अजय भट्टाचार्य
एक और दागी भाजपा में
वॉशिंग मशीन में एक और दागी पवित्र होने के लिए घुस गया है। बिहार के यूट्यूबर मनीष कश्यप ने भाजपा का झंडा-डंडा थाम लिया है। त्रिपुरारी तिवारी उर्फ मनीष कश्यप २०२० में बिहार की चनपटिया विधानसभा सीट से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़कर हार चुके हैं। उसके खिलाफ कई केस दर्ज हैं। एक महीना पहले पूर्वी चंपारण में बिना इजाजत दो जगहों पर चुनाव प्रचार करने के कारण उसके खिलाफ चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का केस दर्ज हुआ था। इसके अलावा उसके यूट्यूब वीडियो के मामले में केस दर्ज हो चुके हैं। पिछले साल राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार भी हो चुके हैं। उनके खिलाफ बेतिया जिले में ७ केस दर्ज हैं। उन पर भाजपा विधायक ने जान से मारने का आरोप भी लगाया था। इसके अलावा एक बैंक मैनेजर से मारपीट करने के मामले में उनके घर कुर्की-जब्ती भी हुई थी। कई मामलों में जमानत पर चल रहे मनीष की किस खूबी पर भाजपा फिदा हो गई कि उसे सीधा पार्टी का पट्टा पहना दिया! जवाब यह है कि बंदे ने पश्चिमी चंपारण से निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान किया था। इससे भाजपा उम्मीदवार संजय जयसवाल की जीत का रास्ता बंद हो रहा था। चुनावी नजाकत देखते हुए भाजपा ने मनीष को अपना बनाने का दाव खेला और उसके गले में कमल छाप पट्टा डाल दिया गया।
तुरुप का पत्ता
परषोत्तम रूपाला के बयान को लेकर राजपूत रजवाड़ों भाजपा से नाराजगी यथावत बरकरार है। विवाद शुरू होने से पहले, राजकोट लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र को भाजपा के लिए आसान माना जाता था। रूपाला की गलती की बदौलत अब भाजपा के लिए यह आसान नहीं होगा। मामले को और दिलचस्प बनाने के लिए कांग्रेस ने कड़वा पाटीदार रूपाला के खिलाफ लेउवा पाटीदार परेश धनानी को उम्मीदवारी दी है। राजकोट में कड़वा पाटीदारों की आबादी लेउवाओं से काफी कम है। लेउवा समुदाय के नेताओं के आदेशों का पालन करने के लिए जाने जाते हैं। लिहाजा, अब इस सीट पर हार-जीत के लिए खोडलधाम ट्रस्ट के अध्यक्ष नरेश पटेल को तुरुप का पत्ता माना जा रहा है। नरेश पटेल लेउवा पाटीदारों पर प्रभाव रखते हैं। पटेल ने खोडलधाम मंदिर के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उन्हें न केवल गुजरात में बल्कि पूरे विश्व में लेउवाओं के लिए `पोप’ का दर्जा प्राप्त है। देखना यह है कि ७ मई को नरेश पटेल का समर्थन किसे मिलता है। बीते साल विधानसभा चुनाव के दौरान उनके कांग्रेस में शामिल होने की अटकलों का बाजार गरम हुआ था। २००९ में राजकोट लोकसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार कड़वा पाटीदार किरण पटेल चुनाव हार गए थे, क्योंकि तब नरेश पटेल ने कांग्रेस के कोली उम्मीदवार कुंवरजी बावलिया का समर्थन करने का फैसला किया था।
टीस
कहते हैं कि तलवार से लगा घाव भर जाता है लेकिन जबान से कही गई बात से लगा घाव कभी नहीं भरता। बिहार में पूर्णिया लोकसभा सीट पर निर्दलीय चुनाव मैदान में कूदे राजेश रंजन यादव उर्फ पप्पू यादव के शब्द बाणों से आहत राजद नेतृत्व खासकर तेजस्वी यादव हर कीमत पर पप्पू यादव की हार चाहते हैं, भले इसके लिए उनका भी प्रत्याशी क्यों न हार जाए। पिछले दिनों पूर्णिया की चुनावी रैली में तेजस्वी के बयान का यही अर्थ है। इसकी वजह यह है कि २०१५ में पप्पू यादव ने तेजस्वी यादव की हार की भविष्यवाणी की थी। उन्होंने कहा था कि अगर तेजस्वी चुनाव जीत गए तो वो राजनीति छोड़ देंगे। पप्पू यादव की इस बात की टीस तेजस्वी के दिल में आज भी है। तेजस्वी ने पिछले विधानसभा चुनाव में बिहार की सभी २४३ विधानसभा सीटों पर चुनाव प्रचार किया, लेकिन सिर्फ एक सीट पर ही वैंâप किया। वो सीट थी मधेपुरा, जहां से पप्पू चुनाव लड़ रहे थे। लोकसभा चुनाव में भी तेजस्वी ने पहली बार पूर्णिया सीट पर खुद २ दिन तक वैंâप किया। पप्पू को पूर्णिया से हराने की ऐसी ही कोशिश १९९९ के चुनाव में लालू यादव ने भी की थी, तब लालू ने ५ दिन तक पूर्णिया में वैंâप किया था, लेकिन पप्पू यादव भारी वोटों के अंतर से जीते थे। तेजस्वी अपने पिता के अधूरे काम को पूरा करने में जुटे हैं। पूर्णिया का चुनाव एमवाई समीकरण का लिटमस टेस्ट है, जिसका फायदा राजग प्रत्याशी को मिल सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)