सुबह आये थे, शाम जाना है
जिंदगी का नहीं ठिकाना है
दर्द अपना किसे कहें जाकर
हाय बेदर्द ये जमाना है
झूठ के सामने झुकेंगे नहीं
बिन डरे ये हमें जताना है
रिश्ते उधड़े तो जोड़ने के लिए
दिल के सूते से ही सिलाना है
अब किताबें हैं बंद शीशे में
दोस्त गूगल का ये जमाना है
जाति और धर्म भूल जाएं सब
ईश का एक ही घराना है
है जुबां पर लगे ‘कनक’ ताले
हाल फिर भी उन्हें सुनाना है
-डॉ. कनक लता तिवारी