सामना संवाददाता / लखनऊ
सवर्ण मतदाताओं को भाजपा का कोर वोटर्स माना जाता है। भाजपा को साल २०१४ के बाद से ही इन्हीं जातियों के समर्थन से लगातार बढ़त मिलती रही है। ओबीसी वर्ग में गैर-यादव वोट और दलित समाज में गैर-जाटव वोट पाती रही है। लेकिन इस बार जमीनी हकीकत अलग है। जानकारों की मानें तो सवर्णों का वोट थोड़ा बिखर रहा है। खासतौर पर ठाकुरों का एक हिस्सा भाजपा के खिलाफ वोट कर रहा है। सहारनपुर से नोएडा तक महापंचायतें हुई हैं और कई जगहों पर रणनीतिक तौर पर ठाकुर बिरादरी के लोग उस कैंडिडेट को वोट डाल रहे हैं, जो भाजपा से मुकाबले में हैं।
भाजपा की बढ़ी चिंता
इसकी एक झलक नोएडा में दिखाई दी, जहां बसपा ने राजेंद्र सिंह सोलंकी को कैडिडेट बनाया है। इसके अलावा सपा और कांग्रेस गठबंधन से डॉ. महेंद्र नागर उतरे हैं। यहां बसपा को जाटव समुदाय का वोट तो मिल ही रहा है। इसके अलावा ठाकुरों का एक हिस्सा भी राजेंद्र सोलंकी के पक्ष में है। इसकी वजह भाजपा से ठाकुरों की नाराजगी है। घोड़ी बछेड़ा जैसे ठाकुर बहुल गांवों में राजेंद्र सिंह सोलंकी के पक्ष में माहौल दिख रहा है। बदलते सामाजिक समीकरणों ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है।
इस बीच सबकी नजर मायावती की पार्टी बसपा पर है। चुनावी मुकाबला तो मुख्य तौर पर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस-सपा के गठबंधन के बीच ही दिख रहा है। फिर भी बसपा की अहमियत इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि उसका वोट यदि बिखर रहा है तो किसे मिलेगा? यह अहम सवाल है। कई सीटों पर यह वोट सपा-कांग्रेस गठबंधन के पाले में जाता दिख रहा है, जिससे भाजपा की टेंशन बढ़ी है।