प्रतिनिधियों को चुनने और अपने देश की दिशा निर्धारित करने की शक्ति में निहित है। नागरिकों की सशक्त भागीदारी चुनावों में खूब देखने को मिलती है। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए उच्च मतदान प्रतिशत आवश्यक होता है। मतदाताओं के पास ऐसे उम्मीदवारों को चुनने की शक्ति होती है, जिनके बारे में उनका मानना है कि वे लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखेंगे, संस्थानों की रक्षा करेंगे और सभी नागरिकों के कल्याण के लिए काम करेंगे। भारत के नागरिक इस बात का भी आकलन करेंगे कि जो राजनैतिक दल उनसे वोट मांग रहे हैं क्या वो पिछले वर्षों में अपने किए गए वादों पर खरे उतरे हैं या नहीं? मतदाताओं को वोट देने से पहले पार्टियों के वादों, नीतियों और पिछले प्रदर्शन का आलोचनात्मक मूल्यांकन जरूर करना चाहिए।
इस बार के चुनाव में कई चुनौतियां ऐसी हैं, जो भारत के नागरिकों ने पहले कभी नहीं देखीं सिवाय १९७७ के चुनाव के, जब प्रबुद्ध मतदाताओं ने इंदिरा गांधी की कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंका था। ऐसा प्रतीत होता है- जैसे १९७७ एक बार फिर से दोहराया जा रहा है। इस चुनाव में सबसे बड़ी चुनौती मोदी सरकार के अधिनायकवाद को अस्वीकार करना होगा तथा संवैधानिक संस्थाओं की रक्षा करना होगा। इनके सम्मान को पुनर्स्थापित करना नागरिकों के लिए जब वो वोट डालने जा रहे होंगे तो सबसे बड़ी चुनौती होगी। ये भी जरूरी होगा कि मतदाता वोट डालते समय इस बात का ख्याल रखें कि न्यायपालिका, मीडिया और चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की स्वतंत्रता का सम्मान करनेवाले उम्मीदवारों का समर्थन करें और किसी भावना में बह कर अपने वोट को बर्बाद न कर दें।
भारत देश की सबसे बड़ी खूबी इसकी विविधता है। इसकी ताकत भी विविधता में ही है। जनता को इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि वो वोट उन दलों और उम्मीदवारों को करें, जो विविध समुदायों के बीच समावेशिता और एकता को बढ़ावा देते हैं। सत्ताधीश पार्टी भाजपा दरअसल अब समावेशी संस्कृति को बिलकुल भूल चुकी है।
वर्तमान लोकसभा और राज्यसभा में उसका एक भी संसद सदस्य मुस्लिम वर्ग से नहीं है और न ही कोई मंत्री मुस्लिम वर्ग से है। भाजपा ने अक्सर इस बात को दोहराया है कि वो मुख्य रूप में बहुसंख्यक वर्ग की एक पार्टी है और वो जानबूझकर किसी भी मुसलमान को चुनावों में टिकट नहीं देती है। ये भावना ही संविधान और भारत की समावेशी संस्कृति के खिलाफ है। इसी बहुसंख्यकवाद ने हिंदू कट्टरपंथी ताकतों को जन्म दिया है। भारत में एक बहुत बड़ा बहुसंख्यक वर्ग अब इस धारणा का समर्थन करता है कि इस देश के सभी संसाधनों पर पहला अधिकार बहुसंख्यक वर्ग का है। इस प्रक्रिया में अल्पसंख्यकों को मुख्य धारा से एकदम काट दिया गया है, जो कि भारत की अखंडता के लिए घातक है। किसी भी किस्म का अलगाववाद इसी से पैदा होता है। २०२३ में जो हमने मणिपुर में देखा वह न केवल वीभत्स था, बल्कि इस की वजह से पूरा समाज दो भागों में बंट गया और आज तक मैती और कुकी समुदायों में कोई भी संबंध नहीं है। इस प्रकार की स्थिति हमने आजाद भारत में पहले कभी नहीं देखी थी। मतदान करते समय नागरिकों को इस बात का भी ख्याल रखना पड़ेगा कि कौन-सा दल भारत की अखंडता और एकता की रक्षा कर सकता है।
भारत के चुनावों पर इस समय दुनिया की नजर है। एक मजबूत, भागीदारीपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया वैश्विक मंच पर एक जीवंत लोकतंत्र के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ा सकती है। २०२४ के चुनावों के माध्यम से लोकतंत्र को बचाने में भारतीय नागरिकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। सक्रिय रूप से भाग लेने, सूचित विकल्प चुनने और निर्वाचित प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने से, मतदाता लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रख सकते हैं और अपने देश के भविष्य को मनचाहा आकार दे सकते हैं। यह नागरिकों के लिए अपने अधिकारों का प्रयोग करने, अपनी चिंताओं को व्यक्त करने और एक लोकतांत्रिक और समावेशी भारत में योगदान देने का समय है।
यहां इस बात का जिक्र भी जरूरी है कि भारत का लोकतांत्रिक पतन इस समय बहुत चिंता का विषय है। पिछले कुछ वर्षों में देश में लोकतांत्रिक मानदंडों और संस्थानों में गिरावट के कई संकेतक सामने आए हैं। बोलने और प्रेस की स्वतंत्रता पर खतरे बढ़ चुके हैं। मीडिया का एक हिस्सा अब सरकारी तंत्र बन चुका है। जो पत्रकार सरकार के विचारों के साथ नहीं है, उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। सरकार की आलोचना करनेवाले पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया जाता है या उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा है। भारत की लोकतांत्रिक गिरावट ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया है, प्रâीडम हाउस जैसे संगठनों ने इसकी स्थिति को ‘स्वतंत्र’ से घटाकर ‘आंशिक रूप से मुक्त’ कर दिया है।
भविष्य का भारत वैâसा होगा, ये सब भारत के नागरिकों के विवेक और बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय पर टिका हुआ है। उम्मीद है कि भारत के नागरिक अपनी इस लोकतांत्रिक जिम्मेदारी को समझेंगे और देश के लोकतंत्र और इसकी प्रणालियों को बचाने हेतु मतदान केंद्र पर जाकर अपने अधिकार का प्रयोग करेंगें।
(स्तंभ लेखक आर्थिक और समसामयिक विषयों पर चिंतक और विचारक है)

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