सोचना समझना है, कहां से आए नहीं मालूम।
कहां जाएंगे नहीं मालूम।
पृथ्वी ग्रह पर कौन सी जगह टिकट खिड़की थी?
जहां से तुमने धरती पर आने का
और रिटर्न टिकट लिया है
विधाता का अनमोल उपहार है
यह जीवन नहीं समझा, नहीं जाना
जीवन का मकसद क्या है, नहीं जाना।
जीवन रो-धोकर बर्बाद किया।
तुम जब मुस्कुराते हो,
तब बहुत सुंदर लगते हो।
क्या यह बात जानते हो
आनंद का फल खाने के लिए तुम्हें भेजा गया,
लेकिन तुम दुख के फल सदैव खाते हो, क्यों?
सृष्टि की रचना में तुम मनुष्य रूप में सिरमौर हो।
अनमोल सांसे और जीवन मिला
लेकिन समझा नहीं, पहचाना नहीं।
हीरा से भी अधिक कीमती सांसों को
जानते हुए कभी पहचाना नहीं। क्यों?
इसीलिए कह रहा हूं,
सोचना और समझना है
तथा इस अनमोल जीवन को सार्थक बनाना है।
-आर.डी.अग्रवाल “प्रेमी” मुंबई