सैयद सलमान मुंबई
छात्र राजनीति से भाकपा और भाकपा से कांग्रेस में आकर राहुल गांधी के करीबी बने कन्हैया कुमार काफी चर्चा में हैं। उन्हें दो बार के भाजपा सांसद मनोज तिवारी के सामने उत्तर-पूर्वी दिल्ली से चुनावी मैदान में उतारा गया है। दोनों मूल रूप से बिहार के हैं और उत्तर भारतीय मतदाता इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में रहते हैं। अपने क्षेत्र की चुनावी रणनीति में उलझे कन्हैया वैâसे अपनी नैया पर लगाएंगे, इस पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। लेकिन एक बड़ी वजह उनके चर्चा में आने की यह है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बाद देश के विभिन्न हिस्सों से उन्हें स्टार प्रचारक के रूप में बुलाने की भारी मांग है। कांग्रेस, सपा, राजद सहित इंडिया गठबंधन के कई दल उन्हें प्रचार के लिए अपने यहां बुला रहे हैं। इससे यह तो साबित होता है कि वह आम जनों में अपनी वत्तृâत्व कला से कनेक्ट करने में माहिर हैं। युवाओं में भी उनका क्रेज है। लेकिन सवाल यही है कि क्या वह अपनी सीट पर भी उसी तरह लोकप्रियता साबित कर पाएंगे। उनका असल इम्तेहान तो अपने ही रणक्षेत्र में होना है।
परिवर्तन की आस?
पहले चरण के मतदान से जहां उन क्षेत्रों से लड़ने वाले प्रत्याशियों को थोड़ी राहत मिली है, वहीं प्रमुख दलों की धड़कनें बढ़ गई हैं। ठीक उसी तरह जैसे परीक्षा देने वाले किसी विद्यार्थी का पहला पर्चा हो जाए और अगले पर्चे पर ध्यान देना हो। वोटिंग पैटर्न के लिहाज से सबसे ज्यादा चिंता उस पार्टी को हो रही है, जो ४०० पार का नारा दे रही थी। भाजपा शासित राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और यूपी में भी वोट प्रतिशत में गिरावट दर्ज किया जाना, भाजपा नेताओं की पोल खोल रहा है। मतदाताओं की बेरुखी का आलम यह है कि पिछले चुनावों की तुलना में कई राज्यों में वोट प्रतिशत में भारी गिरावट आई है। इससे पहले राष्ट्रीय राजनीति में परिवर्तन के नाम पर मोदी के पक्ष में वोट प्रतिशत में लगातार बढ़ोतरी देखी गई थी। अब वो मायाजाल टूटता नजर आ रहा है। अब जनता को भाजपा नेताओं की जुमलेबाजी और कोरे आश्वासनों में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसलिए उसमें उदासीनता है और जो मतदाता निकल रहे हैं, वो ज्यादातर परिवर्तन की आस में मतदान कर रहे हैं। अगले चरण के मतदान में स्थिति और स्पष्ट होगी।
भाषाई गरिमा
समाज में महिलाओं को सम्मान देने की बात से सभी सहमत हैं। हर राजनीतिक दल अपने दल से जुड़ी महिलाओं को यथोचित सम्मान दे रहा है। उन्हें टिकट देकर स्थानीय निकाय से लेकर विधानसभा और लोकसभा भेज रहा है। यहां तक कि प्रतिभा पाटील देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं और आज भी द्रौपदी मुर्मू के रूप में महिला राष्ट्रपति देश की प्रथम नागरिक हैं। लेकिन महिलाओं को लेकर आज भी गालियां देने के चलन में कमी नहीं आई है। बिहार में तेजस्वी यादव की जनसभा में चिराग पासवान की मां को कहे अपशब्द पर सियासत गर्म है। एनडीए ने चुनाव आयोग से इसकी शिकायत की है। चिराग ने भी तेजस्वी को खत लिखकर विरोध जताया है। महिलाओं के प्रति अभद्र टिप्पणी नहीं होनी चाहिए, इस बात को स्वीकार करते हुए तेजस्वी की बहन मीसा यादव ने भी चिराग से सवाल किया है कि उनका मुंह उस समय क्यों बंद हो गया था, जब सम्राट चौधरी ने रोहिणी आचार्य पर अभद्र टिप्पणी की थी? मीसा का सवाल भी जायज है। भाषाई गरिमा का ख्याल हर पक्ष को रखना चाहिए।
अपनी दुकान देखें
इंडिया गठबंधन में मुंबई की एक सीट पर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष और कांग्रेस के बीच पेंच फंस रहा था। लेकिन जिस खूबसूरती से दोनों दलों ने उस समस्या को हल किया, उसकी तारीफ हो रही है। शिवसेना के अनिल देसाई या कांग्रेस की वर्षा गायकवाड़ की वजह से ऐसा माहौल बना था। लेकिन अंतत: अनिल देसाई के नाम पर ही सहमति बनी। यही नहीं, खुद वर्षा गायकवाड़ ने महाविकास आघाड़ी की बैठक में खुले दिल से अनिल देसाई को जिताने का संकल्प लिया और सत्तापक्ष को उखाड़ फेंकने की बात कही। जब तक दक्षिण मध्य मुंबई की इस सीट पर सहमति नहीं बनी थी, तब तक खामोश रहे शिंदे के साथी बने पूर्व सांसद और पूर्व मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा कुछ नहीं बोले। अब अचानक उन्हें दलित, आदिवासी और पिछड़ी जाति से प्रेम जागा और वह वर्षा की तरफदारी में बोलने लगे। वर्षा ने भी उन्हें अपने दल की चिंता करने की बात कहकर मुंहतोड़ जवाब दिया। अपनी दुकान के कच्चे मालों पर ध्यान देने के बजाय दूसरों के घरों में ऐसे लोग भला झांकते ही क्यों हैं?
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)