अजय भट्टाचार्य
मतदान का दिन हो और लीलाधर लीला न दिखाएं यह वैâसे हो सकता है! कल तीसरे चरण के लिए गुजरात में भी २५ लोकसभा सीटों पर मतदान हुआ। देश के प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी भी गुजरात के अमदाबाद में वोट डालने पहुंचे। सफेद कुर्ता-पायजामा और भगवा रंग की जैकेट पहने मोदी जब पोलिंग बूथ पर पहुंचे तो उन्हें देखने के लिए उनके मोदी-मोदी का जयकारा लगाने वाले भी बूथ पर उमड़े। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक, बच्चियों से लेकर बुजुर्ग महिलाएं तक उनकी एक झलक पाने को बेताब दिखीं। हमेशा की तरह इस बार भी उन्होंने अपने समर्थकों को निराश नहीं किया और वोट डालने के बाद लीला शुरू हुई। जयकारा लगाने वालों के बीच पहुंच गए। दूर तक वे पैदल गए और अपने समर्थकों से हाथ मिलाया। इस दौरान एक बुजुर्ग महिला ने उन्हें जीत का आशीर्वाद दिया। एक महिला ने राखी बांधी और एक बच्ची को गोद में उठाकर दुलार किया। वहीं समर्थकों से मिलने के दौरान एक ऐसी घटना हो गई, जिसे देखकर उन्होंने अपने सुरक्षा रक्षक को फटकार लगा दी। भला लीला के बीच व्यवधान कैसे बर्दाश्त होता? फोटो और सेल्फी ली जा रही हो, हथेलियों पर
ऑटोग्राफ दिए जा रहे हों, ऐसे नजारे के बीच सुरक्षा गार्ड को कैमरे और लीलाधर के बीच व्यवधान नहीं बनना चाहिए था। फोटू बिगड़ने पर फटकार लाजिमी थी!
विकास नहीं तो वोट नहीं
उत्तर प्रदेश में डबल इंजन की सरकार ने कागजों पर इतना विकास कर दिया कि विकास के ओवरडोज से जनता पागल हो गई और पूरे गांव ने मतदान का बहिष्कार कर दिया। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में भी १० लोकसभा सीटों पर मतदान हुआ। मगर इसी बीच फतेहपुर सीकरी के एक पोलिंग बूथ पर यह स्तंभ लिखे जाने तक कोई वोट नहीं पड़ा। फतेहपुर सीकरी लोकसभा के बूथ संख्या ९५ पर ग्रामीणों ने मतदान का पूरी तरह से बहिष्कार कर दिया। इस पोलिंग बूथ पर सुबह से सन्नाटा पसरा रहा और किसी ने वोट नहीं डाला है। बूथ पर सिर्फ एक वोट डाला गया और वो भी शख्स ने गलती से वोट डाल दिया था। इस बहिष्कार की वजह गांव में न होनेवाला विकास है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में पिछले कई सालों से कोई विकास कार्य नहीं हुआ है। ऐसे में ग्रामीणों ने `विकास नहीं तो वोट नहीं’ का नारा दिया है। पुलिस ने ग्रामीणों से वोट देने की अपील की। मगर कोई भी ग्रामीण वोट देने नहीं गया। पुलिस गांव में घूमकर लोगों से मतदान करने की गुजारिश करती नजर आई। हालांकि, गांव वाले अपनी बात पर अड़े रहे और वोट डालने नहीं निकले।
चवानु की मांग
चवानु गुजरात में सबसे लोकप्रिय अल्पाहार में से एक है। यह एक बहुमुखी व्यंजन है, जो थेपला और सूखी भाजी के साथ-साथ अकेले खाने पर भी अच्छा लगता है। भुसू के नाम से भी जाना जाने वाला यह तला हुआ नाश्ता ग्रामीण क्षेत्रों में पोटली पार्टियों को मसाला देता है। उत्तर भारत की दालमोठ गोत्र के इस नमकीन पदार्थ की मांग मतदान से पहले मांग बढ़ जाती है, क्योंकि राजनीतिक दल इसे मतदाताओं के बीच बांटते हैं। हालांकि, इस बार चवानु की इतनी ज्यादा मांग बढ़ी कि नमकीन की दुकानों में इसकी कमी महसूस की गई। राजनीतिक दल और उम्मीदवार किसी भी फरसाण की दुकान को पकड़ने के लिए बेतहाशा फोन करते रहे, जो चवानु की आपूर्ति कर सके। एक निराश उम्मीदवार को यह कहते हुए सुना गया, `सूखे गुजरात के इस चुनावी मौसम में पोटली पाना आसान है लेकिन चवानु पाना लगभग असंभव है।’ इस चवानु का दूसरा पहलू यह भी है कि मैदान में उतरे भाजपा, कांग्रेस और `आप’ के ज्यादातर उम्मीदवार करोड़पति हैं। नियम के अपवाद भी हैं। भाजपा उम्मीदवार चंदू शिहोरा और भरत सुतारिया, कांग्रेस उम्मीदवार जेनीबेन ठाकोर (बनासकांठा) और नितेश लालन (कच्छ), `आप’ उम्मीदवार उमेश मकवाना (भावनगर) और चैतर वासव्वा (भरूच) करोड़पति नहीं हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)