एड. राजीव मिश्र
मुंबई
आजकाल जेतनी चकल्लस बियाह में बढ़िया घर देखय के अहइ ओहिसे ज्यादा बरात के तैयारी मा है। असल में बरीक्षा के बाद घर के बड़-बुजुर्ग के पॉवर सीज होइ जात है। बरीक्षा के बाद घर के असिला मालिक ‘मिनिस्टर विदाउट पोर्टफोलियो’ होइ जात हैं। उनकर काम बस फाइनेंस करय के रहि जात अहइ। सच कहा जाय तो शादी-बियाह में बरीक्षा के बाद घर के सबसे नकारा मनई के ‘प्रबंधन क्षमता’ घर वालन के झकझोर जात है। उ लड़िका जेहिके बारे में माई के करेजा बाप के ताना से फाटि के खरबूजा होइ जात रहा अब उहै माई ओहि लड़िका के दौड़-धूप देखि के फूली नही समात है। बियाह में सबसे पहिले डीजे वाला ढूंढ़ा जात है। घरवाले लाख पिस्टीन और शहनाई पे जोर देय पर आखिर मा बरात जाई तो डीजे के साथ ही जाई। डीजे के बाद नंबर आवत है गाड़ी के, अब बस के जमाना तो रहा नही तो अब गाड़ी भी किही जात है तो एक्कय कंपनी अउर एक्कय रंग के। मतलब बोलेरो तो बोलेरो उहौ सफेद रंग के चाहे पचास गाड़ी रहय या सौ, गाँव में भौकाल टाइट रहे के चाही। जब एक साथ एक कंपनी अउर एक रंग के गाड़ी लड़िका के घर से निकरत है तो आहा केतना नीक लागत है। खुद के घर में भले कबाड़ जीप खड़ी होय पर दुआर-पूजा बीएमडब्ल्यू से लगी। गाड़ी-घोड़ा, बग्घी, डीजे, आर्केस्ट्रा अउर तो अउर आतिशबाज तक के सारा व्यवस्था घर के उहै नकारा लड़िका के जिम्मे होत है, बियाह तक ओहिके पानी पियय तक के फुरसत नही होत है। यहि सब व्यवस्था में कब ओहि लड़िका के नाम बरात मालिक पड़ि जात है ओहिके भी पता नही चलत है। यहि मालिक के विरोध मा खाली एक वोट ओहिके बप्पा के होत है, बाकी पूरे घर के घनघोर बहुमत हमेशा बरात मालिक के पास होत है। बस बियाह के १५ दिन तक बरात मालिक घर पे नही मिलत हैं काहे कि सारा खर्चा के जब ऑडिट होत है, बरात मालिक के सार्वजनिक सम्मान के संभावना कुछ ज्यादय होत है।