संजय लीला भंसाली जैसे दिग्गज मेकर की वेब सीरीज ‘हीरामंडी’ पूरे दुनिया के दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। सोनाक्षी सिन्हा, अदिति राव हैदरी, मनीषा कोइराला, संजीदा शेख, ऋचा चड्ढा और शर्मिन सहगल जैसी खूबसूरत प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों के शानदार परफॉर्मेंस से सजी यह वेब सीरीज नेटफ्लिक्स पर रिलीज होने जा रही है। पेश है, ‘इलू इलू’ गर्ल के नाम से मशहूर मनीषा कोइराला से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
वेब शो ‘हीरामंडी’ करने की क्या वजह रही?
एक वजह हो तो बताऊं? वैसे तो वजहें कई रहीं, लेकिन सबसे बड़ी वजह रहे संजय लीला भंसाली। बहुत पैशनेटली काम करनेवाले मेकर हैं भंसाली। मैं उन्हें ‘हीरामंडी’ से नहीं, बल्कि फिल्म ‘खामोशी-द म्यूजिकल’ के समय से जानती हूं। हर छोटे से छोटे मुद्दे पर वे बेहद बारीकी से काम करते हैं। मुझे नहीं लगता कि ‘हीरामंडी’ को जिस खूबसूरती से उन्होंने बनाया कोई और बना पाता। दूसरी वजह है कहानी, जो बेहद संवेदनशील है। शो में जितनी भी अभिनेत्रियां हैं हर किसी की अपनी कहानी है, जो दिल को छू लेती है। यह प्यार-मोहब्बत की बातें हैं जिनके तार दिल से जुड़े हैं। इसे नकारने की कोई वजह ही नहीं बनती।
फिल्म ‘खामोशी-द म्यूजिकल’ के बाद उनके साथ ‘हीरामंडी’ साइन करने में आपको काफी वक्त क्यों लगा?
बतौर निर्देशक फिल्म ‘खामोशी-द म्यूजिकल’ संजय लीला भंसाली की डेब्यू फिल्म थी। यह फिल्म सफल रही और एक कल्ट क्लासिक फिल्म कहलाती है। इस फिल्म के बाद २८ वर्षों तक मैंने उनके साथ फिल्म करने का इंतजार किया। कहते हैं न कि सब्र का फल मीठा होता है और यह अनुभव मुझे उस वक्त हुआ जब ‘हीरामंडी’ के लिए उनका फोन आया। वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा कभी किसी को कुछ नहीं मिलता। हां, मैं भी इन इंतजार की घड़ियों को गिनती रही और अब जाकर किस्मत का ताला खुला है।
अपने किरदार के बारे में आप क्या कहना चाहेंगी?
मैंने इसमें तवायफ मल्लिका जान का किरदार निभाया है। यह तवायफ सिर्फ नाच-गाना करनेवाली ही नहीं, बल्कि एक सशक्त महिला है। कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी वो अपने उसूलों से दूर नहीं जाती। इस किरदार से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। महिलाओं को शारीरिक रूप से दुर्बल मानकर उन्हें अबला नारी माना जाता है, लेकिन वो अबला नहीं यह मल्लिका जान को देखकर अहसास होगा। बहुत शिद्दत से इसे लिखा गया है और मैंने इसे किस तरह से निभाया है यह तो आपको सीरीज देखकर ही पता चलेगा। किसी भी अभिनेत्री के लिए भंसाली के साथ काम करना किसी सम्मान या पुरस्कार पाने से कम नहीं होता। उनके किरदार रियल होते हैं और खासकर अभिनेत्रियों के किरदार में वो जान डाल देते हैं।
तवायफ का किरदार निभाने के लिए आपने किस तरह मेहनत की?
मैंने वहीं किया जो भंसाली चाहते थे। कहानी आजादी मिलने के पहले के दौर की है। सेटअप, कहानी का बैकड्रॉप, कॉस्ट्यूम आदि सभी कुछ भंसाली की पैनी नजरों से होकर निकला है।
साथ की दूसरी अभिनेत्रियों के साथ आपकी ट्यूनिंग कैसी रही?
सोनाक्षी सिन्हा, शर्मिन सहगल, अदिति राव हैदरी, ऋचा चड्ढा, संजीदा शेख हम सब में दोस्ती हो गई। कोई प्रोफेशनल राइवलरी कभी थी नहीं, अगर होती तब भी उसका असर किसी के परफॉर्मेंस पर नहीं होता यह बात तो तय है। सभी बेहद टैलेंटेड और संजीदा परफॉर्मर हैं। अब वो दौर नहीं रहा कि जब दो अभिनेत्रियां साथ में काम करें और उनमें लड़ाइयां हों।
कैंसर को हराकर आपने एक नई जिंदगी की शुरुआत की। जीवन में आपने कितना बदलाव देखा?
कैंसर के बाद की जिंदगी के पलों को मैंने इंस्टाग्राम पर शेयर किया है। वैंâसर के बारे में अक्सर अखबारों में पढ़ती और टीवी पर देखा करती थी। कभी नहीं सोचा था कि मेरे साथ यह हादसा होगा। जब मुझे ओवेरियन कैंसर डिटेक्ट हुआ तो उस समय हताशा, दुख और तनाव ने मुझे घेर लिया। डॉक्टरों ने मुझे पुनर्जन्म दिया। मेरे परिवार ने मुझे जो मोरल सपोर्ट दिया, उससे मुझे संबल मिला। कैंसर से लड़ने का जज्बा परिवार से प्राप्त हुआ। कुछ नेपाल के और कुछ फिल्म इंडस्ट्री के दोस्तों से प्यार और दुआ मिलती रही और मैं वैंâसर का सामना कर पाई। कैंसर की ट्रीटमेंट के दौरान थकान होती थी। बहुत अजीब फीलिंग होती है जब आप ठीक होते हैं, लेकिन डिप्रेशन से भी जूझना पड़ता है। वक्त ही सभी मर्ज की दवा है। हम सभी का जीवन ही गुरु है। २०१२ के बाद जिंदगी बदली तो ट्रैक पर आते-आते ७-८ वर्ष निकल गए। फिल्मों से दूर होना यह शाप नहीं अभिशाप बना। मैं जिंदगी के करीब होती गई, नेचर की सुंदरता मुझे ईश्वर और अध्यात्म के करीब ले आई।