मनमोहन सिंह
नए साल के १४वें दिन यानी १४ जनवरी को कांग्रेस पार्टी के पूर्व प्रमुख राहुल गांधी ने मणिपुर से `भारत जोड़ो यात्रा’ की शुरुआत की। जब राहुल गांधी ने मणिपुर से मुंबई तक तकरीबन साढ़े छह हजार किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी `भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ शुरू की, उस वक्त मणिपुर हिंसा के दर्द से कराह रहा था। दूसरी बात यह कि उस वक्त `इंडिया’ गठबंधन भी विपक्ष का एक मुकम्मल चेहरा बन चुका था, जो भाजपा को आड़े हाथों लेने के लिए तैयार बैठा था।
`मणिपुर जिस दर्द से गुजरा है, हम उस दर्द को समझते हैं। हम वादा करते हैं कि उस शांति, प्यार, एकता को वापस लाएंगे जिसके लिए यह राज्य हमेशा से जाना जाता है।’ राहुल गांधी की इन पंक्तियों से माना जा सकता है कि मणिपुर के रिसते जख्म पर फाहा रखा…मरहम का काम किया। हालांकि, पिछले साल जून महीने में ही हिंसा शुरू होने के बाद राहुल गांधी मणिपुर की यात्रा कर चुके थे। जनवरी २०२४ तक मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हिंसा में लगभग २०० से ज्यादा लोग अपनी जान गवां चुके थे। कांग्रेस ने उस वक्त भी यही सवाल उठाया था कि ८ महीने से प्रधानमंत्री चुप क्यों हैं? कम से कम १ घंटे के लिए तो वे आ सकते थे!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खामोशी मणिपुर को खल रही थी। ऐसे में राहुल गांधी का आना मणिपुर को अपनेपन का एहसास दे गया। हिंसा का सबसे ज्यादा प्रकोप महिलाओं को जला गया और राहुल गांधी को सुनने सबसे ज्यादा महिलाएं आई थीं। हालांकि, राहुल गांधी की इस यात्रा से मोदी सरकार को गहरा झटका लगा। सरकार के दावे कि मणिपुर में शांति है और हालात काबू में हैं की हवा निकल गई। आरोप लगाया गया कि विपक्ष राजनीति कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सरकार ने अपने सबसे अच्छे संसाधनों, प्रशासन को इस संघर्ष को सुलझाने में लगाया और केंद्र सरकार के समय रहते दखल देने की वजह से मणिपुर के हालात में सुधार आया।
मणिपुर हिंसा की क्या थी वजह?
तकरीबन ३०-३५ लाख की जनसंख्या वाले मणिपुर में आम तौर पर तीन समुदाय हैं मैतेई, नगा और कुकी। मैतेई की जनसंख्या ज्यादा है। मैतेई में अधिकतर लोग हिंदू हैं, कुछ मुसलमान भी हैं। वहीं दूसरी ओर नगा और कुकी जनजाति में आते हैं और उस समुदाय में अधिकतर लोग ईसाई हैं। राजनीति में मैतेई का दखल ज्यादा है। आज तक के १२ मुख्यमंत्री में से दो ही जनजाति से थे। यहां पर मैदानी इलाकों में तो मैतेई समुदाय के लोग रहते हैं, लेकिन पहाड़ियों पर जनजातियों का वर्चस्व है। इस अनुपात के तौर पर १०:९० के रूप में देखा जा सकता है। मैतेई समुदाय इस बात की मांग कर रहा था कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। उनकी इस मांग के पीछे दलील यह थी कि १९४९ में मणिपुर के भारत में विलय के पहले उसका दर्जा जनजाति का ही था। हालांकि, जनजातियों ने उनकी इस मांग का विरोध करते हुए अपनी दलील दी कि मैतेई की जनसंख्या ज्यादा है, राजनीति में दखल भी ज्यादा है और वह आदिवासी नहीं है। उनको पहले से एससी और ओबीसी आरक्षण के साथ-साथ आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग का आरक्षण मिला है, यदि उन्हें और भी आरक्षण मिल जाएगा तो जनजातियों का क्या होगा? मैतेई समुदाय की मांग के मद्देनजर मणिपुर हाई कोर्ट ने २७ मार्च २०२३ को अपने एक आदेश में राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की बात पर शीघ्रता से विचार करने के लिए कहा और इस आदेश के बाद ही मणिपुर में हिंसा भड़क उठी। हालांकि, फरवरी २४ में मणिपुर हाई कोर्ट ने पिछले आदेश से उस आदेश को हटा दिया था, जिसमें मैत्री समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की सिफारिश का जिक्र था।