मुख्यपृष्ठराजनीतिउत्तर की बात : फतेहपुर में सबके अपने दावे और दांव

उत्तर की बात : फतेहपुर में सबके अपने दावे और दांव

रोहित माहेश्वरी
लखनऊ

उत्तर प्रदेश में पांचवें चरण की जिन १४ सीटों पर २० मई को वोट पड़ेंगे, उनमें एक सीट फतेहपुर भी है। इस सीट पर पिछले एक दशक से भाजपा का कब्जा है। भाजपा ने तीसरी बार केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति को मैदान में उतारा है। दो बार से जीतती आ रही साध्वी निरंजन ज्योति की मुश्किलें समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने बढ़ा दी हैं।
इस लोकसभा सीट के संसदीय इतिहास की बात की जाए तो यहां पर १९९० के बाद हुए लोकसभा चुनावों में मुकाबला त्रिकोणीय रहा है। इस सीट पर कभी बीजेपी तो कभी सपा या फिर बसपा के इर्द-गिर्द ही जीत घूमती रही है। वर्ष २०१९ के चुनाव ने सपा व बसपा गठबंधन के प्रत्याशी बसपा नेता स्व. सुखदेव वर्मा चुनाव लड़े थे। गठबंधन की झोली में ३ लाख ६७ हजार मत गए थे, जबकि भाजपा प्रत्याशी साध्वी निरंजन ज्योति ने ५ लाख ६६ हजार मत पाकर १ लाख ९८ हजार मतों से जीत हासिल की थी। पिछड़ी जाति पर दांव लगाकर भाजपा दो बार से चुनाव जीत रही है।
फतेहपुर संसदीय सीट के तहत ६ विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें जहानाबाद, बिंदकी, अयाह शाह, फतेहपुर, हुसैनगंज और खागा सीटें शामिल हैं। खागा अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीट है। साल २०२२ में हुए विधानसभा चुनाव में यहां की ४ सीटों पर बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए (एक सीट अपना दल, सोनेलाल) को जीत मिली तो २ सीट सपा के खाते में गई।
नरेश उत्तम के चुनाव मैदान में उतरने से यहां लड़ाई सीधे तौर पर भाजपा और सपा के बीच जाकर टिक गई है। समाजवादी पार्टी ने पहली बार इस सीट पर २००९ के आम चुनाव में जीत दर्ज की थी। इसके बाद से अब तक १५ वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन सपा को इस सीट से कामयाबी नहीं मिली है। चर्चा यह भी है कि इस बार संसदीय क्षेत्र में स्थानीय प्रत्याशी मतदाताओं की पहली पसंद के तौर पर आ सकता है। इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने बाहरी बनाम स्थानीय मुद्दे पर जिले के ही उम्मीदवार पर भरोसा जताते हुए ३ पंचवर्षीय पहले हुए आम चुनाव के परिणाम को दोहराने के लिए सपा ने स्थानीय ट्रंप कार्ड खेला है।
विरोधी दल फतेहपुर लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार नरेश उत्तम पटेल को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। नरेश उत्तम के पास काफी अनुभव है क्योंकि उन्होंने उत्तर प्रदेश में विधायक, एमएलसी और समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्य किया है। वहीं उनका सरल स्वभाव और सादगी उनकी लोकप्रियता को बढ़ाता है। वहीं बात अगर भाजपा प्रत्याशी की कि जाए तो पिछले दस साल के कार्यकाल में साध्वी निरंजन ज्योति ने कई विकास कार्य क्षेत्र में करवाए हैं। लंबे कार्यकाल में थोड़ी बहुत नाराजगी का उपजना स्वाभाविक है। सारी बात जातियों के समीकरण पर टिकी है। भाजपा की प्रत्याशी जहां निषाद समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं, वहीं सपा के नरेश उत्तम कुर्मी समुदाय से आते हैं। दोनों समुदायों का ठीक-ठाक वोट बैंक इस संसदीय सीट पर हैं।
फतेहपुर लोकसभा सीट पर एससी वोटर्स की संख्या सबसे अधिक हैं। यहां पर करीब १९ लाख वोटर्स में ४ लाख से अधिक एससी वोटर्स हैं। इनके अलावा क्षत्रिय वोटर्स की संख्या ३ लाख, ढाई लाख के करीब ब्राह्मण वोटर्स हैं तो निषाद वोटर्स की संख्या २ लाख, १.२५ लाख वैश्य और एक लाख से अधिक यादव वोटर्स हैं। इनके अलावा डेढ़ लाख से अधिक मुस्लिम वोटर्स हैं। पिछले दो चुनाव में भले ही भाजपा यहां से जीती हो, लेकिन इस बार के चुनाव में फतेहपुर लोकसभा सीट पर केंद्र और सूबे की सत्तारूढ़ भाजपा और सपा में कांटे का मुकाबला है।
दोनों ही दलों के प्रत्याशी पिछड़े वर्ग के हैं। ऐसे में ओबीसी वैâटेगरी के मतदाताओं में ध्रुवीकरण की प्रबल संभावनाएं हैं। इन परिस्थितियों में यह कह पाना मुश्किल है कि बीजेपी हैट्रिक लगाकर इस सीट पर ६७ साल बाद इस कीर्तिमान को स्थापित कर पाएगी। राजनीतिक विशलेषकों के अनुसार, सपा ने मजबूत प्रत्याशी उतारकर बीजेपी के लिए इस सीट पर तीसरी बार कामयाबी हासिल कर मंजिल तक पहुंचना मुश्किल कर दिया है। अब यह देखना अहम होगा कि ४ जून को जब ईवीएम मशीनें वोटों की गिनती करेंगी तो यहां सपा की साइकिल तेजी से दौड़ेगी या फिर तीसरी बार कमल खिलेगा। फिलहाल, मुकाबला कांटे का है और नतीजा कुछ भी हो सकता है।

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