अरुण कुमार गुप्ता
मृतक की लगाई चुनावी ड्यूटी
हर देशवासी का कभी न कभी सरकारी मुलाजिमों से जरूर पाला पड़ा होगा और इन सरकारी मुलाजिमों की कार्य पद्धति से भी देशवासी जरूर रूबरू हुए होंगे, लेकिन गोंडा में सरकारी मुलाजिमों की लापरवाही का एक ऐसा वाकया सामने आया, जिसकी चर्चा चारों तरफ हो रही है। हुआ यूं कि लोकसभा चुनाव के लिए गठित पोलिंग बूथ दलों के प्रशिक्षण में उतरौला राजकीय पॉलिटेक्निक के प्रवक्ता रिंकू मणि त्रिपाठी और धानेपुर में तैनात रहे सहायक प्रबंधक सुरेंद्र कुमार का नाम पुकारा जा रहा था। वहां मौजूद दूसरे कार्मिकों ने जब बताया कि रिंकू मणि नौकरी छोड़ गए हैं, वहीं सुरेंद्र कुमार की मृत्यु हो चुकी है तो अधिकारी बगलें झांकने लगे। अब मुख्य विकास अधिकारी एम. अरुन्मोली ने पोलिंग बूथ दलों में सेवानिवृत्त और मृतक कार्मिकों के नाम शामिल करने को गंभीरता से लेते हुए २० विभागों के अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। बता दें कि जिला निर्वाचन अधिकारी की ओर से सभी विभागों से पोलिंग बूथ दलों के लिए कर्मचारियों की सूची मांगी जाती है। विभागों से मिली सूची के आधार पर एनआईसी की ओर से मतदान केंद्रों पर कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है। पोलिंग बूथ दल के पीठासीन अधिकारी के प्रशिक्षण में प्रवक्ता, प्रधानाध्यापक, फार्मासिस्ट, प्रबंधक और वरिष्ठ सहायकों को बुलाया गया। कर्मचारी अनुपस्थित मिलने पर खोजबीन गई तो पता चला कि जिले में रुपईडीह, झंझरी, परसपुर, मसकनवा और मुजेहना खंड शिक्षाधिकारी कार्यालय सहित ११ कार्यालयों से सेवानिवृत्त, मृतक, नौकरी छोड़ने और अन्य जिलों में स्थानांतरण के बाद भी उनके नाम पोलिंग बूथ दलों की सूची में शामिल कर प्रस्ताव एनआईसी को भेज दिया गया। पोलिंग बूथ दल गठन के प्रभारी एवं सीडीओ ने मामले में नाराजगी जाहिर करते हुए जिला लेखा परीक्षा अधिकारी, पंचायती राज, प्रोबेशन, बीएसए और डीआईओएस समेत २० विभागों के अधिकारियों को नोटिस देकर जवाब तलब किया है।
भाजपा की अपनों से लड़ाई
बहुजन समाजवादी पार्टी को भारतीय जनता पार्टी की बी टीम तक कहा जाने लगा था, लेकिन इस बार चुनाव में भले ही देर से लेकिन बसपा ने बहुत सोच-समझकर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। इस बार बसपा के उम्मीदवार काफी हद तक भाजपा का ही खेल बिगाड़ने वाले हैं। बसपा ने पूर्व विधायक महेंद्र सिंह यादव को सीतापुर लोकसभा सीट से मैदान में उतारा है। इससे पहले भाजपा वर्तमान सांसद राजेश वर्मा और कांग्रेस पूर्व विधायक राकेश राठौर को प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। महेंद्र के चुनाव मैदान में उतरने से अब मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। महेंद्र को उम्मीदवार बनाए जाने को भाजपा के मतों को अपने पाले में लाने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। मूल रूप से हरदोई के रहने वाले महेंद्र वर्ष २०१७ में भाजपा के टिकट पर बिसवां से विधायक चुने गए थे। वर्ष २०२२ में उन्होंने दावेदारी की थी, लेकिन टिकट नहीं मिल सका था। इस बार लोकसभा चुनाव के लिए भी वह भाजपा से दावेदार थे, लेकिन टिकट राजेश वर्मा को मिल गया। इसके बाद से वह बसपा से टिकट के लिए प्रयास कर रहे थे। ऐसे में अब यही कहा जा रहा है कि भाजपा को अब अपनों से ही लड़ना होगा।
राजनाथ सिंह की घेराबंदी
लखनऊ लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार राजनाथ सिंह की इस बार तगड़ी घेराबंदी की गई है। समाजवादी पार्टी और बसपा ने इस बार राजनाथ सिंह के सामने स्थानीय उम्मीदवार उतारकर लड़ाई को रोचक बना दिया है। बता दें कि १९९६ से सपा, कांग्रेस सहित अन्य पार्टियां लखनऊ में कोई न कोई बाहरी नामचीन चेहरा उतार रही थी। पहली बार विपक्ष इस सीट पर भाजपा को कड़ी टक्कर देता हुआ नजर आ रहा है। लखनऊ, अदब और तहजीब के साथ सियासत का ऐसा शहर है, जहां से होकर दिल्ली के दरवाजे खुलते हैं। ऐसे में सभी पार्टियां उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पर कब्जा जमाना चाहती हैं। यही वजह है कि बीते तीन दशक में पहली बार सपा, बसपा और कांग्रेस सहित प्रमुख विपक्षी दलों ने किसी बाहरी नामचीन या फिर बॉलीवुड के सितारों पर दांव नहीं लगाया है। इस बार गठबंधन के तहत सपा ने लखनऊ मध्य के विधायक एवं पार्टी के कद्दावर नेता रविदास मेहरोत्रा और बसपा ने लखनऊ उत्तरी से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके सरवर अली को मैदान में उतारकर चुनाव को रोमांचक बना दिया है। जीत का ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो मतगणना के बाद ही पता चलेगा, लेकिन चर्चा है कि कई साल बाद विपक्ष ने भाजपा को घेरने के लिए मजबूत घेराबंदी की है।