मैं आज भी इतिहास ढो रहा हूं।
पीछे जाकर रो रहा हूं।
वर्तमान खो रहा हूं
अलग अलग पो रहा हूं।
जो होना था वह छोड़कर
कुछ और ही हो रहा हूं।
दुर्गति यह कि मैं सो रहा हूं।
अमृत की जगह विष बो रहा हूं।
बाजू वाले की जेब टो रहा हूं।
मैं साफ कहता हू कि मैं
सब कुछ खो रहा हूं।
व्यर्थ हो रहा हूं।
गुलामी ढो रहा हूं।।
-अन्वेषी