मुंबई महानगर में अवैध होर्डिंग के लिए पेड़ों को जहर दे दिया गया। इसकी जानकारी होने के बाद भी प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई और घाटकोपर जैसी दर्दनाक घटना हुई। इस मामले पर आप प्रशासन को कितना जिम्मेदार मानते हैं?
लापरवाही और लालच ने ली निर्दोषों की जान
सबसे पहले तो मैं उन बेमौत मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहता हूं, जो उस अवैध होर्डिंग के नीचे दबकर अपनी जान गवां बैठे। लानत भेजता हूं उस भ्रष्ट सरकार को, भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारियों को, भ्रष्ट महानगरपालिका को, भ्रष्ट रेलवे और उनके भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों को जिनकी लापरवाही और लालच ने निर्दोषों की जान ले ली। इस मामले में भ्रष्ट पुलिस को बख्श देना भी उन मारे गए लोगों के साथ अन्याय होगा। मैं भले ही कितनी लानतें भेजूं, भ्रष्टाचार का कुचक्र कहां खत्म होगा। ऐसे और कितने अवैध होर्डिंग्स लगाए जा रहे होंगे और भ्रष्टाचार की खेती लहलहा रही होगी। तकलीफ उन लोगों को क्यों नहीं होती, जिनके हाथ इनकी मौत के खून से रंगे हुए हैं?
– गौतम झा, कांदिवली
तो हादसा नहीं हुआ होता
यह सच है कि लोगों का खून पानी हो गया है। तूफान और बारिश से बचने के लिए जो लोग उस पेट्रोल पंप के साये में आए थे, उन्हें क्या मालूम था कि तूफान और बारिश से बचने की यह उनकी आखिरी जद्दोजहद होगी। कितनी अजीब बात है कि उस पेट्रोल पंप में जो लोग पेट्रोल-डीजल भरवाने आए थे, बारिश के थपेड़ों से बचने आए थे वे सभी के सभी उस अवैध होर्डिंग के गिरने से काल के गाल में समा गए। क्या स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि जहां पर वह अवैध होर्डिंग लगाई गई थी उसकी नींव काफी कमजोर थी और वो कभी भी गिर सकती थी। अगर उनके भीतर थोड़ी-बहुत इंसानियत बची होती तो बहुत पहले उन्होंने इसके खिलाफ एक्शन ले लिया होता और इतना बड़ा हादसा नहीं हुआ होता।
– काव्या सिंह, घाटकोपर
कब खुलेंगी इनकी आंखें
मुंबई के घाटकोपर में होर्डिंग हादसे ने महानगरपालिका, सरकार, पुलिस और रेलवे के मिले-जुले भ्रष्टाचारी जोड़ को खोलकर रख दिया है। ऐसा लगता है कि सभी कसम खा लिए हैं कि वह भ्रष्टाचार के शिखर पर पहुंचकर ही दम लेंगे। भले कितने ही निर्दोष इंसानों की जानें चली जाएं। इन्हें किसी की मौत का दर्द नहीं होता। कोई तकलीफ नहीं होती। इनका दिल पत्थर का हो गया है। आखिर, भ्रष्टाचार से कमाए हुए धन से यह अपने परिवार को क्यों पाल-पोस रहे हैं? उन्हें इस बात का डर नहीं लगता कि खून से सने हुए पैसे उनके परिवार को तकलीफ दे सकते हैं। वो किस तरह से सुख की आस लगाए बैठे हैं? धन और दौलत ही इनका एकमात्र उद्देश्य बनकर रह गया है। कब इन पाषाण हृदय लोगों की आंखें खुलेंगी?
– राम गिरधारी, अंधेरी
पैसों के लोभ ने बांधी आंखों पर पट्टी
जब यह खबर पढ़ी कि इस होर्डिंग को लगाने के लिए, जगह बनाने के लिए वहां के हरे-भरे पेड़ों को एक साजिश के तहत हटाया गया तो बड़ा दर्द हुआ। उन पेड़ों को हटाने के लिए उनकी जड़ों में जहर डाल दिया गया और वे पेड़ धीरे-धीरे सूखते चले गए। अब ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि स्थानीय महानगरपालिका को इसकी जानकारी नहीं रही होगी, लेकिन पैसों के लोभ ने उन लोगों की आंखों पर पट्टी बांध दी थी। क्या इन्हें ऐसा नहीं लगता कि पैसों के लिए ही वे इस तरह से हरे-भरे पेड़ों को राक्षसी प्रवृत्ति के तहत हटाते चले जाएंगे, तो बिना पेड़-पौधों के यह पृथ्वी ऑक्सीजन से विहीन होती चली जाएगी।
– दीपक जोशी, मीरा रोड