औरंगजेब का जन्म गुजरात में हुआ। वह भी महाराष्ट्र नहीं जीत सका। औरंगजेब के तंबू का बुर्ज ध्वस्त करने का शौर्य मराठों ने किया। मोदी, याद रखो…उन्हीं मराठों के वंशज आज भी महाराष्ट्र में जीवित हैं।
संजय राऊत
शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने प्रचार से महाराष्ट्र में तूफान मचा दिया है। देश उद्धव ठाकरे को चुनाव के कुरुक्षेत्र में अर्जुन की तरह लड़ते हुए देख रहा है। वे महाराष्ट्र में घूम रहे हैं। इसी बीच उद्धव ठाकरे ने सामना को जोरदार रोखठोक इंटरव्यू देकर अनेक मुद्दों पर अपनी मजबूत राय रखी है। उद्धव ठाकरे ने कहा, ‘यह महाभारत लोकतंत्र को बचाने के लिए चल रहा है। यह लड़ाई आजादी को बचाने के लिए चल रही है।’
उद्धव ठाकरे ने दिल्ली के मुगलशाही पर जबरदस्त हमला किया। ‘दिल्ली के दो खच्चरों को महाराष्ट्र के पानी में केवल पवार-ठाकरे ही दिखाई देते हैं। हम उन खच्चरों को हमेशा के लिए पानी पिला देंगे। याद रखो; मोदी मुझे खत्म नहीं कर सकते! मोदी को आज तक महाराष्ट्र का प्यार ही मिला है। अब महाराष्ट्र का अभिशाप क्या होता है उसे महसूस करें, ऐसी चेतावनी उद्धव ठाकरे ने दी। उद्धव ठाकरे का यह इंटरव्यू दो भागों में प्रकाशित हो रहा है। हाल ही में कोकण दौरे से लौटे उद्धव ठाकरे प्रसन्न दिखाई दिए। जीत का आत्मविश्वास उनके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रहा था। उन्होंने ‘जय महाराष्ट्र’ से शुरुआत करते हुए कहा, ‘महाराष्ट्र में भगवा लहर है। राज्य समेत देश में निश्चित तौर पर बदलाव हो रहा है।’
अभिमन्यु वीर था। वह कायर नहीं था। ये कायर आज ईडी, इनकम टैक्स, सीबीआई के जरिए चक्रव्यूह तैयार कर रहे हैं। इन्हें अभिमन्यु की तरह लड़ने का धैर्य नहीं है। अभिमन्यु चक्रव्यूह में घुस गया था। ये लोग बाहर ही बाहर किराए के लोगों को आपस में लड़ा रहे हैं। यानी शिवसेना तोड़ी और शिवसेना को आपस में ही लड़वाने का प्रयास किया। राष्ट्रवादी को तोड़ा। परिवार तोड़ रहे हैं। परिवार में कलह पैदा कर रहे हैं। पार्टी में झगड़े करवा रहे हैं। यह सारा काम तो कौरवों का ही है न? यह जो कौरव नीति है, आखिर में उसकी पराजय होगी।
देश में लोकसभा चुनाव का महाभारत शुरू है। लेकिन चुनाव का यह महाभारत काफी लंबा खिंच गया है और पूरे देश में मानो युद्ध की स्थिति है। ऐसा वातावरण बन गया है। इस महाभारत में सबसे ज्यादा फोकस कहां है…तो वह महाराष्ट्र में है। महाराष्ट्र में खासकर शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके नेतृत्व वाली शिवसेना की इस महाभारत में कौन सी भूमिका होगी, इस बारे में पूरे देश का ध्यान लगा हुआ है। क्या कहेंगे?
-आपने जो उल्लेख किया कि अभी का चुनाव महाभारत की तरह शुरू है, यह सही है। उस समय महाभारत में द्रौपदी का वस्त्रहरण हुआ था और इस समय अपने देश के लोकतंत्र का वस्त्रहरण हो रहा है। इसलिए यह लोकतंत्र बचाने की लड़ाई है, स्वतंत्रता की लड़ाई एक अलग चीज थी, उस समय हम नहीं थे। जिन-जिन लोगों ने संघर्ष किया, बलिदान दिया, उन सभी क्रांतिवीरों और त्याग करने वाले सभी स्वतंत्रता सैनिकों ने अपार कष्ट सहकर बहादुरी का परिचय देते हुए यह स्वतंत्रता दिलाई। इस स्वतंत्रता को कायम रखने का काम हमें करना चाहिए।
१० वर्षों में जनता दो बार मूर्ख बनी है… अब जनता जागृत हो गई है!
‘आप कदाचित सभी को एक बार मूर्ख बना सकते हैं। कुछ लोगों को आप हमेशा मूर्ख बना सकते हैं, लेकिन सभी को हमेशा मूर्ख नहीं बना सकते…।’ अब जनता जाग गई है, आक्रोशित हो उठी है। उनकी जो झूठी कहानियां थीं… किसानों का उत्पादन दोगुना होगा, प्रत्येक को घर मिलेगा…प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना आदि यह सब छलावा ही तो है। उसके साथ ही भ्रष्टाचारियों को एक साथ ला रहे हैं। पार्टी तोड़ रहे हैं। यह गद्दारी महाराष्ट्र कभी सहन नहीं करेगा।
उद्धवजी, आप लंबी यात्रा के बाद मुंबई वापस लौटे हैं। आप कई दिनों से चिलचिलाती धूप में महाराष्ट्र के कोने-कोने में दौरा कर रहे हैं। सिर्फ शिवसेना उम्मीदवार ही नहीं, बल्कि कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, हर उम्मीदवार को जरूरत अनुसार आप समय दे रहे हैं। पिछले चुनाव में आपके सीने पर धनुष-बाण था, तो आज मैं आपके सीने पर ‘मशाल’ देख रहा हूं। धनुष-बाण से मशाल, यह जो बदलाव हुआ है, उसका इस चुनाव में आपको क्या असर दिख रहा है?
धनुष-बाण से मशाल…ऐसा क्यों हुआ? किसने किया? लोकतंत्र की एक प्रकार की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। संविधान का पालन नहीं हो रहा है। दलबदल के बाद अपात्रता का केस…आज तक उसका निर्णय नहीं हुआ। बार-बार कोर्ट ने फटकार लगाई, कड़े बोल सुनाए। यहां पर जो तत्कालीन राज्यपाल बैठे थे, उन्हें सद्गृहस्थ कहें या क्या कहें? उन्होंने अधिवेशन बुलाया वह वैâसे गलत था, उसके बाद ट्रिब्युनल का निर्णय वैâसे गलत था, चुनाव आयोग को भी वह निर्णय लेने का अधिकार है क्या? इसका कारण सर्वोच्च न्यायालय ने बताया है। पक्ष किसी का होगा, यह तुम लोकप्रतिनिधि के आधार पर तय नहीं कर सकते। मतलब मैंने जो कहा कि लोकतंत्र का वस्त्रहरण शुरू है और उससे भी आगे अभी तक इसका निर्णय आया नहीं। सब तरफ गड़बड़ शुरू है।
सर्वोच्च न्यायालय में भी समय टालने का काम चल रहा है…
सर्वोच्च न्यायालय में हमें न्याय मिलेगा, इसका मुझे पूरा विश्वास है। क्योंकि ऐसा संविधान में उल्लेखित है। अनुच्छेद १०! सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आए बिना प्रधानमंत्री हमारी शिवसेना को, मतलब मेरी शिवसेना को, जो शिवसेना बालासाहेब द्वारा स्थापित की गई, जिसका नाम मेरे दादाजी ने रखा था, उसे नकली शिवसेना कह रहे हैं। इसका मतलब साफ-साफ समझ में आ रहा…चुनाव आयोग उनका नौकर है। जैसा उन्होंने कहा, आयोग ने वैसा काम किया है। अब सर्वोच्च न्यायालय भी हमें यह नाम और चिह्न न दे, ऐसा अप्रत्यक्ष दबाव हमारे प्रधानमंत्री सर्वोच्च न्यायालय पर ला रहे हैं क्या? ऐसा सवाल उठने लगा है।
…मतलब पूरे सिस्टम पर दबाव?
नष्ट कर दिया, दूसरा क्या कहा जाए?
दहशत है?
-हां।
देश में महाभारत की लड़ाई धर्म के लिए, सत्य के लिए लड़ी गई…और महाभारत लड़ाई में दो प्रमुख पात्र पर हमेशा चर्चा होती है…कृष्ण तो हैं ही, लेकिन अर्जुन और अभिमन्यु! विरोधी लोग ऐसा कह रहे हैं कि उद्धव ठाकरे अभिमन्यु बन गए…
सही है, लेकिन अभिमन्यु भी वीर था। वह डरपोक नहीं था। आज यह जो ईडी, इनकम टैक्स, सीबीआई के जरिए चक्रव्यूह रच रहे हैं, ये डरपोक लोग हैं। इनमें अभिमन्यु जैसा लड़ने का धैर्य नहीं है। अभिमन्यु चक्रव्यूह को तोड़ने घुसा। ये बाहर ही बाहर लोगों को एक-दूसरे से लड़वा रहे हैं। मतलब शिवसेना को तोड़ा, शिवसेना में मारामारी करवाने का प्रयत्न किया। राष्ट्रवादी को तोड़ा, परिवार तोड़ रहे हैं, परिवार में कलह पैदा करने का काम कर रहे हैं। पक्ष में झगड़ा लगा रहे हैं, यह सब तो कौरवों के काम हैं न? यह कौरव नीति जो है, वो कौरव नीति अंतत: हारने वाली है। क्योंकि कौरव उस समय सौ थे, पांडव पांच थे, लेकिन पांच पांडवों ने सौ कौरवों को हराया था। क्योंकि पांडव सत्य के लिए और धर्म के लिए लड़ रहे थे, इसलिए खुद श्रीकृष्ण भी इन पांडवों की तरफ से थे।
यह युद्ध हम जीत रहे हैं?
बेशक !
राज्य में समग्र प्रचार कैसा चल रहा है। आप खुद भी पिछले कुछ समय से, मतलब चुनाव की घोषणा होने से पहले से महाराष्ट्र में दौरा कर रहे हैं। तैयारी के साथ घूम रहे हैं। इस समय राज्य में सबसे अधिक दौरा करने वाले नेता आप हैं। कैसा चल रहा है आपका चुनाव प्रचार?
दो महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। पहला, स्वाभाविक है कि पिछले १० वर्षों से मैं जानबूझकर मोदी सरकार का जिक्र करता रहा हूं, क्योंकि मुझे मोदी सरकार नहीं चाहिए, मुझे भारत सरकार चाहिए। लेकिन अब मोदी सरकार की पोल खुलने लगी है। मैं भाषण के मुद्दे यहां नहीं बता रहा हूं। लेकिन मैं इस सरकार को गजनी सरकार कहता हूं।
गजनी सरकार?
उन्होंने २०१४ में जो कुछ कहा २०१९ में उन्हें याद नहीं था। २०१९ में जो कुछ कहा, अब उन्हें वो याद नहीं है। और आज जो कुछ बोल रहे हैं, वो कल उन्हें याद नहीं रहेगा। उन्हें ऐसा लगता है कि उनकी याददाश्त पर जो असर पड़ा है, वैसा जनता पर भी हुआ है, लेकिन ऐसा नहीं है। क्योंकि जनता दो बार मतलब १० वर्ष मूर्ख बनी। ऐसा कहा जाता है कि, ‘आप कदाचित सभी को एक बार मूर्ख बना सकते हैं। कुछ लोगों को आप हमेशा मूर्ख बना सकते हैं, लेकिन सभी को हमेशा मूर्ख नहीं बना सकते…।’ अब जनता जाग गई है, आक्रोशित हो उठी है। उनकी जो झूठी कहानियां थीं… किसानों का उत्पादन दोगुना होगा, प्रत्येक को घर मिलेगा…प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना आदि यह सब छलावा ही तो है। उसके साथ ही भ्रष्टाचारियों को एक साथ ला रहे हैं। पार्टी तोड़ रहे हैं। यह गद्दारी महाराष्ट्र कभी सहन नहीं करेगा। महाराष्ट्र ने गद्दारी कभी सहन नहीं की है। हाल ही में अपने धाराशिव के सांसद ओमराजे ने खूब बढ़िया उदाहरण दिया। ३००-४०० साल जो कुछ हुआ सो हुआ, लेकिन अभी भी खंडूजी खोपड़े का नाम लेने पर आप क्या कहते हैं? गद्दार! लेकिन बाजीप्रभु देशपांडे, तानाजी मालुसरे, कान्होजी जेधे का नाम लेने पर एक कट्टर शिवसैनिक, की छवि सामने आती है। मतलब ३००-४०० साल बीतने के बाद भी खोपड़ी के ऊपर गद्दारी की जो मुहर लगी है, उसे कोई हटा नहीं पाया, तो इन कायरों की क्या हालत होगी!
यह जो कायर और गद्दार का मामला है, महाराष्ट्र में पिछले दो वर्षों से चल रहा है। क्या आपको लगता है कि यह मुद्दा लोगों के बीच पहुंच गया है?
बहुत तेजी से वह लोगों के बीच पहुंच रहा है .. और आपने पहले जो उल्लेख किया कि मेरी छाती पर मशाल का, वैसी ही जनता के दिलों में भी मशाल धधक रही है। क्योंकि वह एक आग है। अब हमारे साथ हुआ विश्वासघात! आप कारण देखो। २०१४ और २०१९ में प्रधानमंत्री पद पर मोदी पहुंचे, उसमें महाराष्ट्र का सबसे बड़ा योगदान था। ४० से अधिक सांसद सिर्फ महाराष्ट्र ने चुनकर दिया था। और महाराष्ट्र के इतना भर- भर कर देने के बाद भी तुमने सिर्फ शिवसेना से गद्दारी नहीं की, बल्कि आपने महाराष्ट्र के साथ भी विश्वासघात किया है। क्योंकि शिवसेना एक मात्र मराठी अस्मिता का जतन करने वाली है। हिंदुत्व को जगाने वाली है। यह उस शिवसेना के साथ गद्दारी ही है, लेकिन इनके साथ -साथ महाराष्ट्र के साथ विश्वासघात हुआ है। यह मैं इसलिए कह रहा हूं कि महाराष्ट्र के अनेक उद्योग-धंधे मोदी जी अपने गांव मतलब गुजरात ले गए। महाराष्ट्र में आने वाले उद्योग-धंधे गुजरात ले गए। मुंबई का हीरा बाजार ले गए, आर्थिक केंद्र ले गए, मेडिकल डिवाइस पार्क ले गए, वेदांता फॉक्सकॉन वहां ले गए…
मोदी को अनुभव होगा महाराष्ट्र का अभिशाप!
पुलवामा में जो घटा उसे लेकर तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जो सत्य…अंगारों जैसी सच्चाई दुनिया के सामने रखी, उसका कोई जवाब नहीं दे सका। सत्यपाल मलिक राज्यपाल थे। वो भी कश्मीर के। उनका अधिकार सभी को पता है। अधिकृत पद पर बैठे, संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति ने जब इस भीषण सच्चाई को जनता के सामने लाया, उस पर भी आज कोई चर्चा नहीं कर रहा है।
लेकिन हम सब ये देखते रहे। मोदी, शाह या उनकी सरकार जब महाराष्ट्र और देश से सबकुछ नोचकर ले जा रहे थे तो हम केवल इस बारे में चर्चा करते रहे। हमने इसे रोकने की बिल्कुल कोशिश नहीं की।
हां। इसका कारण है कि जब तक मैं मुख्यमंत्री था, तब तक उनकी हिम्मत नहीं थी। इसमें से एक भी परियोजना उस समय वे नहीं ले जा सके। हालांकि, अब इनकी गद्दारी के बाद डबल इंजिन सरकार बन गई है न। यानी डबल इंजिन सरकार बनने के बाद तेजी से उद्योग-धंधे हड़पने लगे। हमारे हाथ में अब सत्ता नहीं है। महाराष्ट्र में बेकारी और बेरोजगारी बढ़ रही है, सभी कुछ बढ़ रहा है। यह जो एक गुस्सा है। आप हमारे साथ क्यों गद्दारी की? महाराष्ट्र के साथ क्यों विश्वासघात किया? आज मोदी संपूर्ण राज्य में घूम रहे हैं। अब मुझे लगता है, किसी गली-कूचे में भी रोड शो करेंगे। और उन्हें ये करना चाहिए। महाराष्ट्र कैसा है? महाराष्ट्र का आक्रोश और महाराष्ट्र की नाराजगी का उन्हें अनुभव होना चाहिए। महाराष्ट्र का प्रेम और आशीर्वाद उन्हें दस वर्षों तक मिला है। अब महाराष्ट्र का अभिशाप क्या होता है, इसका अनुभव मोदीजी करें।
आपने महाराष्ट्र से उद्योग, व्यापार-व्यवसाय को छीनकर गुजरात ले जाने का जिक्र किया। इससे पहले महाराष्ट्र में ऐसा कभी नहीं हुआ था। हर सरकार, फिर वो कांग्रेस की हो अथवा अन्य दलों की, उन मुख्यमंत्रियों ने रोकने की कोशिश की और शिवसेना की स्थापना भी मूलत: उसी उद्देश्य से की गई अथवा महाराष्ट्र के हितों की रक्षा, मराठी माणुस का स्वाभिमान। हिंदुत्व बाद में आया, लेकिन आज ‘हम असली शिवसेना’ हैं, ऐसा दावा करनेवालों का क्या?
उनकी शिवसेना यानी, ‘एसंशिं…’ मतलब उनका जो पूरा नाम है, उसे मुझे लेने की इच्छा भी नहीं है। जैसा मेरा नाम उद्धव बालासाहेब ठाकरे है, उसे लेने में उन्हें शर्म आती है। इसलिए वे शॉर्ट फॉर्म करते हैं। वैसे उनके शिवसेना का नाम है, एसंशीऽऽ उसका फुल फॉर्म क्या है? क्योंकि उन्हें उनके पिता का नाम लगाने में लज्जा आती है। उन्हें शर्म आ रही होगी तो मैं क्या उनके पिता का नाम लूं?
ये जो शिवसेना के तौर पर खुद को मानते हैं उनका मूल विचार क्या है? मराठी माणुस और महाराष्ट्र की सुरक्षा करना, वो तो कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा है…और खुली आंखों से इस महाराष्ट्र की लूट को देख रहे हैं…
– इसका ही गुस्सा जनता को आया है। यानी एक तो आपने गद्दारी करके राजनीति में अपनी मां से हरामखोरी की, शिवसेना से गद्दारी की। राजनीति में जन्म देनेवाली मां जैसी शिवसेना की कोख पर आपने वार किया ही, साथ ही महाराष्ट्र से आपने गद्दारी की। ये महाराष्ट्र में नहीं चलेगा!
नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र में प्रचार सभाओं की झड़ी लगा रहे हैं, गली-कूचों में घूम रहे हैं। एक-दो दिनों में वे घाटकोपर क्षेत्र में भी रोड शो करेंगे। उसी घाटकोपर में कल कई गुजराती सोसायटियों में शिवसैनिकों यानी मराठी माणुसों को प्रचार करने से रोका गया। इसे आप कितनी गंभीरता से लेंगे?
यही रिजल्ट तो अब इस वक्त चुनाव में आएगा। मराठी माणुस इस तरीके से कभी भी किसी राज्य में दादागीरी नहीं करते, लेकिन ये किसके आशीर्वाद से घटित हो रहा है? और उन्हें यानी मराठी द्वेषियों को ताकत देने के लिए मोदी क्या यहां रोड शो करेंगे? यह सवाल है। अब जो दिखाना है उसे मराठी माणुस दिखाएंगे ही! लेकिन एक बात आपसे कहता हूं, भले गुजराती होंगे, उत्तर भारतीय होंगे, यहां तक कि मुसलमान भी…कोरोना काल में हमने जो काम किया, उसे ये लोग कभी भी भूल नहीं सके हैं। मैंने जाति और प्रांत का भेद नहीं किया।
आपने यह भेदभाव कभी भी नहीं किया…
नहीं। कभी नहीं। उत्तर प्रदेश में गंगा में लाशें बह रही थीं। गुजरात में सामूहिक चिताएं जल रही थीं। महाराष्ट्र में ऐसा कभी नहीं घटा। उस समय मोदी खाली थालियां बजा रहे थे। दीप जलाओ, दीप बुझाओ, कलाबाजी मारो, मेंढक छलांग मारो, उठक-बैठक करो…इससे कोरोना नहीं जाता है। इसके चलते कोरोना नहीं गया। मुझे एक बात का संतोष है। महाराष्ट्र की जनता को मैं जो कुछ भी कहते गया, वो उसे सुनते गए। उसमें मैंने कहीं भी भेदभाव नहीं किया। इससे आगे जाकर मैं कहता हूं, गुजरात को लेकर मेरे मन में कोई भी द्वेष नहीं है। गुजरात भी हमारा ही है, लेकिन यही भाव गुजराती माता, भाइयों-बहनों को भी रखना चाहिए। जो यहां रहते हैं। उल्टे साल ९२-९३ में शिवसेना ने ही उन्हें बचाया। मोदी कहां थे उस समय?
उद्धवजी, हम मतदान के अगले चरण में बढ़ रहे हैं…
उनके लिए चरण क्या, सरपट चले तो भी चुनाव के पैâसले में वे सरपट दौड़ने वाले ही हैं!
आप रोज जैसे एक-एक गुगली मार रहे हैं कि उन्हें अब पिच पर उसका सामना करना कठिन हो गया है, लेकिन अगला चरण शुरू होते समय देश में इस तरह के घटनाक्रम घट रहे हैं, जो चिंताजनक है।
हां। चिंता करने वाली परिस्थिति सभी जगह है।
चुनाव के बीच एक बार फिर कश्मीर घाटी में पुलवामा कांड की पुनरावृत्ति हुई है। चार साल पहले पुलवामा में हमारे सेना के काफिले पर हमला हुआ और ४० जवानों की हत्या हुई।
इन हत्याओं का जिम्मेदार कौन है, उसे देखें। यही नपुसंक सरकार न?
पुंछ में भी उसी तरह से वायुसेना के काफिले पर हमला हुआ। कश्मीर में शांति है, यह मोदी-शाह का कहना है। हमने धारा ३७० हटाया, हमने ये किया, वो किया, फिर भी कश्मीर में सेना के जवानों की जानें जा रही हैं, ये आपको कितना चिंताजनक लगता है?
पुलवामा में जो घटा उसे लेकर तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जो सत्य…अंगारों जैसी सच्चाई दुनिया के सामने रखी, उसका कोई जवाब नहीं दे सका। सत्यपाल मलिक राज्यपाल थे। वो भी कश्मीर के। उनका अधिकार सभी को पता है। अधिकृत पद पर बैठे, संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति ने जब इस भीषण सच्चाई को जनता के सामने लाया, उस पर भी आज कोई चर्चा नहीं कर रहा है। कल जो हमला हुआ उसके लिए कौन जिम्मेदार है? पुलवामा का जो हमला हुआ, उसका कौन जिम्मेदार है? क्योंकि आज भी यदि कश्मीर अशांत है तो इन्हें क्यों वोट देना चाहिए? एक तरफ से लेह-लद्दाख में, अरुणाचल में, चीन अतिक्रमण कर रहा है, सड़क निर्माण कर रहा है। गांवों का नाम बदल रहा है फिर भी हमें यानी सरकार को कुछ भी महसूस नहीं होता है।
कश्मीरी पंडित आज भी शरणार्थी शिविर में हैं…
बीच में मोदी जी ने मा. हिंदूहृदयसम्राट शिवसेनाप्रमुख का जिक्र करते हुए कहा था कि बालासाहेब ने कभी यह विचार नहीं किया कि कश्मीर के पंडित से उनका क्या संबंध? पूरे देश में तब केवल हिंदूहृदयसम्राट ही थे। तब कश्मीरी पंडितों को शिवसेनाप्रमुख ने ही बुलाया, उन्हें आश्रय दिया। उस वक्त मोदी नाम भी किसी क्षितिज पर नहीं था। अब तो आप प्रधानमंत्री हैं। फिर भी कश्मीर के पंडित घर नहीं जा पा रहे हैं। कश्मीर में चल रहे हमलों को आप नहीं रोक पाए हैं, मणिपुर करीब एक साल से अशांत है, आज तक मोदी वहां नहीं गए हैं। मोदी मणिपुर को लेकर कुछ नहीं बोल रहे हैं। मानो सारे सवाल खत्म हो गए हों…और उद्धव ठाकरे ही केवल एक सवाल देश के सामने है, इस तरीके से मोदी और अमित शाह महाराष्ट्र में आ रहे हैं। महाराष्ट्र का दौरा कर रहे हैं। ये कुछ ज्यादा ही है! यानी क्या उद्धव ठाकरे को खत्म करके कश्मीर शांत होनेवाला है? उद्धव ठाकरे को खत्म कर दिया तो क्या चीन वापस चला जाएगा? उद्धव ठाकरे को खत्म किया तो क्या मणिपुर की महिला की लूटी गई अस्मत वापस मिलेगी? इसे लेकर मोदी के पास क्या उत्तर है…?
लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह संपन्न हुआ। मोदी टिप्पणी करते हैं अथवा अमित शाह टिप्पणी करते हैं कि उद्धव ठाकरे उस प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए उपस्थित नहीं हुए…
शंकराचार्य क्यों नहीं थे? शंकराचार्यों को क्यों नहीं बुलाया? पूछिए उनसे!
उनका कहना यह है कि उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व छोड़ दिया, वे प्राण प्रतिष्ठा समारोह में अयोध्या में उपस्थित नहीं हुए। ये बार-बार वे महाराष्ट्र में आकर कहते हैं…आपकी कार्य हिंदुत्व विरोधी है, ऐसा वे कह रहे हैं…
मैं कहां था उस दिन? मैं अयोध्या में नहीं गया। इसका कारण मुझे कोई सम्मान चाहिए था, ऐसा नहीं है। उल्टे मोदी से भी पहले मैं वहां गया था। राम मंदिर का विषय तब ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ था। सामान्य तौर पर नवंबर २०१८ का समय था। आप भी साथ में ही थे। मैं शिवसैनिकों को लेकर अयोध्या के राम मंदिर में गया था। उस समय वहां मंदिर नहीं था। अयोध्या में जाकर मैंने प्रभु राम का दर्शन किया और ‘पहले मंदिर, फिर सरकार’ के नारे हमने लगाए। शिव जन्मभूमि की मुट्ठीभर मिट्टी लेकर मैं राम जन्मभूमि पर गया। एक साल के बाद यानी उसके बाद के नवंबर में राम मंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का पैâसला आया। उसके बाद संयोगवश होगा, कुछ होगा, उसके अगले ही महीने मैं मुख्यमंत्री बन गया। मुख्यमंत्री होने पर भी मैं फिर से अयोध्या गया। बाद में जब राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा वगैरह तय की गई तब शंकराचार्यों ने उस पर टिप्पणी की। मैंने भी यह कहा कि शंकराचार्यों को आपको जरा ढंग से मान-सम्मान के साथ बुलाना चाहिए था। यानी प्राण प्रतिष्ठा के समय आपकी तरफ शंकराचार्य नहीं थे, लेकिन भ्रष्टाचारी वगैरह सभी साथ में थे। २२ तारीख को मैं कालाराम मंदिर में गया था। आप साथ ही में थे… हम जा रहे हैं इस बात का पता चलने पर मोदी भी वहां गए। शायद साफ-सफाई सही से हो रही है अथवा नहीं उसे देखकर आए थे। वहां साफ-सफाई करते हुए उनकी तस्वीर सार्वजनिक हुई थी।
बिन बुलाए मेहमान ने खाया नवाज का केक
दस सालों में जिन्होंने सिर्फ झूठ बोला है, उन झूठ बोलनेवालों को तुम सिर पर बिठाते हो या फेंक देते हो इस पर देश का भविष्य टिका रहेगा। झूठ बोलनेवाले लोगों को पुन:सिर पर बिठाया तो पुन: १० वर्ष केवल झूठ ही सुनना पड़ेगा; लेकिन अब इन्हें फेंक दिया तो देश में शांति दौड़ पड़ेगी। कानून- व्यवस्था बनी रहेगी। लोकतंत्र टिका रहेगा। अन्यथा देश के सामने मुझे लगता है काले दिन आ जाएंगे। अच्छे दिन तो आए नहीं; लेकिन काला दिवस आ सकता है।
आपने कालाराम मंदिर क्यों चुना?
इस कालाराम मंदिर की एक विशेषता है। इस मंदिर में प्रवेश पाने के लिए महामानव डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने संघर्ष किया था। ये राम मेरे भी हैं। ये राम यानी किसी का एकाधिकार नहीं है। आज जो भाजपा का एकाधिकार चल रहा है… इसीलिए ही तो मैंने ‘भाजपा मुक्त राम’ नारा दिया था। मुझे भाजपा मुक्त राम चाहिए। ये सभी जो हैं, इन्हें मैं जो शब्द बोलता हूं, काई लगा हुआ गोमूत्र धारी… उस विचार के लोग तब थे, उनके खिलाफ डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने लड़ाई लड़ी थी, ये राम हमारे हैं। मेरे भी हैं। राम मंदिर में जाने का मुझे भी अधिकार है। तब बाबासाहेब को राम मंदिर में जाने से जो लोग रोक रहे थे, वे ही आज मुझ पर टिप्पणी कर रहे हैं। इसी कालाराम मंदिर में मैं गया, गोदावरी की भी आरती की और अयोध्या में राम मंदिर का मैंने स्वागत किया; लेकिन यह राम मंदिर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के कारण बना है।
वे इस तरह का तंज कस रहे हैं कि आप कांग्रेस और राष्ट्रवादी इन दोनों दलों के साथ गए हैं।
– तो क्या हुआ?
उसकी वजह से आप औरंगजेब के विचारों पर चल रहे हैं और आप औरंगजेब फैंस क्लब के अब मेंबर बन गए हैं… ऐसा वे कहते हैं। यह क्या मामला है। इन्हें बार- बार औरंगजेब क्यों याद आता है?
क्योंकि उन्होंने अपना पसंदीदा केक जो पाकिस्तान जाकर नवाज शरीफ के जन्मदिन पर खाया था, उसकी याद आती है। बिन बुलाए मेहमान बनकर पाकिस्तान में जाकर नवाज शरीफ के जन्मदिन पर केक खानेवाले लोग मुझे औरंगजेब का फैन नहीं बोल सकते। क्योंकि औरंगजेब भी गुजरात में ही जन्मा था। जैसे ये दिल्ली गए वैसे ही औरंगेजेब आगरा में था। औरंगजेब भी महाराष्ट्र जीतने के लिए यहां २७ वर्षों तक कोशिश करता रहा। औरंगजेब ने उस समय रोड-शो-बिड शो किया होगा, सभाएं की होंगी, उसकी मुझे जानकारी नहीं, लेकिन महाराष्ट्र जीतने के लिए वह यहां २७ वर्षों तक बैठा था। लेकिन वह पुन: कभी आगरा जा नहीं पाया था, यह हमें ध्यान में रखना चाहिए!
निश्चित ही औरंगजेब ने रोड शो किया था। यहां आते समय वो हाथी, घोड़े, पैदल सेना लाव-लश्कर लेकर ही आता था…यह रोड शो ही था!
लेकिन उस समय औरंगजेब के तंबू के छप्पर को काटने का जो शौर्य मराठों ने दिखाया, वही मराठा और उनके वंशज आज भी महाराष्ट्र में जिंदा हैं।
मोदी व शाह बार-बार महाराष्ट्र में आते हैं और उद्धव ठाकरे उनके पहले नंबर के टारगेट हैं और उसके बाद शरद पवार। महाराष्ट्र की बागडोर इन दोनों नेताओं ने पुन: अपने हाथ में ली है, इसी वजह से मोदी-शाह को डर लग रहा है क्या?
ऐसा कहा जाता है कि मुगलों के घोड़ों को पानी में भी संताजी-धनाजी दिखते थे। वैसे ही हम दोनों की छवि भी उनके खच्चरों को नजर आती होगी।
मूल रूप से औरंगजेब वैगरह प्रचार का विषय हो सकता है क्या?
यही तो मेरा कहना है। तुमने १० वर्षों तक क्या किया? हार का भूत सामने नजर आने लगा तो तुम राम राम राम राम… करने लगे और चुनकर आने के बाद लोग अपने प्रश्न लेकर आए तो, उन्हें मरा… मरा…मरा…मरा… करते हो। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। उनकी ओर आपका ध्यान नहीं जाता। किसान मरा तो भी चलेगा… ५ वर्षों के बाद देखेंगे। महिलाओं पर अत्याचार हुआ तो भी चलेगा…पांच वर्षों के बाद देखेंगे। तुमने ही कहा था ना, स्वामीनाथन आयोगानुसार किसानों को उचित दाम और आय दोगुनी करेंगे… इसी उचित दाम के लिए वे दिल्ली के लिए निकले तो तुम उन पर बंदूकें तानते हो? उन पर अश्रुगैस के गोले दागते हो? उन किसानों को तुमने आतंकवादी से संबोधित किया। अर्बन नक्सली कहा। किसान जब दिल्ली की ओर निकले थे, तब संघ के कार्यवाह क्या कहते हैं, दत्तात्रय होसबले ने कहा कि किसानों का यह आंदोलन अराजक हैं। सभी इंसान ऐसे ही हैं।
उद्धवजी, १० वर्ष से मोदी की सरकार इस देश में है। १० वर्ष बड़ा कालखंड होता है।
-देश के भविष्य के १० वर्ष…और १४० करोड़ जनता के १० वर्ष…
एक नेता को दो बार मतलब लगातार १० वर्ष प्रधानमंत्री बनने की संधि मिलती है; लेकिन १० वर्षों के बाद जब तीसरी बार चुनाव के समक्ष जा रहे हैं, तब मोदी के पास या उनके पक्ष के पास प्रचार के मुद्दे ही नहीं दिख रहे। महंगाई, बेरोजगारी, आरोग्य, शिक्षण, राष्ट्रीय सुरक्षा इन मुद्दों पर प्रधानमंत्री बोलते ही नहीं।
-भ्रष्टाचारियों को संरक्षण मोदी की गारंटी’ यह विषय उनके पास हैं। उनके बारे में आपका क्या मत है?
यह विषय चर्चा में है ही…
-मतलब भ्रष्टाचार करो और भाजपा में आओ। एक वो कौन सी गोली थी ना, उसका विज्ञापन हमेशा आता था। वो खाओ और सब भूल जाओ। वैसा ही है।भ्रष्टाचार करो, भाजपा में आओ!
नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचारमुक्त भारत की घोषणा की थी…
हां। यह बराबर है। मतलब जितने भ्रष्टाचारी हैं उन्हें भाजपा में लिया जा रहा हैं। मतलब भारत मुक्त हो रहा हैं। अन्य पक्ष मुक्त हो रहे हैं। इसलिए मैंने उन्हें ‘व्हैक्यूम क्लीनर’ कहा है। जैसे व्हैक्यूम क्लीनर कहीं भी कार्पेट पर जमी हुई धूल हो, कहीं किसी सुराग में जमी हुई धूल हो, उसे खींच लेता है। वैसे ही ये सभी भ्रष्टाचारियों को भाजपा में खींच रहे हैं। मतलब भ्रष्टाचारमुक्त भारत। भ्रष्टाचारमुक्त कांग्रेस। भ्रष्टाचारमुक्त शिवसेना…
मोदी के प्रचार में कौन से मुद्दे हैं? मुसलमान, पाकिस्तान, कब्रिस्तान, श्मशान इन मुद्दों पर मोदी बोलते हैं…
-उनके प्रचार में पाकिस्तान है और हमारे प्रचार में हिंदुस्थान हैं।
प्रत्येक चुनाव इस देश का भविष्य निश्चित करने वाला चुनाव होता है। खासतौर पर लोकसभा चुनाव। अब तक के ७०-७५ वर्षों के चुनावों में देश का भविष्य तय करने की कोशिश की गई। इन चुनावों की विशेषता क्या आप बताएंगे?
-मैंने सभाओं में कहा है। चुनाव में दोनों का भविष्य तय होता है। जाहिर है, पहले जनता अपने नेताओं की किस्मत का फैसला करती है। वैसा समय आज आया है। दस सालों में जिन्होंने सिर्फ झूठ बोला है, उन झूठ बोलनेवालों को तुम सिर पर बिठाते हो या फेंक देते हो इस पर देश का भविष्य टिका रहेगा। झूठ बोलनेवाले लोगों को पुन:सिर पर बिठाया तो पुन: १० वर्ष केवल झूठ ही सुनना पड़ेगा; लेकिन अब इन्हें फेंक दिया तो देश में शांति दौड़ पड़ेगी। कानून- व्यवस्था बनी रहेगी। लोकतंत्र टिका रहेगा। अन्यथा देश के सामने मुझे लगता है काले दिन आ जाएंगे। अच्छे दिन तो आए नहीं; लेकिन काला दिवस आ सकता है।
उद्धव जी, एक ओर प्रचंड पैसा…
कहां से आया?
एक ओर अमर्यादित पैसा, अमर्यादित सत्ता, उसी में चुनावी बॉन्ड भी सामने आया है। १० हजार करोड़ रुपए एक पक्ष के खाते में जमा हुए। गिनेचुने उद्योगपतियों के पास पैसा गया। एक ओर ऐसी शक्तिशाली भाजपा और दूसरी ओर चाहे शिवसेना हो, राष्ट्रवादी हो या फिर कांग्रेस, जिसके खाते सील कर दिए गए। यह लड़ाई विषम है, ऐसा आपको नहीं लगता क्या?
– विषम तो है ही और भीषण भी है। मेरी मतदाताओं से विनती है कि आप इन पैसों पर अपना भविष्य न बेचें। पैसे लेकर मत देना मतलब अपने भविष्य की वाट (संकट) लगा देना होता है। तुम्हारे बच्चों का भविष्य बेचने जैसा ही है। यह पैसा भ्रष्टाचार से मिला हुआ पैसा है। चुनावी बॉन्ड के बारे में आपने पूछा तो उन्हीं के मंत्रिमंडल की जो सीतारमण महिला हैं, उनके पति पर्कला प्रभाकरन ने ही बताया कि यह दुनिया का सबसे बडा घोटाला है। उसे उन्होंने नाम दिया है मोदी-गेट’। जब हम छोटे थे तब अमेरिका में जे निक्सन का मामला घटा था, तब से यह ‘गेट’ शब्द प्रचलित हुआ। उस निक्सन गेट के साथ ‘मोदी गेट’ की तुलना उन्होंने की है।
…लेकिन वाटरगेट की वजह से निक्सन को जाना पड़ा था…
अब लोगों को भी इन्हें भेज देना चाहिए। भ्रष्टाचार करने के बाद उतनी नीतिमत्ता निक्सन के पास थी। अब वही वैसा ये मत खरीदने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
चाहे अमेरिका हो, जापान हो, साउथ कोरिया हो, पिछले कई वर्षों की घटनाओं पर नजर डालें तो भ्रष्टाचार करनेवालों को तुरंत उनके पदों को छोड़ना पड़ा है। लेकिन इतना बड़ा घोटाला सामने आने के बावजूद मोदी और उनका पक्ष आज भी सत्ता में हैं। उन्हें आप कैसे हटाओगे?
हम पूरी तरह से कोशिश कर रहे हैं और मुझे सभाओं से प्रतीत हो रहा है, हम बोलते रहते हैं, लेकिन अब लोग समझ गए हैं। किसी एक मुद्दे की शुरुआत करते ही लोग खुद ब खुद सामने से एक-एक विषय पर बोलने लगते हैं। अत: जागृति पैâल गई है। कल मेरी रायगढ़ में सभा थी। पहले एक नाटक था, ‘रायगडाला जेव्हा जाग येते’ मतलब समझ लो पूरा देश जाग गया है।
यह जो जागा हुआ देश है..
– वो इन्हें इन भ्रष्टाचारियों को सुला देगा।
क्रमश: