हृदयनारायण दीक्षित
भारतीय प्रशासनिक सेवा ने बड़ा लंबा सफर तय किया है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक प्रशासन का मुख्य लक्ष्य लोकहित ही रहा है। उनकी योग्यता और प्रतिभा बेजोड़ रही है। लेकिन तमाम ज्ञान गरिमा से युक्त होने के बावजूद वे भारतीय जनमानस के आत्मीय हित साधक नहीं बन सकते। प्रशासन और भारतीय जनता के मध्य दूरी है। प्रशासन एक तरह से स्थाई कार्यपालिका है। इसके कामकाज में आमजनों के साथ संपर्कों में संवेदनशीलता का अभाव देखा गया है। संविधान सभा में अनेक सदस्यों ने अंग्रेजीराज के सिविल ढांचे को समाप्त करने की मांग की थी। सरदार पटेल ने कहा था कि, ‘हमने इनके साथ कठिन समय में काम किया है। मेरे ख्याल से इन्हें बनाए रखना जरूरी है।’ पटेल ने स्वतंत्र भारत के सिविल अधिकारियों की पहली खेप को २१ अप्रैल को १९४७ में संबोधित किया था। यह एक महत्वपूर्ण क्षण था। इसीलिए इस तिथि को सिविल सेवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। तब से ७७ वर्ष बीत गए।
संवेदनशील प्रशासन राष्ट्रीय अपरिहार्यता है। उत्कृष्ट प्रशासन प्राचीन काल से ही किसी न किसी रूप में समाज के लिए जरूरी रहा है। हिंदुस्थान का वर्तमान प्रशासन प्राचीन काल की प्रशासनिक व्यवस्थाओं का विकास है। इसका प्राचीनतम स्वरूप ऋग्वैदिक काल में भी मिलता है। ऋग्वेद काल में समाज की सबसे छोटी इकाई कुटुंब या परिवार थी। परिवार का सबसे वरिष्ठ कुटुंब का प्रधान संचालक होता था। घर के मुखिया की बात सब लोग मानते थे। अनेक परिवारों से मिलकर बनने वाली राजनीतिक इकाई ‘ग्राम‘ थी। राजनीतिक दृष्टि से ग्राम का प्रमुख ग्रामणी कहलाता था। वह स्वयं ग्राम का प्रशासनिक अधिकारी भी था। अनेक ग्रामों से बनी बड़ी इकाई विश कहलाती थी। विश के प्रशासनिक अधिकारी को विशपति कहते थे। विश से बड़ी इकाई जन होती थी। जन के संचालक प्रशासनिक अधिकारी को गोप कहा जाता था। गोप प्राय: राजा ही होते थे। ऋग्वैदिक काल में गणतंत्र भी था। राजा निरंकुश नहीं था। राजा राज्याभिषेक के समय प्रजा के हित में काम करने की शपथ लेता था। राजा को जवाबदेह बनाने वाली दो लोकतांत्रिक संस्थाएं भी थीं। इन्हें सभा और समिति कहा गया। लुडविग ने लिखा है, ‘समिति जनसाधारण की संस्था थी। सभा वरिष्ठों की संस्था थी।’ उस समय के नियम सबको मान्य थे।
नियम या विधि को ऋग्वेद में ‘धर्म्‘ कहा गया है। ग्रिफ्थ ने धर्म् का अनुवाद लॉ या लॉज किया है। ग्राम में न्याय करने के लिए ग्रामवादिन नाम की न्यायिक संस्था भी थी। वैदिक काल के बाद सिंधु घाटी की सभ्यता का समय (२२५० ईसा पूर्व से १७५० ईसा पूर्व तक) आता है। व्हीलर और पिगट के अनुसार मोहन-जोदाड़ो और हड़प्पा के राज्य ठीक से संचालित थे। सिंधु सभ्यता में सड़कें सुनियोजित थीं। जल निकासी की व्यवस्था थी। अनुमान किया जाता है यहां नागरिक संस्थाएं थीं। पिगट के अनुसार व्यवस्थित निर्माण कार्य से अनुमान लगता है कि यहां नगरपालिकाएं जैसी संस्थाएं भी रही होंगी। संपूर्ण सिंधु क्षेत्र में प्रशासन व्यवस्थित था। उत्तर वैदिक काल में शक्तिशाली राजाओं का उदय दिखाई पड़ता है। उत्तर वैदिक काल में प्रशासनिक काम करने वालों की संख्या बड़ी है। महाभारत में बड़े राज्यों का उल्लेख है।
चंद्रगुप्त मौर्य के काल में भारत ने पहली बार राजनैतिक एकता हासिल की। यह विशाल साम्राज्य था। चंद्रगुप्त मौर्य स्वयं में योग्य प्रशासक थे। कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मैगस्थनीज की इंडिका, अशोक के शिलालेख व यूनानी साहित्य में मौर्य शासन व्यवस्था की तमाम जानकारियां हैं। भारतीय प्रशासन के विकास में मौर्य शासन के अनेक तत्व हैं। हिंदुस्थान परंपरा प्रिय देश है। यहां के समाज में कालवाह्य को छोड़ने और कालसंगत को जोड़ने की क्षमता रही है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक लोक प्रशासन को जनोन्मुखी बनाने के प्रयास चलते रहे हैं। आदर्श राजव्यवस्था के संवेदनशील प्रशासन के विवरण कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलते हैं और महाभारत में भी। कौटिल्य संवेदनशील प्रशासन के व्याख्याता हैं। वाल्मीकि की रामायण में श्रीराम की आदर्श राजव्यवस्था के उल्लेख हैं। वाल्मीकि द्वारा लिखी आदर्श राजव्यवस्था काल्पनिक नहीं है। तुलसीदास ने आज से ४५० वर्ष पहले रामचरितमानस लिखी थी। रामचरितमानस में भी आदर्श राजव्यवस्था की खूबसूरत झांकी है।
राम राज्य कल्पना नहीं है। आदर्श राजव्यवस्था के सूत्र ऋग्वेद से लेकर आधुनिक काल तक एक जैसे हैं। अंग्रेजी सत्ता के समय हिंदुस्थान को साम्राज्यवाद का शोषण क्षेत्र बनाने की कोशिशें की गईं। अंग्रेजी सत्ता का उद्देश्य हिंदुस्थान की जनता को सुंदर प्रशासन देना नहीं था। वे यहां से कच्चा माल इंग्लैंड ले जाते थे। उसके उपयोग से अंग्रेजी ब्रांड की वस्तुएं बनाते थे। यहां से कपास इंग्लैंड जाता था। वहां से ‘मेड इन इंग्लैंड‘ के कपड़े बनकर आते थे। भारतीय व्यापारी और किसान कर्ज में डूब गए थे। अंग्रेजों का प्रशासन संवेदनहीन था। ईसाई मिशनरी अंग्रेजी सत्ता के दुरुपयोग से धर्मांतरण कराती थीं। लेकिन भारतीय संस्कृति और दर्शन का डंका चारों ओर पिट रहा था। भारतीय प्रशासन के लिए इंग्लैंड से सिविल अधिकारी आते थे।
मैक्समूलर भारतीय दर्शन और संस्कृति के व्याख्याता थे। उन्होंने हिंदुस्थान आने वाले सिविल अधिकारियों को पढ़ाया था कि दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क भारतवासियों का है। संस्कृत दुनिया की आदर्श भाषा है। भारतीय दर्शन विज्ञान को ध्यान से समझ कर स्वयं का निजी जीवन और समाज को श्रेष्ठ बनाया जा सकता है। ये बातें हिंदुस्थान का कोई व्यक्ति नहीं कह रहा था। जर्मनी के विद्वान मैक्समूलर हिंदुस्थान जाने वाले सिविल अधिकारियों को हिंदुस्थान को समझने की प्रेरणा दे रहे थे। उनका सारा भाषण ‘व्हाट इंडिया वैâन टीच अस‘ के नाम से संकलित है। अंग्रेजी प्रशासकों को हिंदुस्थान समझना जरूरी था। मोटे तौर पर अंग्रेजी शासन और वैधानिक व्यवस्था की वास्तविक शुरुआत भारत शासन अधिनियम १९३५ से होती है। संविधान निर्माताओं ने भारतीय प्रशासन के गठन में १९३५ के अधिनियम की बातें लगभग यथावत रखी हैं। राजनैतिक कार्यपालिका विधायी सदनों के प्रति जवाबदेह है। मंत्रिगणों को संबंधित प्रश्नों के उत्तर तैयार कराने में प्रशासन की मुख्य भूमिका होती है। इसकी तैयारी में हुई त्रुटि का खामियाजा सदन में मंत्री को भुगतना पड़ता है। इस महत्वपूर्ण दिवस पर सिविल अधिकारियों की जिम्मेदारियों और उनकी कठिनाइयों पर चर्चा होनी ही चाहिए।
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के
पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार हैं।)