प्रमोद भार्गव
शिवपुरी (मध्य प्रदेश)
मध्य प्रदेश की राजनीति में लोकसभा चुनाव के संदर्भ में आजकल अजीबो-गरीब नाटकीय घटनाएं देखने में आ रही हैं। दरअसल, इन्हें नाटकीय कहना बहुत सरल शब्द होगा।, जबकि ये घटनाएं राजनीति रसातल पर ले जानेवाली और सीधे-सीधे संविधान का मखौल उड़नेवाली हैं। भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए सबसे पहले हिमाचल के च़ंडीगढ के मेयर चुनाव में गडबड़ी की। उसके बाद सूरत में कांग्रेस प्रत्याशी को चुनाव के मैदान से ही हटवाकर अपने प्रत्याशी को जिता दिया। इन दोनों मामलों में भाजपा की भूमिका नेपथ्य में रही, लेकिन इंदौर में भाजपा को खुलकर सामने आने में ग्लानि नहीं हुई। यहां पर उसका बदसूरत चेहरा सामने आ गया।
इंदौर के खजुराहो संसदीय क्षेत्र से ‘इंडिया’ गठबंधन की प्रत्याशी मीरा यादव का नामांकन रद्द होने के बाद इंदौर लोकसभा संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने एक नाटकीय घटनाक्रम के चलते अपना नामांकन वापस ले लिया। नामांकन वापसी के बाद वे देखते-देखते भाजपा में शामिल भी हो गए। कांग्रेस को इंदौर में गुजरात के सूरत जैसा झटका लगा है। चौथे चरण के चुनाव में नाम वापसी के अंतिम दिन चौंकाने वाले इस राजनीतिक घटनाक्रम में कांग्रेस इंदौर में उम्मीदवारी से बाहर हो गई है। यही नहीं बम ने भाजपा उम्मीदवार शंकर लालवानी के समर्थन में अपना नामांकन वापस लिया है। अतएव इस घटनाक्रम का रहस्य गहरा गया है। कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के गृह जिले में इस घटनाक्रम की कांग्रेस को भनक तक नहीं लगी, वहीं भाजपा पर आरोप है कि उसने इस घटनाक्रम को प्रत्याशी पर दबाव बनाकर अंजाम तक पहुंचाया।
संयोग से फॉर्म वापसी की इस घटना के बाद जीतू पटवारी शिवपुरी जिले के करैरा में एक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने नाम वापसी के सिलसिले में भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि ‘इंदौर में कांग्रेस प्रत्याशी पर दबाव बनाकर नाम वापस कराया गया है। उन पर अदालत से एक पुराने मामले में धारा-३०७ बढ़वाई गई और फिर फॉर्म निकलवा लिया। इस तानाशाही के विरुद्ध पूरे देश को खड़ा होना होगा, क्योंकि अब यह कांग्रेस और भाजपा का मामला नहीं रह गया है।’ दरअसल १७ साल पुराने जमीन से जुड़े कब्जे के एक मामले में तत्कालीन आईजी सुरजीत सिंह व उनके पुत्र सतवीर सिंह की सुरक्षा एजेंसी को कांतिलाल बम एवं अक्षय बम ने यूनिस पटेल की जमीन खाली कराने का ठेका दिया था। इस मामले में मौके पर विवाद ही हुआ था। नतीजतन, सतवीर की रिपोर्ट पर यूनिस के खिलाफ पुलिस ने लूट का मामला दर्ज किया था। मौके पर गोलीबारी भी हुई थी। इसमें एक गोली यूनिस के कान को छूते हुए निकल गई थी। पुलिस ने मौके से रिवॉल्वर व कारतूस भी बरामद किए थे। इसके बावजूद हत्या के प्रयास की धारा-३०७ नहीं लगाई थी। इस धारा में यदि मामला साबित हो जाता है तो सात साल तक की सजा का प्रावधान है। इस घटना के घटते ही भाजपाइयों ने यह कहना शुरू कर दिया कि बम की गिरफ्तारी हो सकती है। साथ ही ये खबरें भी उछलने लगीं कि अक्षय बम द्वारा संचालित शिक्षा संस्थान और जमीनी कारोबार को लेकर भी सत्ताधारी दल के नेता शिकायत कर कानूनी कार्रवाई को अंजाम तक पहुंचा सकते हैं।
अक्षय बम का इंदौर में विधि महाविद्यालय है और वे बड़े पैमाने पर भूमि के क्रय-विक्रय का कारोबार भी करते हैं। नामांकन पत्र के साथ संलग्न शपथ-पत्र में अपनी संपत्ति के ब्योरे में उन्होंने अपने नाम ५६ करोड़ रुपए की कुल संपत्ति बताई है, जिसमें ८.५० करोड़ की चल और ४६.७७ करोड़ की अचल संपत्ति है। पत्नी के पास भी ४.२८ करोड़ की चल और १६.०८ करोड़ की अचल-संपत्ति है। इसीलिए उनकी गिनती धनी उम्मीदवारों में की जाती है। १४ लाख की घड़ी पहनकर भी वे अपनी रईसी जता चुके हैं। कांग्रेस द्वारा उनको टिकट दिए जाने के कारण में धनपति होना भी है। हालांकि, राहुल गांधी के इस एलान के बाद कि मध्य प्रदेश के सभी दिग्गज भाजपा को शिकस्त देने के लिए चुनाव ल़ड़ें। इसी के साथ कार्यकर्ता जीतू पटवारी को इंदौर से चुनाव लड़ने की मांग करने लगे थे, लेकिन पटवारी ने अक्षय कांति बम को टिकट दिलाने का काम किया। पटवारी ने प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व संभालने और उमंग सिंघार ने नेता प्रतिपक्ष का दायित्व होने के कारण चुनाव लड़ने से किनारा कर लिया। कुछ ऐसा ही बहाना करके अरुण यादव पीछे हट गए। हालांकि, इंदौर से संभावित उम्मीदवारों का जो पैनल रह गया था, उसमें विधायक भंवर सिंह शेखावत, स्वप्निल कोठारी और अरविंद बागड़ी के नाम थे। लेकिन सबसे मजबूत दावेदारी शेखावत की थी। उन्होंने चुनाव का खर्च पार्टी उठाए, यह शर्त रखकर किनारा कर लिया। अन्य नामों पर चर्चा के योग्य ही नहीं माना गया। अतएव पटवारी ने अक्षय कांति के नाम को प्रत्याशी के रूप में पहुंचाने का काम कर दिया। एक माह से वे धुआंधार प्रचार में लगे होने के साथ, दरियादिली से धन भी खर्च कर रहे थे। बावजूद वे भाजपा उम्मीदवार लालवानी के मुकाबले में नहीं दिख रहे थे। भाजपा ने यह खेला सिर्फ इसलिए किया कि देखो कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव नहीं ज्यादा भाजपा का दामन थामने के इच्छुक हैं। जबकि दल-बदल की मजबूरी में सामने आई पृष्ठभूमि से तय हो गया है कि बम ने भाजपा का दामन भविष्य में सुरक्षा बनी रहे इस नजरिए से थामा है। सूत्रों के मुताबिक, दो ही शर्तें रखी हैं कि एक तो उनकी स्थिति सुरक्षित रहे, दूसरे भविष्य में भाजपा कोई पद भी दल-बदल की सौगात में दे दे।
दरअसल, यह पूरी व्यूह रचना करीब एक सप्ताह पहले रची गई। इस समय पूरे देश में कांग्रेस मुक्त भारत अभियान के तहत कांग्रेस व अन्य दलों के नेताओं को युद्धस्तर पर शामिल करने की मुहिम जारी है। ग्वालियर, बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र में इस मुहिम को पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा चला रहे हैं, वहीं इंदौर और मालवांचल में इसे आगे बढ़ाने का काम नगरीय प्रशासन मंत्री वैâलाश विजयवर्गीय और उनके खास विधायक रमेश मेंदोला आगे बढ़ा रहे हैं। इसे ऑपरेशन लोटस नाम दिया गया है। अक्षय बम के द्वारा नामांकन वापसी के वक्त वैâलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला उनके साथ जिला निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय से बाहर निकले और सीधे भाजपा दफ्तर पहुंकर बम को भाजपा की सदस्यता दिला दी। इंदौर भाजपा का गढ़ माना जाता है। बम की नाम वापसी के बाद इस सीट पर मतदान और उसके परिणाम की औपचारिकता भर शेष रह गई है। हालांकि, भाजपा इतने बड़े घटनाक्रम को अंजाम देने के बावजूद इंदौर से अपने प्रत्याशी को निर्विरोध जीत दिलाने में असफल रही है। उसकी तमाम कोशिशों के बावजूद सोमवार दोपहर नाम वापसी के समय तक २३ में से ९ उम्मीदवारों ने ही पर्चे वापस लिए हैं। मैदान में अभी भी १४ उम्मीदवार हैं। इतना जरूर हो गया है कि ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा होने से कांग्रेस, सपा और आप का कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं है। कांग्रेस के डमी प्रत्याशी के रूप में मोती सिंह पटेल ने पर्चा भरा था, लेकिन वह जांच के बाद पहले ही निरस्त हो चुका है।
(लेखक, वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।)