मुख्यपृष्ठस्तंभसटायर : यशस्वी विश्व-चेला

सटायर : यशस्वी विश्व-चेला

डॉ. रवींद्र कुमार
जी हां, आपने ठीक पढ़ा है ये नाचीज का ही ताररूफ है। मैं देख रहा हूं इतने बरस की उम्र के बाद भी यशस्वी तो बन नहीं पाए फिर विश्व गुरु तो क्या ही बन पाते। अत: अपने राम ने हौले से ये वाली उपाधि, जिसका कोई दावेदार नजर नहीं आ रहा था, अपने लिए उठा ली। ये मेरे लिए ऐसे ही है जैसे कोई घर बैठे-बिठाए आपको पी.एच.डी. या डी. लिट. की उपाधि दे दे। मेरी तो इन दिनों चाल ही बदल गई है। सच भी है। प्यादे से फर्जी भयो टेढ़ो-टेढ़ो जाए। हमारे ऑफिस में एक बार यूनियन के लोगों ने शिकायत की कि अमुक अफसर उनसे मुनासिब नम्रता के साथ पेश नहीं आता है। कोई दुआ-सलाम नहीं। जब वो अफसर तलब किए गए और उन्हें माजरा बताया गया तो वे तपाक से बोले ‘सर ! मैं तो अपने बच्चों को भी `सर’ कह कर संबोधित करता हूं’ अब यूनियन वाले सोच में पड़ गए कि ये इज्जत हुई कि बेइज्जती। बहरहाल! लोग-बाग जब अन्य व्यर्थ की मगर बड़ी-बड़ी पदवी-उपाधियों को लूटने खसोटने और पी.आर. एजेंसी से अपने लिए होर्डिंग बनवाने में मसरूफ थे अपुन ने ये उपाधि पकड़ ली। वो गाना है ना `गम राह में पड़े थे वही साथ हो लिए।’ इस लाइन में कंपटीशन भी नहीं के बराबर है। न कोई यशस्वी है और न ही कोई विश्व स्तर का चेला।
विश्वस्तर का चेला बनना कोई खाला जी का घर नहीं। आग का दरिया है और वाकई डूब के जाना है। पहले तो नेपोलियन की तरह आपकी डिक्शनरी में भी न तो `इंपोसिबल’ वर्ड होना चाहिए और न ही ‘ना’ बल्कि आपकी गर्दन और जुबान को हां में ही हिलने-हिलाने की ट्रेनिंग देनी होती है। डिजिटल इंडिया है बोले तो प्रोग्रामिंग करनी होगी। अब आपकी मेहनत और लगन पर है ये आप पंद्रह दिन में कर पाते हैं या दो महीने में। ये एक तरह की अप्रेंटिसशिप है। आपको नेचुरल तरीके से खींसे निपोरना आना चाहिए। हर बात में या कहिए बात- बात में। सदैव एक दैवीय मुस्कान आपके होंठों पर तैरती रहनी चाहिए। आपका स्थूल कद कितना ही लंबा क्यूं न हो आदत डाल लीजिए झुक कर चलने की और हाथ जोड़कर किसी से मिलते वक्त और भी झुक जाने की। आपने सुना नहीं जो वृक्ष फलों से लदे होते हैं वे सदैव झुके रहते हैं। कोई काम हो आपके मुंह से सिर्फ निकलना चाहिए ‘हो जाएगा’ या `डन’ बशर्ते जिस ‘गुरु’ को आप ये कह रहे हैं उसे इंगलिश आती हो।

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