राधेश्याम सिंह
संघर्ष करके अपनी मेहनत के बलबूते अपना भविष्य बदलने वालों में ४३ वर्षीय इनामुल हक उर्फ पप्पू खान का भी शुमार है, जो मात्र १९८९ में मात्र ८ वर्ष की उम्र में मुंबई चले आए। उत्तर प्रदेश के जिले कानपुर शहर के रहनेवाले इनामुल हक जब मुंबई आए तो दो दिनों तक बिना कुछ खाए सिर्फ पानी पीकर भूखे पेट रहकर फुटपाथ पर सोए। मुंबई में रहनेवाले उनके एक रिश्तेदार ने उन्हें देखने के बाद भी मुंह फेर लिया। बिना खाए-पीए भूखे पेट रोड पर बैठे इनामुल को इतनी तेज भूख लगी थी कि उनके पास न बोलने की हिम्मत थी और न ही पैरों में चलने की ताकत। ऐसी दशा में उन्हें फरिश्ते के रूप में एक ऐसा व्यक्ति मिला जिसने न केवल उन्हें खाना खिलाया, बल्कि अपने घर ले जाकर नहला-धुलाकर मार्वेâट ले जाकर पहनने के लिए उन्हें कपड़ा दिलवाने के साथ ही उन्हें अपने घर में रखा। उस व्यक्ति को फरिश्ता कहकर बुलानेवाले इनामुल कहते हैं कि उस फरिश्ते ने मुझे न केवल अपने बेटों की तरह पाला-पोसा, बल्कि पढ़ाने-लिखाने के साथ ही उनकी दुकान पर मैं उनके बेटों की तरह दुकान की देखभाल करने लगा। अच्छी तरह से जिंदगी गुजर रही थी कि तभी एक दिन मेरे फरिश्ते का इंतकाल हो गया। मुझे ऐसे लगा जैसे कि मैं फिर से लावारिस हो गया। उस वक्त मैं लगभग २५ साल का हो चुका था। हिम्मत करके मैंने खुद का ब्यूटीपार्लर का धंधा चालू किया। ब्यूटीपार्लर में आदमी को काम पर रखकर ब्यूटीपार्लर चलाने लगा और ब्यूटीपार्लर का धंधा इतना अच्छा चलने लगा कि उसी एक ब्यूटीपार्लर के धंधे से कई ब्यूटीपार्लर की दुकान मैंने खोल ली। धंधा अच्छा चल रहा था कि इसी बीच एक दूसरा व्यापार शुरू किया, जिसमें काफी नुकसान हो गया। इस नुकसान की भरपाई करते-करते एक-एक ब्यूटीपार्लर की सारी दुकानें बंद होती चली गर्इं। उसके बाद २०१० में मुंबई से नालासोपारा आकर भाड़े की दुकान लेकर रेडीमेड कपड़े की दुकान खोल ली। कपड़े की दुकान अच्छी चलने लगी और मैं पत्रकारिता भी करने लगा। कुछ साल बाद शॉर्ट-सर्किट के वजह से कपड़े की दुकान में आग लग गई और मैं फिर रोड पर आ गया, लेकिन हिम्मत न हारते हुए कड़ी मेहनत और लगन से काम करता रहा। आज मैं फिर कामयाब हो गया। इनामुल हक का कहना है कि इंसान को हिम्मत नहीं हारना चाहिए और लगातार प्रयास करते रहना चाहिए। एक न एक दिन कड़ी मेहनत कर वह दोबारा कामयाब हो जाएगा। इनामुल हक उर्फ पप्पू खान ने कहा कि अपने माता-पिता की बातों को आदर्श मानते हुए वो अपना कार्य करते हैं। कई संस्थाओं से भी इनामुल हक जुड़े हुए हैं और ५ वर्षों से समाजसेवा भी करते आ रहे हैं। समय-समय पर फ्री आई चेकअप, ब्लड कैंप, ब्लड डोनेशन कैंप लगवाते रहते हैं। अपने पुराने दिनों को न भूलनेवाले इनामुल हक अपने सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंद, बुजुर्गों, गरीब और बेसहारा लोगों का राशन भरवाकर उनकी मदद करते हैं। इनामुल हक अपने दोनों बेटों को पढ़ा-लिखा कर ऊंचे पद पर देखना चाहते हैं। अपने परिवार की देखभाल करने के साथ ही बच्चों का भविष्य संवारने के लिए वे दिन-रात कड़ी मेहनत कर रहे हैं।