मुख्यपृष्ठस्तंभआसान नहीं है रिंकिया के पापा की डगर!

आसान नहीं है रिंकिया के पापा की डगर!

जय सिंह, मुंबई

पिछले कुछ समय से भोजपुरी फिल्मों के कलाकार रुपहले पर्दों पर अपनी कलाकारी का प्रदर्शन करने के साथ ही राजनीति पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने की होड़ में लगे हुए हैं। दूसरी ओर केंद्र की भाजपा सरकार को अपने काम पर भरोसा ही नहीं है। इसी सिलसिले में कई भोजपुरी कलाकारों की लग गई है, लेकिन सत्य यह भी है कि अब आम जनमानस का दिल इनसे भर गया है। मनोज तिवारी, रवि किशन, दिनेश लाल यादव, पवन सिंह, गुंजन सिंह, कुणाल सिंह जैसे दिग्गज भोजपुरी के कलाकार राजनीति में अपना अपना भाग्य लेकर चले हैं, लेकिन जितना आकर्षित यह फिल्म के रुपहले पर्दे पर जनता को करते हैं, उतना चुनावी मैदान में यह जनता को लुभा नहीं पाए हैं। राजनीति के जानकारों के मुताबिक, जितने भी भोजपुरी स्टार ने राजनीति में कदम रखा है, उन सबका इतिहास उठाकर देखें तो लगातार इनकी ६ से अधिक फिल्में जब बॉक्स ऑफिस पर पानी नहीं मांगती हैं यानी की फ्लॉप हो जाती हैं, तब इन्हें राजनीति सूझती है। फ्लॉप फिल्में लगातार जब अपनी संख्या बढ़ाती हैं तो यह अपने स्टारडम का फायदा उठाने आ जाते हैं।
भोजपुरी कलाकारों के फ्लॉप स्टारडम का इस्तेमाल कर जब कोई कलाकार सांसद बन जाता है तो सबसे पहले उस क्षेत्र को नरक बनने से कोई नहीं रोक पाता है। इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण है भोजपुरी के गायक, नायक व भाजपा के स्टार प्रचारक मनोज तिवारी, जो पिछले १० साल से राष्ट्रीय राजधानी उत्तर पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं। यह क्षेत्र आज भी स्कूल, अस्पताल और कॉलेज की कमी से जूझ रहा है। क्षेत्रवासियों का सबसे बड़ा आरोप है कि मनोज चुनाव जीतने के बाद नजर नहीं आते हैं। बढ़ते अपराध, अतिक्रमण, यातायात जाम बड़ी समस्या है। यहां मनोज तिवारी की राह इसलिए भी मुश्किल नजर आ रही है कि कन्हैया कुमार को आम आदमी पार्टी का भी समर्थन है। इस सीट को बाहरी लोगों का गढ़ माना जाता है। हर बार यहां बाहरी उम्मीदवार जीतता है, क्योंकि पूर्वांचल के लोग अधिक हैं।
भाजपा के स्टार प्रचारक में मनोज तिवारी इस बार दिल्ली की अपनी सीट बचाने के लिए संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। २००९ में समाजवादी पार्टी से टिकट लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चैलेंज करने वाले मनोज तिवारी को २०१४ में योगी आदित्यनाथ का विरोध करने का पुरस्कार मिला था, दिल्ली का टिकट। २००९ में मनोज तिवारी गोरखपुर में अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे। साल २००८ में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट पर २००९ में चुनाव हुआ था, तब कांग्रेस के जेपी अग्रवाल ने जीत दर्ज की थी। २०१४ और २०१९ में यह सीट मनोज तिवारी ने जीती थी। स्टारडम से पहले मनोज तिवारी के कुछ राजनेता बनने की बातें हैं, जो मनोज तिवारी के आचरण को दर्शाती हैं। जवानों और देशभक्ति के कसीदें पढ़ने वाले मनोज तिवारी एक बार अपने लोफर दोस्तों के साथ ३ अगस्त १९९८ को रात १० बजे एसआरपी के जवानों की हूटिंग करने पर उन जवानों ने मनोज तिवारी और उनके दोस्तों को इतना पीटा था कि कई दिनों तक अस्पताल में जीने को तरस रहे थे। ये घटना वाराणसी के ८० घाट की है। कुल मिलाकर उत्तर पूर्वी दिल्ली में इस बार मनोज तिवारी की हालत खस्ता है, क्योंकि वहां से महागठबंधन के कांग्रेस उम्मीदवार कन्हैया कुमार चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों उम्मीदवार मनोज तिवारी और कन्हैया कुमार पूर्वी बिहार से ही आते हैं इसलिए दिल्ली में बसे बिहार के मतदाता भी बंटे हुए हैं, जिससे पूरा नुकसान मनोज तिवारी को हो सकता है। १० सालों से वहां के सांसद रहने के बाद भी आज तक दिल्ली सहारनपुर हाइवे का काम अधूरा है। इतना ही नहीं पहली पत्नी रानी तिवारी से तलाक के बाद मनोज तिवारी ने दूसरी पत्नी सुरभि तिवारी से शादी की बात छुपाई थी, जिससे स्थानीय महिलाओ में नाराजगी भी है।

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