४ से ५ सवारियों को लादने से बढ़ रहा है खतरा
ट्रैफिक पुलिस की चुप्पी पर उठ रहे हैं सवाल
संदीप पांडेय
मुंबई में लोकल ट्रेनों के बाद बेस्ट बसें ही यात्रियों के आवागमन का दूसरा बड़ा सहारा है। बेस्ट बसें यात्रा में सुविधाजनक होने के साथ-साथ इनका किराया भी यात्रियों के लिए अफोर्डेबल होता है। इसके बावजूद मुंबई में बेस्ट बसों में लगातार कमी की जा रही है, जिसका खामियाजा आम मुंबईकरों को भुगतना पड़ रहा है। आम लोग बसें न होने की वजह से खासतौर पर ऑटो से सफर करते हैं, लेकिन ऑटो चालक थोड़े पैसों के लालच में न केवल आम लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ करते हैं बल्कि उन्हें कानून का भी कोई डर नहीं रहता है।
राज्य सरकार और मुंबई मनपा की तरफ से ‘बेस्ट’ के पुनरुथान के लिए जो भी कदम उठाए जा रहे हैं वह नाकाफी साबित हो रहे हैं। बेस्ट के बस स्टॉप पर यात्रियों की भीड़ दिखाई देती है। बेस्ट यात्रियों को स्टॉप पर घंटों इंतजार करना पड़ता है और जब बस नहीं आती है तो मजबूरन यात्रियों को दूसरे पब्लिक ट्रांसपोर्ट की तरफ रुख करना पड़ता है। यात्री ऐसे में ऑटो पकड़ते हैं या फिर टैक्सी। कई लोगों को टैक्सी का किराया अधिक लगता है तो वे ऑटो को ही प्राथमिकता देते हैं। ऑटो चालक यात्रियों को या तो ‘शेयरिंग’ पर ले जाते हैं या फिर ‘मीटर’ पर, लेकिन ये ऑटो चालक न केवल यातायात नियमों का उल्लंघन करते हैं बल्कि यात्रियों की जान के साथ खिलवाड़ भी करते हैं।
बिना लाइसेंस और बैच के
चल रहे हैं ऑटोरिक्शा
ऑटो चालक ‘शेयरिंग’ में तय संख्या से अधिक यात्रियों को बैठाते हैं और खुद भी बड़े ही असुविधाजनक तरीके से ऑटो चलाते हैं। ऑटो चालक ऑटो में पांच सवारियां बैठाते हैं और सड़क पर रिक्शा को तेजी से दौड़ाते हैं, ताकि उन्हें फिर से ‘भाड़ा’ मिल सके। कई ऑटो चालकों की तो उम्र भी कम होती है तो वहीं कुछ बिना लाइसेंस और बैच के सड़कों पर धड़ल्ले से ऑटा चलाते हैं। हैरानी की बात यह है कि ट्रैफिक पुलिस इन पर कोई कानूनी कार्रवाई भी नहीं करती है।
ट्रैफिक पुलिसवाले से सेटिंग
ऑटो रिक्शा चालक इतने होशियार होते हैं कि वे आते-जाते ट्रैफिक पुलिसवाले से सेटिंग कर लेते हैं और उनके सामने से ही ऑटो में क्षमता से अधिक यात्रियों को ढोते हैं और जिस दिन पुलिस द्वारा अधिक कड़ाई की जाती है उस दिन ऑटो ड्राइवर पुलिस को देखते ही सवारी को उतार देते हैं और आगे जाकर फिर से बैठा लेते हैं। यही स्थिति लगभग पूरे मुंबई की है।
ऑटो चालक करते हैं मनमानी
ऑटो चालक रेलवे स्टेशनों के बाहर अपने वाहनों के साथ की लंबी कतारों में खड़े नजर आते हैं। स्टेशन के बाहर शेयर ऑटोरिक्शा स्टैंड बने होते हैं, जहां केवल ऑटो वालों की ही मनमानी चलती है। जब तक ऑटो चालक अपनी रिक्शा में तय सीमा से अधिक सवारी नहीं बैठा लेते हैं तब तक वे नहीं चलते हैं। इतना ही नहीं ये ऑटो चालक मनमाने ढंग से यात्रियों से किराया भी वसूलते हैं। कई रिक्शा चालक मीटर के होते हुए भी मीटर के हिसाब से नही चलते हैं। अगर कोई यात्री उनके द्वारा मांगे गए अधिक किराए का विरोध करता है तो वो उसके साथ मार-पीट तक करने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऑटो चालकों के जगह-जगह एक ग्रुप बन गए हैं जो ओला, उबर जैसी सुविधाओं को स्टेशन के आसपास फटकने तक नहीं देते हैं। यात्री इंतजार में हैं कि कब उन्हें इस गंभीर समस्या से निजात मिलेगी।
पुरुषों के बीच कैसे बैठेगी महिला?
ऑफिस आते-जाते समय बहुत ट्रैफिक और भीड़ का सामना करना पड़ता है। खासकर उस समय जब हमें बेस्ट की बसों का इंतजार रहता है। बसें या तो वक्त पर नहीं आती या फिर आती ही नहीं है। उस वक्त हमें मजबूरन शेयरिंग ऑटो लेना पड़ता है, लेकिन ऑटो वाले भी बहुत चालाक हो गए हैं। वे २०-२५ रुपए ज्यादा कमाने के लिए एक ऑटो में ५ लोगों को भर लेते हैं। एक ऑटो में पुरुषों के साथ बैठना हमें सेफ नहीं लगता, जिसके बाद हम महिलाएं उसमें न बैठने के लिए मजबूर हो जाती हैं। -नेहा झा
एडजस्ट करके बैठना पड़ता है
मेरा ऑफिस बोरीवली में है। मैं शाम के ७:३० बजे छूटता हूं और वहां से अपने नजदीकी बस स्टॉप पर जाकर खड़ा हो जाता हूं। ज्यादातर ऐसा होता है कि बस लेट होती है २० मिनट २५ मिनट बस लेट आती है। इसका कारण तो मैं नहीं जानता, लेकिन मैं इससे प्रâस्ट्रेटेड होकर शेयरिंग रिक्शा लेने का पैâसला करता हूं। शेयरिंग रिक्शा में एक साथ ६ लोगों को बैठाया जाता है। अब मजबूरी यह होती है कि घर पर वक्त पर पहुंचना होता है तो मैं एडजस्ट करके बैठ जाता हूं, लेकिन मुझे ऐसा लगता है इसके लिए प्रशासन को ठोस कदम उठाने चाहिए, क्योंकि इस तरह की भीड़ से जान जाने का भी खतरा होता है। ऑटो का बैलेंस बिगड़ सकता है और मुंबई की ट्रैफिक से हर कोई वाकिफ है। -अशोक मुरारी
एक्सीडेंट होने की संभावना
शेयरिंग ऑटो में एक साथ कई लोगों को बैठाना अनसेफ है। इससे एक्सीडेंट होने की संभावना को बढ़ावा मिलता है। ऑटो वालों को मालूम है कि यह इंललीगल है। इसके बाद भी वे लोग ऐसी हरकतें करते हैं। पुलिसवाले को देखते ही एक आदमी को ऑटो से उतार देंगे और कुछ दूर बाद उसे फिर से ऑटो में बैठा लेंगे। वे लोग जानते हैं कि यह गलत है इसके बावजूद यह गलती की जा रही है। बस न होने के कारण लोग मजबूरी में शेयरिंग ऑटो का उपयोग करते हैं। -आशा मोरे
बेस्ट चलाए और बसें
मैं पिछले कई सालों से मुबई में रह रहा हूं, लेकिन बीते कुछ सालों में मैंने देखा है कि मुंबई में भीड़ अत्यधिक बढ़ गई है, जिस कारण यातायात सुविधाओं की काफी कमी हो रही है। दूसरी ओर ‘बेस्ट’ सुविधा पर प्रश्न उठना लाजिमी है क्योंकि या तो बस इतनी ज्यादा लेट होती है कि लोगों को मजबूरी में शेयरिंग ऑटो की लाइन लगकर रिक्शा लेना पड़ता है, जिसमें ५ से ६ लोग बैठते हैं। घर जाने की सब को जल्दी होती है कोई कुछ बोलता नहीं है। यह सब इललीगल है यह जानने के बावजूद पैसेंजर्स यह करते हैं क्योंकि वे मजबूर हैं। – प्रणीत केटकर