–सुरेश एस डुग्गर–
जम्मू। कश्मीर के बारामुल्ला के किसान अब्दुल मजीद खान ने एक दशक से अधिक समय से सरसों की फसल उगाना छोड़ दिया था। दरअसल, कड़ी मेहनत और चावल के भारी उत्पादन को देखते हुए उन्होंने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए चुनिंदा फसलों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया था।
पर पिछले तीन वर्षों से खाना पकाने के तेल की कीमतें आसमान छूने के बाद से उन्होंने फिर से सरसों की फसल की ओर रुख किया है। खान के बकौल, हालांकि इस फसल को उगाने के लिए अत्यधिक मेहनत की आवश्यकता होती है, सरसों उगाने से न केवल स्थिर आय सुनिश्चित होती है बल्कि हमें शुद्ध और स्वस्थ खाना पकाने का तेल भी मिलता है।
अब्दुल मजीद खान कोई अकेला मामला नहीं है कश्मीर में, क्योंकि उनके गांव के सभी किसानों ने फिर से सरसों उगाना शुरू कर दिया है, जिसे विभिन्न कारणों से वर्षों से टाला जाता रहा है।
यह अब पूरी तरह से सच है कि कीमतों में उतार-चढ़ाव और बाजार में मिलावटी खाना पकाने के तेलों की मौजूदगी पर चिंताओं के बीच, कश्मीरी किसान पारंपरिक सरसों की खेती की ओर लौट रहे हैं, जो इस क्षेत्र में एक बार प्रमुख फसल के पुनरुद्धार का संकेत है।
हाल के वर्षों में कश्मीर में आयातित खाद्य तेलों में वृद्धि देखी गई है, जो अक्सर मिलावट के कारण कीमतों में उतार-चढ़ाव और गुणवत्ता संबंधी चिंताओं के साथ आते हैं। इससे उपभोक्ताओं के बीच अविश्वास बढ़ गया है और स्थानीय स्तर पर उत्पादित विकल्पों में दिलचस्पी फिर से बढ़ गई है।
जानकारी के लिए अब सरसों, कश्मीर की कृषि में एक प्रमुख फसल है, जो क्षेत्र की जलवायु में अपनी बहुमुखी प्रतिभा और लचीलेपन के लिए जानी जाती है। इन बीजों से निकाला गया सरसों का तेल न केवल कश्मीरी व्यंजनों में एक महत्वपूर्ण घटक है, बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। इसी तरह से पुलवामा के किसान मोहम्मद हनीफ की सुनें तो आयातित तेलों की कीमतों में अस्थिरता और मिलावट के खतरनाक मामलों ने हमें अपनी खेती के तरीकों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया है।
आंकड़ों के मुताबिक, २०२०-२१ में कश्मीर में सरसों की खेती का क्षेत्रफल ३०,००० हेक्टेयर था। वर्ष २०२३-२४ के दौरान तिलहन की खेती के अंतर्गत लाया जाने वाला कुल क्षेत्रफल बढ़कर १,४०,००० हेक्टेयर हो गया।
और अब सरसों की खेती की ओर बदलाव को विभिन्न सरकारी पहलों और कृषि कार्यक्रमों द्वारा भी समर्थन दिया जा रहा है, जिसका उद्देश्य टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना और क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा को बढ़ाना है।
एक सरकारी अधिकारी के मुताबिक, कश्मीर में सरसों की खेती का पुनरुत्थान खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। स्थानीय किसानों को सरसों उगाने के लिए प्रोत्साहित करके, हम क्षेत्र की कृषि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित कर रहे हैं।