रात या दिन हमें नचाती है
जिंदगी किस तरह रिझाती है
तार टूटे न जब कभी कोई
जिंदगी तब सुरों में आती है
चीख उठती है बंद होंठों से
जिंदगी जब सुई चुभाती है
आंख से टूटते हैं मोती यूं
जिंदगी जब भी यूं रुलाती है
आह सीने को चाक कर देती
जिंदगी जब कभी सताती है
कितना लेना था और देना भी
जिंदगी कर्ज भी चुकाती है
डोलते हैं ‘कनक’ जहां वाले
जिंदगी जाम जब पिलाती है।
-डॉ. कनक लता तिवारी