खुद ही बचने का दिया सुझाव
धीरेंद्र उपाध्याय
मुंबई में रहनेवाले लोगों के लिए आवारा कुत्ते अब धीरे-धीरे मुसीबत बनते जा रहे हैं। कई मामलों में तो ये घातक भी बन रहे हैं। आलम यह है कि इन आवारा कुत्तों की वजह से राहगीरों का मुंबई की सड़कों और फुटपाथों पर चलना तक दुश्वार हो गया है। शहर के किसी न किसी कोने में राहगीरों को आए दिन कुत्ते अपना शिकार बना रहे हैं। हालांकि, इनके इस आतंक को रोकने के लिए मनपा अब तक कई तरह के हथकंडे अपना चुकी है, लेकिन कुत्तों ने इस कदर नाक में दम कर दिया है कि उसके सारे प्रयास बेदम साबित हो रहे हैं। ऐसे में परेशान हो चुकी मनपा के पास कुत्तों से निजात दिलाने का कोई प्लान नहीं है। यही नहीं मनपा ने भी हथियार डालते हुए साफ कह दिया है कि नागरिक आवारा कुत्तों से खुद ही अपना बचाव करें।
उल्लेखनीय है कि मुंबई में हर दस सालों में कुत्तों और पालतू जानवरों की गणना की जाती है। पिछली गणना साल २०१४ में हुई थी, जिसमें मुंबई में ९५ लाख आवारा कुत्ते मिले थे। एक अनुमान के मुताबिक, मौजूदा समय में यह संख्या बढ़कर करीब १.९० लाख तक पहुंच गई है। इसे देखते हुए रेबीज बीमारी को फैलने से रोकने के लिए मनपा सितंबर २०२३ से कुत्तों का टीकाकरण कर रही है। कहा जा रहा है कि अभी तक सभी कुत्तों का टीकाकरण नहीं हो सका है। सूत्रों के मुताबिक, इस काम को करने में मनपा अधिकारियों और कर्मचारियों की हालत पतली हो रही है। ऐसे में इस काम को पूरा करने के लिए मनपा ने जेनिस स्मिथ एनिमल वेलफेयर ट्रस्ट, यूथ ऑर्गनाइजेशन इन डिफेंस ऑफ एनिमल्स, यूनिवर्सल एनिमल वेलफेयर सोसाइटी और उत्कर्ष ग्लोबल फाउंडेशन को नियुक्त किया गया है, जिनकी मदद से टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है।
११ महीने मनपा ने आवारा कुत्तों के डिजिटल आइडेंटिफिकेशन की पहल शुरू की थी। इसके लिए जानवरों की क्यूआर टैगिंग होनी थी। इसमें कुत्तों के गले में क्यूआर कोड वाले टैग लटकाए जानेवाले थे। इस टैग के जरिए कुत्तों के टीकाकरण, नसबंदी और डिजिटल तौर पर रखे गए उनके नाम का भी डाटा सब कुछ आसानी से मिल जाता। लेकिन यह पहल भी फेल होते हुए दिखाई दे रही है।
हर घंटे १० लोग होते हैं शिकार
मुंबई में आवारा कुत्तों की दहशत बढ़ती जा रही है। घर से निकलने पर कब कुत्ता काट ले, इसकी कोई गारंटी नहीं है। कुत्तों के काटे जाने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। एक आंकड़े के मुताबिक, मुंबई में हर एक घंटे में १० लोग कुत्ते के काटने से घायल होते हैं। दूसरी ओर मनपा की ओर से चलाए जा रहे इस अभियान में नागरिकों का सहयोग बहुत महत्वपूर्ण होगा। मनपा ने नागरिकों से अपने क्षेत्र में आवारा कुत्तों के बारे में जानकारी देने और टीकाकरण कर्मचारियों के साथ सहयोग करने की अपील की है।
सिखाए जा रहे बचने के गुर
मनपा प्रशासन के मुताबिक, लोगों में फैलाई जा रही जागरूकता अभियान के तहत बताया जाएगा कि खाते, सोते और स्तनपान कराते हुए कुत्तों को परेशान न करिए। कुत्तों के सामने जानबूझकर न दौ़ड़ें। पत्थर और कोई भी सामान उन पर न फेंकें। यदि कुत्ते भौंकते हुए सामने आते हैं तो भागने की बजाय खड़े हो जाइए और बिल्कुल भी मत चिल्लाइए। इसके साथ ही यदि कुत्ता काट लेता है तो तुरंत १५ मिनट तक साबुन लगाते हुए धोते रहिए। संभव हो तो आयोडीन और बेटाडीन से घाव को साफ करिए। घाव होने पर उसे ढंक कर मत रखिए अथवा घरेलू उपाय न करिए। इससे घाव में सैप्टिक हो सकता है। कुत्ते के काटने के बाद इंजेक्शन का पूरा कोर्स करने के लिए अस्पतालों से संपर्क करिए।
नाकाफी साबित हो रहे हैं उपाय
आजकल आवारा कुत्तों का आतंक देश के कोने-कोने में देखने को मिल रहा है और ये दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। कई राज्य सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इस समस्या को लेकर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। पर ये समस्या ज्यों की त्यों नजर आ रही है। कुछ यही हाल मुंबई शहर का भी है। मनपा आवारा कुत्तों की संख्या को कम करने के लिए नसबंदी से लेकर कई तरह की उपाय योजनाएं चला रही है, लेकिन ये सब नाकाफी साबित हो रहे हैं। इतनी बड़ी यंत्रणा होने के बावजूद जब मुंबई मनपा की यह स्थिति है तो राज्य और देश के अन्य शहरों के क्या हालात होंगे इसका स्पस्ट तरीके से अंदाजा लगाया जा सकता है।
रेबीज से मौत में भारत का हिस्सा ३६ फीसदी
एक अनुमान के मुताबिक, मुंबई समेत देश में करीब ६.२ करोड़ आवारा कुत्ते हैं। दूसरी तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि कुत्तों के काटने की वजह से होनेवाली रेबीज बीमारी से मौत के मामले में हिंदुस्थान की भागीदारी ३६ फीसदी है। देश में कुत्तों की बहुत बड़ी संख्या हालात की गंभीरता को खुद बयां कर रहे हैं।
पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम में
ढिलाई मुख्य कारण
मुंबई में आवारा कुत्तों के कल्याण के लिए काम करनेवाली संस्थाओं का कहना है कि शहर में डॉग बाइट्स एक समस्या बन चुकी है। उनका कहना है कि कोई नहीं चाहता कि ऐसी घटनाएं हों। ये बहुत ही दुखद हैं। कुछ शहरों को छोड़ दें तो इसका मुख्य कारण यह है कि पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) कार्यक्रम पर अमल नहीं किया जाता है।
ओवैस मोहम्मद आरीफ शेख, नौकरीपेशा
कई बार होती है टकराव की स्थिति
आवारा कुत्ते गंभीर समस्या बनकर उभरे हैं। खासकर, मुंबई जैसे बड़े शहरों में यह भयानक शक्ल अख्तियार कर चुका है, क्योंकि यहां आवारा कुत्तों से पीड़ित लोगों की बड़ी जमात है, तो उन कुत्तों के संरक्षण में ऐसे लोग कूद जाते हैं, जिनकी अपनी एक मजबूत लॉबी है। इसकी वजह से कई बार टकराव की स्थिति भी पैदा हो जाती है। कई बार तो इसके चलते कानून-व्यवस्था के भी हालात पैदा हो जाते हैं।
नीदा मुकरी, बैंककर्मी
जानलेवा बन रहे हैं आवारा कुत्ते
पिछले कुछ समय में मुंबई समेत देश के कुछ शहरों में ऐसी घटनाएं देखने को मिली हैं, जिसमे आवारा कुत्तों ने मासूमों की जान तक ले ली है। आज भी बड़े शहरों में आवारा कुत्ते बहुत बड़े विवाद की वजह हैं। एक तरफ तो वो हैं, जिनकी वाकई आवारा कुत्तों की वजह से जिंदगी दूभर हो चुकी है। ऐसी घटनाएं देख चुके हैं, जिसकी वजह से आवारा कुत्तों के डर से सैर पर निकलना बंद कर चुके हैं। बच्चों के खेलने से रोकने लगे हैं। दूसरी तरफ वह एक्टिविस्ट जमात है, जो यह माने बैठे हैं कि यह जानवर बिना छेड़े कुछ कर ही नहीं सकते।
प्रतीक पाटील, ठाणे