सैयद सलमान
सात चरण में हो रहे लोकसभा चुनाव के चौथे चरण से पहले पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर, हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह और वरिष्ठ पत्रकार एन राम ने पीएम मोदी व राहुल गांधी को एक चिट्ठी लिखी। चिट्ठी में दोनों से २०२४ के चुनावों के प्रमुख मुद्दों पर सार्वजनिक बहस करने का अनुरोध किया गया। राहुल गांधी ने तुरंत उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने सेफ गेम खेलते हुए राहुल गांधी को रटी-रटाई स्क्रिप्ट पढ़ने वाला नेता बताते हुए कन्नी काट ली। हालांकि, उन्हें खुद कई बार टेलीप्रॉम्प्टर पर पढ़कर भाषण देते हुए देखा गया है इसलिए लोगों को मोदी का यह बहाना रास नहीं आ रहा। ऐसे में राहुल की उस बात को बल मिलता है कि वे तो बहस का प्रस्ताव स्वीकार कर ले रहे हैं, लेकिन मोदी नहीं स्वीकारेंगे। लोकतंत्र में बहस-मुबाहिसे की गुंजाइश होनी चाहिए। आरोप-प्रत्यारोप की भी मर्यादा होनी चाहिए, लेकिन इन दिनों ऐसा नहीं है। खासकर प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति से मर्यादा की ज्यादा उम्मीद होती है, लेकिन हो बिल्कुल विपरीत रहा है।
घर में क्लेश
पीलीभीत से वरुण गांधी का टिकट भाजपा ने काट दिया, लेकिन सुल्तानपुर से उनकी मां मेनका गांधी को टिकट देकर बैलेंस बनाए रखा। अब मेनका गांधी लाख सफाई दें कि वो वरुण को टिकट न दिए जाने से नाराज नहीं हैं या वरुण खुद नाराज नहीं हैं, यह बात किसी के गले नहीं उतरेगी। भाजपा हाईकमान का खौफ ही है, जो मेनका गांधी अब तक सुल्तानपुर में वरुण गांधी को प्रचार करने भी नहीं बुला सकी हैं। वरुण गांधी आर्थिक मुद्दे पर, किसानों के मुद्दे पर, अल्पसंख्यकों में भय के मुद्दे पर, रोजगार के मुद्दे पर अपनी ही सरकार के खिलाफ खूब बोल रहे थे। नतीजतन उनका टिकट काट दिया गया। एक खबर यह भी थी कि भाजपा का एक गुट रायबरेली से उन्हें लड़ाने की योजना बना रहा था, लेकिन वरुण ने इंकार करते हुए परिवार को महत्व दिया था। यह बात भी शायद भाजपा के रणनीतिकारों को नहीं सुहाई होगी। इस मामले में मेनका के गले में ऐसी फांस फंसी है कि वो बेटे वरुण को प्रचार के लिए बुला भी नहीं पा रही हैं। घर में क्लेश कराना कोई भाजपा से सीखे।
बैन का हंटर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नकल करने वाले कॉमेडियन श्याम रंगीला ने वाराणसी की सियासत को सचमुच रंगीन बना दिया है। दरअसल, अपनी कॉमेडी से लोगों को हंसाने वाले श्याम रंगीला ने राजनीति में उतरने का एलान किया और घोषणा कर दी कि वो वाराणसी से पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। हालांकि, अब तक श्याम रंगीला को नामांकन फॉर्म नहीं मिल सका है। उन्होंने इसे लेकर वाराणसी जिला प्रशासन पर आरोप तो लगाए ही हैं, साथ ही वाराणसी से पर्चा न मिलने पर चुनाव आयोग से भी इस मामले में दिशानिर्देश जारी करने की मांग की है। फॉर्म के लिए पहले उनसे दस प्रस्तावकों के हस्ताक्षर समेत आधार कार्ड की प्रतियां और उनके फोन नंबर उपलब्ध कराने को कहा गया है, जबकि ऐसा कोई प्रावधान चुनाव आयोग के नियमों में नहीं है। यही रंगीला बाबू कभी मोदी भक्त के रूप में बुलाए जाने पर गर्व महसूस करते थे। बाद में इन पर मोदी की नकल के कारण जब बैन का हंटर पड़ा, तब इनकी आंख खुली। चुनाव लड़कर शायद `जब जागो तब सवेरा’ वाली कहावत चरितार्थ हो जाए।
कम मतदान चिंताजनक
अब तक लोकसभा चुनाव के तीन चरण पूरे हो चुके हैं। पहले चरण में ६६.१४ प्रतिशत और दूसरे चरण में ६६.७१ प्रतिशत, जबकि ७ मई को संपन्न हुए तीसरे चरण के चुनाव में ६५.६८ प्रतिशत हुआ है। मतदान प्रतिशत का गिरना सभी राजनीतिक दलों की नींद उड़ा रहा है। कोई भी दल विश्वास से नहीं कह पा रहा कि कम मतदान से उसे लाभ होगा। कम मतदान का होना मतदाताओं की बेरुखी साबित करता है। युवा और शिक्षित मतदाताओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए मतदाताओं की यह उदासीनता आश्चर्यजनक ही नहीं, चिंताजनक भी है। वैसे कम मतदान के पीछे भीषण गर्मी को भी एक कारण माना जा रहा है। मतदान का प्रतिशत बढ़ाना हर राजनीतिक दल और उस से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है। चुनाव आयोग भी इस ओर विशेष ध्यान दे। मतदान के महत्व को अगर नहीं समझा गया है तो लोकतंत्र पर सारी बहस बेकार है। भारी मतदान होने पर ही चुनाव को लोकतंत्र का महापर्व कहा जा सकता है, अन्यथा यह मात्र औपचारिकता ही कहा जाएगा।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)