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करीब आया पांचवां-छठा चरण…सुलतानपुर-अमेठी में आने लगी ‘गरमाहट’…इंडिया गठबंधन के हल्ला बोल से अवध में भाजपा डगमगाई

विक्रम सिंह / सुलतानपुर

देश में लोकसभा चुनाव हो रहे हैं और यूपी के अवध क्षेत्र के वीआईपी संसदीय क्षेत्रों अमेठी-सुलतानपुर में इस बार हवा ‘गरम’ है। अमेठी में राहुल गांधी की उम्मीदवारी का औपचारिक एलान अभी बाकी है, लेकिन कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने मान लिया है कि इस बार उनकी वापसी हो रही है। यहां पांचवें चरण में होने वाले मतदान के लिए शुक्रवार से नामांकन प्रक्रिया भी शुरू हो गई, वहीं सुलतानपुर में २५ मई को छठा चरण में होने वाले मतदान के लिए २९ मई से पर्चा दाखिला शुरू होने जा रहा है।
दशक भर पूर्व तक अविभाजित सुलतानपुर जनपद का ही हिस्सा रहीं इन दोनों सीटों पर एक वक्त था कि कांग्रेस का प्रभुत्व था। अब पुनः पांच वर्षों के अंतराल के बाद अमेठी राहुल गांधी से जुड़ने को बेताब नजर आ रही है। कांग्रेसियों ने पलक पाँवड़े बिछा दिए हैं। वहीं सुलतानपुर में भाजपा प्रत्याशी पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी को इस बार इंडिया गठबंधन के सपा प्रत्याशी रामभुआल निषाद से पीडीए फार्मूले पर कड़ी चुनौती मिलने की प्रबल संभावना है।
पहले चर्चा अमेठी की। चापलूसों से घिरी रहने वाली यहां की सिटिंग सांसद व प्रत्याशी स्मृति ईरानी को जमीनी सच्चाई का आभास ही नहीं हो पा रहा है। पूरे पांच साल उनकी चापलूस सलाहकार मंडली ने सत्ता और ताकत का जमकर दुरुपयोग किया, जिसका खामियाजा इस बार स्मृति को भोगना पड़ सकता है। कितनी गफलत में है स्मृति की मंडली। उसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि चुनाव ड्यौढ़ी पर है। राहुल का इस्तकबाल करने को अमेठी बेताब है। बावजूद स्मृति ईरानी के हवाई बयान जारी हैं। दूसरी ओर कांग्रेस कार्यकर्ता पूरी खामोशी से चुनाव की तैयारी में दिन-रात एक कर चुके हैं। उम्मीद है कि वायनाड का मतदान शुक्रवार को हो जाने के बाद कभी उनकी उम्मीदवारी का एलान कांग्रेस कर सकती है और राहुल एक मई को अपना पर्चा दाखिल करेंगे। सुलतानपुर संसदीय सीट के हालात भी भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हैं। यहां गांधी परिवार की छोटी बहू मेनका अपना दसवां लोस चुनाव लड़ रही हैं। वे १ मई को, २५ मई को प्रस्तावित चुनाव के लिए अपना नामांकन करेंगी। यहां जातीय सपा के निषाद व बसपा के कुर्मी समुदाय से प्रत्याशी उतारे जाने से वे इस बार चुनाव में फंसी हुई नजर आ रही हैं। जातीय समीकरण यहां के इंडिया गठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में जाता दिख रहा है। नतीजा है कि मेनका को प्रचार में अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही है।

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