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‘रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर’ का वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स जारी…मोदी राज में मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में!

– १८० देशों की लिस्ट में १५९वें स्थान पर भारत

-पाकिस्तान-सूडान से भी ज्यादा खराब हैं हालात

सामना संवाददाता / नई दिल्ली

जब भी मोदी सरकार पर तानाशाही का आरोप लगाया जाता है तो भाजपा नेता बौखला जाते हैं। मगर सच तो यह है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जानेवाले मीडिया की स्वतंत्रता भी खतरे में है। पत्रकारों की एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर’ ने वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स जारी की है, जिसके अनुसार, मोदी राज में मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में है। इस इंडेक्स में १८० देशों की लिस्ट में भारत को १५९वां स्थान दिया गया है। हद तो यह है कि इस मामले में भारत की स्थिति पाकिस्तान और सूडान जैसे देशों से भी खराब है।
इससे पहले २०२३ की सूची में भारत १६१वें स्थान पर था। पाकिस्तान भारत से सात पायदान ऊपर १५२वें स्थान पर है। २०२३ में यह १५०वें स्थान पर था।
नॉर्वे रैंकिंग में शीर्ष पर है, जबकि डेनमार्क विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में दूसरे स्थान पर है।

-भारत में ९ पत्रकार हिरासत में लिए गए

-‘रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर’ की इंडेक्स रिपोर्ट का खुलासा

मीडिया की स्वतंत्रता के मामले में हिंदुस्थान की स्तिथि काफी दयनीय है। वह १५९वें स्थान पर है। रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर द्वारा जारी इंडेक्स के मुताबिक नार्वे पहले स्थान पर है। इस सूची में स्वीडन तीसरे स्थान पर है। रिपोर्ट के अनुसार, आज तक भारत में नौ पत्रकारों और एक मीडियाकर्मी को हिरासत में लिया गया है, जबकि जनवरी २०२४ के बाद से देश में किसी भी पत्रकार / मीडियाकर्मी की हत्या नहीं हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सूचकांक में कुछ देशों की बेहतर रैंकिंग ‘भ्रामक है क्योंकि उनके स्कोर में गिरावट आई है और सूचकांक में बढ़ोतरी उन देशों की गिरावट का परिणाम है, जो पहले उनसे ऊपर थे’।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह भारत (१५९वें) का मामला है, जो हाल ही में अधिक कठोर कानूनों को अपनाने के बावजूद दो पायदान ऊपर चला गया है।’ इसमें कहा गया है कि मोदी सरकार ने ‘कई नए कानून पेश किए हैं जो सरकार को मीडिया को नियंत्रित करने, समाचारों को सेंसर करने और आलोचकों को चुप कराने की असाधारण शक्ति देंगे, जिनमें २०२३ दूरसंचार अधिनियम, २०२३ मसौदा प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक और २०२३ डिजिटल पर्सनल डेटा संरक्षण अधिनियम शामिल हैं।’ मध्य पूर्व और उत्तरी अप्रâीका में, प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर चिंताए बनी हुई हैं, लगभग आधे देशों को ‘बहुत गंभीर’ स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। यमन, सऊदी अरब, ईरान और सीरिया जैसे देश पत्रकारिता की स्वतंत्रता के लिए चुनौतियों से जूझ रहे हैं। संयुक्त अरब अमीरात रेड जोन में शामिल देशों की सूची में शामिल हो गया है, जो पूरे क्षेत्र में व्यापक मुद्दों को उजागर करता है। इसके विपरीत, यूरोप, विशेष रूप से यूरोपीय संघ के भीतर, ऐसे देशों का दावा करता है, जहां प्रेस की स्वतंत्रता को ‘अच्छा’ माना जाता है। हालांकि, चुनौतियां बनी हुई हैं, हंगरी, माल्टा और ग्रीस जैसे देशों को मीडिया के साथ अपने व्यवहार के लिए जांच का सामना करना पड़ रहा है। यूरोपीय मीडिया स्वतंत्रता अधिनियम (ईएमएफए) को अपनाना यूरोपीय संघ के भीतर प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के प्रयासों को दर्शाता है। २०२४ विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक राजनीतिक संकेतक में चिंताजनक गिरावट का खुलासा करता है, जो रिपोर्ट में पांच विस्तृत संकेतकों में से एक है। राज्य और राजनीतिक ताकतें प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने में लगातार विफल हो रही हैं, जिसके कारण पत्रकारों के खिलाफ शत्रुतापूर्ण कार्रवाइयां हो रही हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग, विशेष रूप से दुष्प्रचार अभियानों में, एक महत्वपूर्ण खतरा पैदा करता है, जिसमें चुनावों को प्रभावित करने के लिए डीपफेक का उपयोग किया जाता है।

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