जय जय जय श्री भगवान परशुराम,
श्री हरि विष्णु अवतारी छवि ललाम,
जनक जमदग्नि ऋषि जननि रेणुका,
तव पद पंकज कोटि-कोटि प्रणाम।।
वैशाख शुक्ल पक्ष शुभ तिथि तृतीया,
अवतार लिया जग संताप दूर किया,
शुभ आभूषण सर्वदा जप-तप इनका,
हुए प्रसन्न महादेव ने वरद अस्त्र दिया।।
परशु प्राप्त कर परशुराम कहलाए,
विश्वामित्र ऋचिक से सुशिक्षा पाये,
शारंग दिव्य धनुष अति सुशोभित,
कश्यप शाश्वत वैष्णव मंत्र पढाये।।
शस्त्र-शास्त्र धर संयोग अद्भुत ज्ञाता,
समतुल्य नहीं कोइ इनके विख्याता,
सकल युगांतर भव-भावमय पूजित,
दया-धर्म रक्षक शुचि इह जग त्राता।।
चक्रतीर्थ में जाय कठिन तप कीना,
श्रीमन्ननारायण से अद्भुत वर लीना,
रामावतार अरु तेजोहरण उपरांत,
कल्पांत तपस्यारत भूलोक प्रवीना।।
विजय कवच से प्रभु सुशोभित,
क्रोध काल बदन सम लोहित,
नित-प्रति पूजन करे जो इनकी,
दुःख-संताप मिटे रहे न क्षोभित।।
– राजीव नंदन मिश्र
भोजपुर-बिहार