मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनासिटीजन रिपोर्टर: नारकीय जिंदगी जीने को मजबूर हैं लोग

सिटीजन रिपोर्टर: नारकीय जिंदगी जीने को मजबूर हैं लोग

गोवंडी

मोदी सरकार ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा लगाते नहीं थकती, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। मुंबई के स्लम इलाकों में खासकर गोवंडी की घनी बस्ती में मनपा की लापरवाही से हालात बद से बदतर बने हुए हैं। गोवंडी के कमलारामन नगर, पद्मानगर, शांतिनगर, रफीक नगर, डॉ. जाकिर हुसैन नगर, साठे नगर और म्हाडा कॉलोनी में जन सुविधाएं न मिलने के कारण जनता मायूस है। इन क्षेत्रों में टूटी पड़ी लादियां, गलियों में बहता हुआ गंदा पानी और खस्ताहाल सड़कें लोगों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई हैं। ‘दोपहर का सामना’ के सिटीजन रिपोर्टर आफताब आलम अंसारी इस समस्या को सामने लाए हैं।
आफताब आलम अंसारी ने बताया कि सबसे घनी आबादी वाले इलाके कमलारामन नगर क्षेत्र में लाखों लोग रहते हैं, लेकिन मूलभूत सुविधा के नाम पर एक भी शौचालय नहीं है, जो हैं भी तो वो क्षेत्र के बाहर हैं। इसकी वजह से लोगों को घर छोटा होने के बावजूद शौचालय घर में बनवाना पड़ रहा है। घाटकोपर-मानखुर्द लिंक रोड से सटे इस क्षेत्र में बैगनवाड़ी सिग्नल से लेकर डंपिंग सिग्नल तक हाईवे रोड के दूसरे साइड पर बने शौचालय में छोटे बच्चों से लेकर महिलाएं व बुजुर्ग को अपनी जान हथेली पर लेकर हाईवे पार कर शौचालय के लिए जाना पड़ता है और कई बार लोग हादसे का शिकार हो जाते हैं।
इस क्षेत्र की गलियों का आलम यह है कि गलियों में बनी छोटी नालियों में कचरों का अंबार लगा है और इनके ऊपर लगे ढक्कन टूटे होने की वजह से नालियों का गंदा पानी गलियों में बहता है। हालांकि, इन क्षेत्र में मनपा द्वारा साफ-सफाई के लिए कई दत्तक बस्तियां ली गई हैं, लेकिन इन दत्तक बस्तियों में कर्मी सिर्फ नाममात्र के हैं। दत्तक बस्तियों के ठेकेदार व मनपा अधिकारियों की मिलीभगत की वजह से अवाम का पैसा उनकी जेब में जा रहा है। हालांकि, पहले क्षेत्र के नगरसेवक की इन पर पकड़ हुआ करती थी, लेकिन काफी समय से नगरसेवक का पद खाली होने की वजह से मनपा अधिकारियों व दत्तक बस्ती ठेकेदारों की मनमानी अपने चरम पर है और इसी तरह का हाल क्षेत्र के दूसरे इलाकों का भी है। इन झोपड़पट्टियों में रहनेवाले लोग नारकीय जिंदगी जीने को मजबूर हैं।

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