श्रीकिशोर शाही
पंजाब में बठिंडा की सीट काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस सीट से अकाली दल की हरसिमरत सिंह कौर सांसद हैं। इस सीट पर १ जून को चुनाव होना है, पर अभी तक यहां से उम्मीदवार की घोषणा अकाली दल ने नहीं की है। आपको इसी स्तंभ में हमने बताया था कि हरसिमरत कौर ने कहा था कि अगर वह चुनाव लड़ेंगी तो बठिंडा से ही लड़ेंगी। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि इस सीट से उम्मीदवार का पैâसला पार्टी ही करेगी। यहां तक तो सब कुछ ठीक नजर आ रहा है, पर अकाली दल के अध्यक्ष तो उनके पति सुखबीर सिंह बादल ही हैं। अब अंदरखाने से ऐसी खबरें आ रही हैं कि बठिंडा सीट से सुखबीर सिंह बादल खुद चुनाव लड़ सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो हरसिमरत का क्या होगा? कहीं बठिंडा सीट की उम्मीदवारी को लेकर घर के अंदर पति-पत्नी के बीच ही तो कोई पेंच नहीं फंस गया? इस तरह की अटकलें राजनीतिक गलियारों में तेज हैं। अब असल बात क्या है यह राज तो फिलहाल अंदरखाने में ही दफन है। वैसे कुछ तो बात जरूर है कि अभी तक उम्मीदवार की घोषणा नहीं की गई है। उम्मीद तो यही करते हैं कि चुनाव लड़ने को लेकर पति-पत्नी के बीच कोई विवाद पैदा न हुआ हो, क्योंकि आपसी संबंधों में चुनाव को लेकर कड़वाहट ठीक नहीं। बहरहाल, इस मामले में इंतजार करते हैं और देखते हैं कि पति-पत्नी में उम्मीदवारी को लेकर किसकी जीत होती है।
ये विकास का बहिष्कार है
अब विकास का भी कहीं कोई बहिष्कार कर सकता है। हर शख्स चाहता है कि उसका क्षेत्र खूब विकास करे। वहां सड़कें बनें, अस्पताल बने, आने-जाने की सुविधा हो, बच्चों के पढ़ने के लिए स्कूल हो, हर परिवार को रोजगार मिले आदि-आदि। देश में विकास का खूब झुनझुना बज रहा है और चारों ओर खुशहाली के माहौल का माहौल बनाया जा रहा है। वैसे पहले चरण के मतदान में कई जगह पर मतदान का बहिष्कार भी देखने को मिला। बिहार में एक गांव ने मतदान का पूरी तरह बहिष्कार कर दिया। औरंगाबाद के नेहुता गांव से खबर आई कि वहां एक भी वोट नहीं पड़ा और बूथ पर सन्नाटा पसरा हुआ है। मीडिया के जरिए जब यह खबर चुनाव अधिकारियों तक पहुंची तो वे भागे-भागे उस गांव तक पहुंचे। गांव वालों का कहना था कि उनके क्षेत्र में कोई विकास नहीं हुआ है इसलिए वह किसी को भी वोट नहीं देंगे और मतदान का बहिष्कार करेंगे। बेचारे चुनाव अधिकारी अपने अमले के साथ गांव वालों को समझाते-बुझाते और मिन्नतें करते रहे। सुनने में तो यही आया कि दो-चार गांव वाले को मनाने में वे सफल भी रहे और यह बूथ निल बटे सन्नाटे की वोटिंग से बच गया। इसी तरह उत्तराखंड के टिहरी नगर पंचायत के लंबगांव में वॉर्ड नंबर ३ और ४ में गांव वालों ने मतदान का पूरी तरह बहिष्कार कर दिया था। यहां पर दोपहर तक सिर्फ एक वोट पड़ा था। इन दोनों गांव के अलावा और भी कई जगह से मतदान के बहिष्कार की खबरें आई हैं। लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व पर लोगों की ऐसी बेरुखी चिंताजनक है। वाकई ऐसे नेताओं का तो बहिष्कार होना ही चाहिए, जो वोट लेने के बाद लापता हो जाते हैं। उनके दर्शन सिर्फ ५ साल बाद ही होते हैं, जब चुनाव का समय आता है। ऐसे में जब जनता के हाथ में उन्हें चुनने का समय आता है तो वोट देने की बजाय वे घर में बैठना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। नेताओं को इस पर सोचना पड़ेगा, वरना बहिष्कार का ये संक्रमण और क्षेत्र में भी पसर सकता है।
हलवा-पूड़ी का हिसाब
शराब घोटाला तो कहीं नीचे दब गया है। अब दिल्ली में बात हलवा-पूड़ी की हो रही है। तो क्या हलवा-पूड़ी में भी कोई घोटाला हो गया? अब आम आदमी पार्टी तो ईडी पर इसी घोटाले का आरोप लगा रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रसाद में एक दिन हलवा-पूड़ी क्या खा लिया, ईडी ने मीडिया को बता दिया कि केजरीवाल जेल में आलू की पूड़ी, मिठाइयां और आम गटक रहे हैं। इसके साथ ही चीनी वाली चाय भी पी रहे हैं, ताकि वे बीमार पड़ जाएं, उनका शुगर लेवल काफी हाई हो जाए और इस मेडिकल ग्राउंड पर वे जमानत ले सकें। दूसरी तरफ दिल्ली उत्तर-पूर्व के भाजपा उम्मीदवार मनोज तिवारी अपना चुनाव प्रचार छोड़कर पूरी तरह केजरीवाल के भोजन के पीछे पड़े हुए हैं। केजरीवाल के वकील ने कोर्ट में ईडी की इस हरकत की खूब आलोचना की। अब `आप’ का कहना है कि यह सब केजरीवाल को बदनाम करने के लिए किया जा रहा है। केजरीवाल जेल में वही खा रहे हैं, जिसकी उन्हें अनुमति दी गई है। केजरीवाल ने जेल में जो मिठाई खाई, वह शुगर प्रâी मिठाई थी। इसके खाने से शुगर नहीं बढ़ता। आम और आलू की पूड़ी नवरात्रि के प्रसाद में आई थी। ऐसे में मीडिया फालतू का शोर मचा रहा है। अब चुनाव के वक्त विकास की बजाय हलवा-पूड़ी की बात हो रही है, अजीब बात है न?