सामना संवाददाता / मुंबई
आज हमारे जीवन में प्लास्टिक की वस्तुएं हवा और पानी की तरह ही एक अहम हिस्सा बन गई हैं। हमारे मोबाइल फोन, लैपटॉप से लेकर खाने-पीने के बर्तनों तक सबकुछ में प्लास्टिक है। इसका इस्तेमाल इतना अधिक होने लगा है कि ये हवा और पानी तक को भी प्रदूषित करने लगा है। भोजन से लेकर पेय पदार्थ तक को हम प्लास्टिक से बने बोतल और अन्य वस्तुओं में रखकर खाते-पीते हैं। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि प्लास्टिक हमारे दिमाग में घुस रहा है और ब्रेन को डैमेज कर रहा है। हालिया अध्ययन में बताया गया है कि एटम बम के बाद प्लास्टिक दूसरा सबसे बड़ा घातक आविष्कार है।
हाल ही में एनवायर्नमेंटल हेल्थ परस्पेक्टिव जर्नल में पब्लिश एक अध्ययन के मुताबिक, प्लास्टिक के छोटे कण यानी माइक्रोप्लास्टिक हमारी दिमागी सेहत को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू मैक्सिको के रिसर्चर्स ने यह अध्ययन किया है। उन्होंने बताया है कि प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण हमारे शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों जैसे लीवर, किडनी और ब्रेन तक पहुंचकर उन्हें डैमेज कर रहे हैं। लंबे वक्त में इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। न्यूरो फिजिशियन के मुताबिक ये प्लास्टिक पहले तो हमारी स्किन, सांस और खाने के जरिए शरीर के अंदर जाता है। फिर ये हमारे खून में शामिल होकर धीरे-धीरे सभी ऑर्गन में जमा हो जाता है। हमारे ऑर्गन में जमा हो रहे ये प्लास्टिक पार्टिकल्स बहुत छोटे हैं। इनका आकार २० माइक्रोमीटर से भी छोटा है। तभी ये तमाम बैरियर्स पार करके लीवर, किडनी और ब्रेन जैसे अंगों तक पहुंच रहे हैं। प्रकृति ने हमारे सभी ऑर्गन्स को झिल्ली के अंदर सुरक्षित रखा है। ये झिल्लियां इन ऑर्गन्स को हर तरह के खतरे से बचाती हैं। हमारी आंखों को धोखा दे चुके प्लास्टिक के ये बेहद महीन कण इन झिल्लियों को भी पार कर बॉडी ऑर्गन्स तक पहुंच जाते हैं। इन प्लास्टिक पार्टिकल्स का हमारे मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इनके चलते न्यूरोडेवलपमेंटल या न्यूरोडीजेनेरेटिव खतरे हो सकते हैं। इससे दिमागी कामकाज पर बुरा असर पड़ता है और पार्किनसंस जैसी बीमारियों का खतरा हो सकता है।
खतरे में लीवर और किडनी
द लैंसेट में पब्लिश एक अध्ययन के मुताबिक, माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी से डाइजेस्टिव सिस्टम में कमजोरी और लीवर के सेलुलर रिएक्शन में गड़बड़ी आ सकती है। इसके साथ ही हाल के वर्षों में पॉलीस्टाइरीन माइक्रोप्लास्टिक्स किडनी में सूजन का बड़ा कारण है और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस भी बढ़ा रहा है। यह हेल्थ कंडीशन अगर लंबे समय तक बनी रहे तो क्रॉनिक किडनी डिजीज होने की आशंका बढ़ जाती है, जो बाद में किडनी फेल्यूर का कारण बन सकती है।