गजल

बात सीधी सरल मैं
दुनिया को सुनाता हूं,
नहीं तारीफ चाहिए,
ना खुद की गाता हूं,
मैं तो चंचल हूं बस
बहती हुई पवन की तरह,
रहता महफिल में हूं,
फिर भी नजर ना आता हूं।
मेरा अंदाज है,
दरिया से निकले झरने सा,
रफ्ता रफ्ता सही,
जमीं पे उतर जाता हूं ।
जो ना इनाम मिले,
क्यों करे शिकवा `पूरन
कोशिशें दर कोशिशें मैं
रोज आजमाता हूं ।
-पूरन ठाकुर `जबलपुरी’
कल्याण

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